भवतरा में एक लंगडी लडकी है उसका नाम सहोदरा है
सहोदरा को सभी चिढाते पर सहोदरा बस सहोदरा है ।
सबका ध्यान सदा रखती है सबके प्रति सुंदर व्यवहार
दसवीं - कक्षा में वह पढती है सुन्दर है आचार विचार ।
पढने में वह होशियार है अपनी कक्षा में अव्वल आती
संस्कृत के मन्त्रों को सुंदर वह लय में गाकर दोहराती ।
षोडश - संस्कार करवाती गॉव - गॉव में वह जाती है
पूरी - श्रद्धा से वह सब का संस्कार खुद - करवाती है ।
जो कुछ इससे मिल जाता है घर में चूल्हा - जलता है
सब्ज़ी - भाजी आ जाती है मॉ - बेटी का पेट पलता है ।
बडी हो रही है सहोदरा बडा हो रहा उसका - नाम
बारहवीं पास किया है उसने मिला तिपहिए का ईनाम ।
अब सहोदरा की चर्चा होती पूरी - दुनियॉ भर में आज
मन्त्रों का सुंदर उच्चारण सुनता है यह सकल- समाज ।
सहोदरा की सी. डी.बिकती दुनियॉ ध्यान से सुनती है
अनुष्ठान है मानव - जीवन वह अपने मन में गुनती है ।
सम्बल - बार - गॉव में रहता सहोदरा से करता - प्यार
सहोदरा से मिलने आया कर बैठा फिर वह - इज़हार ।
सहोदरा मन ही मन हँसती सम्बल अच्छा लगता है
जो साहस से क़दम - बढाता सम्बल उसको मिलता है ।
सहोदरा को सभी चिढाते पर सहोदरा बस सहोदरा है ।
सबका ध्यान सदा रखती है सबके प्रति सुंदर व्यवहार
दसवीं - कक्षा में वह पढती है सुन्दर है आचार विचार ।
पढने में वह होशियार है अपनी कक्षा में अव्वल आती
संस्कृत के मन्त्रों को सुंदर वह लय में गाकर दोहराती ।
षोडश - संस्कार करवाती गॉव - गॉव में वह जाती है
पूरी - श्रद्धा से वह सब का संस्कार खुद - करवाती है ।
जो कुछ इससे मिल जाता है घर में चूल्हा - जलता है
सब्ज़ी - भाजी आ जाती है मॉ - बेटी का पेट पलता है ।
बडी हो रही है सहोदरा बडा हो रहा उसका - नाम
बारहवीं पास किया है उसने मिला तिपहिए का ईनाम ।
अब सहोदरा की चर्चा होती पूरी - दुनियॉ भर में आज
मन्त्रों का सुंदर उच्चारण सुनता है यह सकल- समाज ।
सहोदरा की सी. डी.बिकती दुनियॉ ध्यान से सुनती है
अनुष्ठान है मानव - जीवन वह अपने मन में गुनती है ।
सम्बल - बार - गॉव में रहता सहोदरा से करता - प्यार
सहोदरा से मिलने आया कर बैठा फिर वह - इज़हार ।
सहोदरा मन ही मन हँसती सम्बल अच्छा लगता है
जो साहस से क़दम - बढाता सम्बल उसको मिलता है ।
सहोदरा मन ही मन हँसती सम्बल अच्छा लगता है
ReplyDeleteजो साहस से क़दम - बढाता सम्बल उसको मिलता है ।
...बिलकुल सच कहा है...जिसमें साहस है उसको संबल स्वयं मिल जाता है. बहुत प्रभावी और प्रेरक प्रस्तुति...
गॉव से आया फिर शहर की ओर
ReplyDeleteचहकती चिड़िया, कोयल की बोली और कबूतरो की गुटर-गू....ना जाने कहा खो गई ||
बैलो की गले की घंटी - हल, बरगद का पेड़....मिटटी की खुशबू....
गॉव की माटी - खेतो के पगडंडियों की पाती पाती.....कहा खो गई
http://www.shabdanagari.in/Website/Article/%E0%A4%97%E0%A5%89%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%93%E0%A4%B0