Sunday, 26 April 2015

मुआवज़ा [ कहानी ]

" बापू ! इतनी बारिश में तुम कहॉ जा रहे हो ? मुझे भी ले चलोगे क्या ? दुर्गा ने अपने बापू से कहा । रामभरोसे ने फटी - फटी ऑखों से अपनी बेटी को देखा और फिर पागलों की तरह चिल्लाते हुए , घर से बाहर निकल - कर अपने खेतों की ओर भागने लगा । उसकी पत्नी धनिया , कुछ देर तक , उसके पीछे - पीछे भागती रही पर जब रामभरोसे ऑखों से ओझल हो गया तो वह बच्चों के पास घर वापस आ गई । वह ठण्ड के मारे कॉप रही थी ।

   बाजरे की रोटी और टमाटर की चटनी बना - कर धनिया अपने पति का इन्तज़ार करने लगी , तभी दुर्गा और सूरज ने कहा - " मॉ ! हमें भूख लगी है । हमें खाना दे दो ।"  धनिया ने दोनों बच्चों को खिला दिया । खाना खा -कर बच्चे सो गए । धनिया दरवाजे को टकटकी लगाए देख रही थी । अचानक धनिया ने पीछे पलट - कर देखा - " मैं दुल्हन बन कर इसी घर में आई थी । मेरे सास - ससुर कितने अच्छे थे , मुझे कितना प्यार करते थे । हम सब कितने खुश रहते थे पर जब से ननद की शादी में पैसे उधार लिए , कर्ज से उबर ही नहीं पा रहे हैं । भर - पेट खाना - खाना भी दूभर हो रहा है । अभी फसल बहुत अच्छी हुई है सोचे थे सारा कर्ज , एक - साथ चुका देंगे । ज़मीन किराए पर लेकर भी गेहूँ बोए थे पर देखो फसल - काटने के समय में यह कैसी आफत आ रही है । हे भगवान ! तुम हम सबकी फसल को बचा - कर रखना , वर्ना हम सब बर्बाद हो जायेंगे । मेरे छोटे - छोटे बच्चों का ध्यान रखना भगवान ! "

    धनिया ने अपने सारे ज़ेवर निकाल लिए और एक पुराने कपडे में बॉध - कर अपने सिरहाने - पर रख लिया । उसने सोचा , जैसे ही रामभरोसे आएगा , वह ज़ेवर की यह गठरी उसको दे देगी और कहेगी - " तुम बिल्कुल चिन्ता मत करो जी ! लो ये सारे गहने ले लो और इन्हें बेच - कर कर्ज चुका दो । अभी तो सोने - चॉदी के दाम भी कितने बढ गए हैं । हमें इसके अच्छे पैसे भी मिल जायेंगे । "

धनिया इसी तरह न जाने कितनी बातें सोचती रही और दीवार पर टिकी बैठी रही । सूरज चढ आया था पर धनिया नहीं उठी । घर के बाहर शोर - शराबे की आवाज सुन - कर बच्चे जागे । बाहर से कोई , दरवाज़ा खटखटा रहा था । दुर्गा और सूरज दरवाज़ा खोलने गए तो देखा , पूरा गॉव यहॉ आकर खडा हुआ है । भूरी - काकी ने दुर्गा से पूछा - ‌ " तुम्हारी मॉ कहॉ है ? "  दुर्गा ने मॉ को आवाज़ दी पर मॉ कुछ बोली नहीं , तब दुर्गा ने मॉ को हिला - कर उठाने की कोशिश की , तो मॉ का शरीर एक तरफ लुढक गया । दुर्गा घबरा गई । उसने भूरी - काकी को बताया , फिर कुछ महिलायें घर के अन्दर आईं । सबने मिल - कर , धनिया को बिस्तर पर लिटाया । वैद जी आए और उन्होंने नब्ज़ देख - कर बता दिया - " राम नाम सत्य है ।"

जब बच्चों को पता चला कि मॉ की मौत हो गई है तो वे मॉ से लिपट - लिपट कर रोने लगे । इतने में सरपंच जो बहुत देर तक धनिया का इन्तज़ार कर रहे थे , घर के भीतर आकर , धनिया को दबी - ज़ुबान से  बता रहे थे कि - " रामभरोसे की लाश , खेत पर पडी हुई है ।" बस रातों - रात दोनों बच्चे जवान हो गए । क्षण - भर में ही उनका बचपन कोसों - दूर भाग गया । गॉव - वालों की मदद से दोनों बच्चों ने, अपने माता - पिता  का अन्तिम - संस्कार  किया । जब रात में बच्चे घर आए तो भूरी - काकी , साथ में आई और बच्चों के साथ सो गई । आज उसने एक संकल्प लिया कि आज से वह इन बच्चों की मॉ है और जीवन भर इनके साथ रहेगी । सुबह - सुबह जब भूरी - काकी घर की साफ - सफाई कर रही थी तो उसे धनिया की ज़ेवर - वाली गठरी मिली । उसने उस गठरी को संभाल - कर दुर्गा के लिए रख दिया । आज , रामभरोसे और धनिया की तेरहवीं है और आज ही रामभरोसे के नाम से , मुआवज़े के रूप में पचहत्तर रुपये का चेक भी आया है ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई  [ छ. ग.]  
 

3 comments:

  1. दुखद कहानी..न जाने कितने धनिया और रामभरोसे मौत के शिकार हो रहे हैं

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  2. बहुत मार्मिक..शायद यही जीवन है अन्धकार में एक प्रकाश की किरण दिखाता हुआ. आज न जाने कितने किसान और उनके परिवार इस आपदा से गुज़र रहे हैं. बहुत मर्मस्पर्शी और प्रभावी कहानी...

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  3. बहुत मार्मिक

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