मैं देवनागरी हूँ।
चार वेद मेरे ही माध्यम से प्रगट हुए हैं।
मेरी संख्या बावन है
पर छब्बीस की संख्या वाली लिपि से
मैं प्रतिक्षण तिरस्कृत होती हूँ।
बिना हाथ -पैरों वाली लिपि को
वैज्ञानिक की संज्ञा से अभिहित किया जाता है
और स्वस्थ अंग- प्रत्यंग वाली
मैं अपने ही घर में उपेक्षिता हूँ।
मेरी वैज्ञानिकता के विषय में तो आप जानते हैं
मिट्टी से 'क' बनाइये ,उसमें फूँक मारिये
आपको 'क' ध्वनि सुनाई पड़ेगी।
इसी प्रकार मेरे प्रत्येक वर्ण की
परीक्षा की जा सकती है।
मैं गागर में सागर भर सकती हूँ
यह मेरा अहं नहीं ,इस लिपि की विशेषता है।
पंचतंत्र और हितोपदेश
क्या किसी के. जी. से कम रुचिकर हैं ?
कम शिक्षाप्रद हैं ?
ऋग्वेद की डेढ़ पंक्ति के आशय को ,इतने ही शब्दों में
क्या किसी और लिपि में छंद -बध्द करना संभव है ?
पतंजलि का योगसूत्र
वात्स्यायन का कामसूत्र
नारद का भक्तिसूत्र
बादरायण का ब्रह्मसूत्र
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
शारंगधर और चरक की चिकित्सा पध्दति
संगीत के विविध राग -रागिनियाँ
नृत्य की अप्रतिम भंगिमायें
ऐसी कौन सी विधा है ,
जिसकी छवि मुझसे नहीं निखरी ?
मैं पारस हूँ ,मैनें जिसे भी छुआ
वह कंचन हो गया।
मैं जीती -जागती बैठी हूँ
पर वर्ष में एक बार
मेरा श्राध्द किया जाता है
'हिंदी डे ' मनाया जाता है ,
जिसमें बड़े -बड़े अफसरों को
'चीफगेस्ट ' बनाया जाता है ,
जिनके मन मस्तिष्क में ,अभी भी
महारानी विक्टोरिया विराजमान है ,
जो 'भारत ' को 'इण्डिया ' और 'राष्ट्रगीत' को
'नेशनल एंथम ' कहने में अपनी शान समझते हैं।
'वे ' भारतेंदु को नहीं जानते
यह भी नहीं जानते कि -
"निज भाषा उन्नति अहै निज उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटय न हिय को शूल ।।"
शकुन्तला शर्मा ,भिलाई [छ ग ]
चार वेद मेरे ही माध्यम से प्रगट हुए हैं।
मेरी संख्या बावन है
पर छब्बीस की संख्या वाली लिपि से
मैं प्रतिक्षण तिरस्कृत होती हूँ।
बिना हाथ -पैरों वाली लिपि को
वैज्ञानिक की संज्ञा से अभिहित किया जाता है
और स्वस्थ अंग- प्रत्यंग वाली
मैं अपने ही घर में उपेक्षिता हूँ।
मेरी वैज्ञानिकता के विषय में तो आप जानते हैं
मिट्टी से 'क' बनाइये ,उसमें फूँक मारिये
आपको 'क' ध्वनि सुनाई पड़ेगी।
इसी प्रकार मेरे प्रत्येक वर्ण की
परीक्षा की जा सकती है।
मैं गागर में सागर भर सकती हूँ
यह मेरा अहं नहीं ,इस लिपि की विशेषता है।
पंचतंत्र और हितोपदेश
क्या किसी के. जी. से कम रुचिकर हैं ?
कम शिक्षाप्रद हैं ?
ऋग्वेद की डेढ़ पंक्ति के आशय को ,इतने ही शब्दों में
क्या किसी और लिपि में छंद -बध्द करना संभव है ?
पतंजलि का योगसूत्र
वात्स्यायन का कामसूत्र
नारद का भक्तिसूत्र
बादरायण का ब्रह्मसूत्र
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
शारंगधर और चरक की चिकित्सा पध्दति
संगीत के विविध राग -रागिनियाँ
नृत्य की अप्रतिम भंगिमायें
ऐसी कौन सी विधा है ,
जिसकी छवि मुझसे नहीं निखरी ?
मैं पारस हूँ ,मैनें जिसे भी छुआ
वह कंचन हो गया।
मैं जीती -जागती बैठी हूँ
पर वर्ष में एक बार
मेरा श्राध्द किया जाता है
'हिंदी डे ' मनाया जाता है ,
जिसमें बड़े -बड़े अफसरों को
'चीफगेस्ट ' बनाया जाता है ,
जिनके मन मस्तिष्क में ,अभी भी
महारानी विक्टोरिया विराजमान है ,
जो 'भारत ' को 'इण्डिया ' और 'राष्ट्रगीत' को
'नेशनल एंथम ' कहने में अपनी शान समझते हैं।
'वे ' भारतेंदु को नहीं जानते
यह भी नहीं जानते कि -
"निज भाषा उन्नति अहै निज उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटय न हिय को शूल ।।"
शकुन्तला शर्मा ,भिलाई [छ ग ]
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।
ReplyDeleteमेरी वैज्ञानिकता के विषय में तो आप जानते हैं
ReplyDeleteमिट्टी से 'क' बनाइये ,उसमें फूँक मारिये
आपको 'क' ध्वनि सुनाई पड़ेगी।
इसी प्रकार मेरे प्रत्येक वर्ण की
परीक्षा की जा सकती है।
वाह ! यह तो हमें ज्ञात नहीं था, हिंदी दिवस पर बधाई !
शकुन्तला जी, क्या यह बात विस्तार से समझायेंगी? मिट्टी के कैसे "क" को किस प्रकार फूंक मारने पर क ध्वनि सुनाई देगी? क्या ऐसा अन्य व्यंजनों के साथ भी होगा? और सामान क्रिया पर स्वरों का क्या व्यवहार होगा?
Deleteदूसरा प्रश्न यह कि, क्या यह विद्वानों की मान्यता है कि वेद नागरी में ही लिखे गए थे?
आदरणीय अनुराग जी !मिट्टी के अक्षर बनाकर प्रयोग करके तो मैं भी नहीं देखी हूँ पर आप देख सकते हैं, हर अक्षर पर ऐसा प्रयोग करके ही अक्षरों का नामकरण किया गया है । यह बात मैंने भी पढी है । वेद, नागरी में ही है और अभी उपलब्ध भी है । वस्तुतः नागरी का पूरा नाम " देवनागरी " है । हमारे नन्दिनी खदान में राजवैद्य नाम के एक इन्जीनियर थे उन्होंने मुझे यह बात बताई थी कि जैसे हमारे यहॉ चार वेद हैं बिल्कुल ऐसे ही चार वेद इसराइल में भी हैं और ये वेद उनकी भाषा 'हिब्रू'में उपलब्ध हैं ।
Deleteअक्षरों के नामकरण की बात भ्रामक लगती है.
Deleteनागरी या देवनागरी तो लिपि है, यह भाषा नहीं. और यह हमारी पुरानी लिपि नहीं है, नई-नवेली है, पुरानी लिपि तो ब्राह्मी है, वैसे वेद लिपिबद्ध बहुत बाद के काल में हुए.
आपकी यह रचना, तथ्य की दृष्टि से सहमत होने योग्य नहीं, आपकी भावना अवश्य सम्मान-योग्य है.
आभार शकुन्तला जी! राहुल जी से सहमत हूँ. अक्षरों के नामकरण की बात भ्रामक ही है. हिब्रू के चार वेद जैसी बातें भी सूनी-सुनाई ही हैं, यद्यपि किसी भी ग्रन्थ को किसी भी लिपि में लिखने से कौन रोक सकता है? अनंता वै वेदा ... ज्ञान अनंत है, हमारी जानकारी हर पल बढ़ती जा रही है, वेद शब्द ज्ञान का ही प्रतीक है जैसा कि विद्वता आदि शब्दों से ज़ाहिर है.
Deleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteसुंदर सार्थक सृजन ! हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
हिंदी दिवस आते ही परिचर्चाएं शुरू हो जातीं हैं...पर निश्चय ही हिंदी आज जन-जन की भाषा बन गयी है...बच्चों का जब हिंदी फिल्मों और गानों के प्रति उत्साह देखता हूँ...तो लगता है हमीं व्यवहारिक दृष्टि से हिंदी को अपनाना चाहिए...सिर्फ व्याकरण के दृष्टिकोण से नहीं...
ReplyDeleteલિખકે હિદી ગુજનાગરી લિપીમે, બઢાઓ ઉસકી શાન
ReplyDeleteરોમનનાગરી કો છોડ કર, ઇસકો દેના માન.
Have a Happy Hindi Divas !
Very good poem.
ReplyDeleteWhy not write Hamari Boli in India's simplest nukta and shirorekha free Gujarati script resembling Bhojpuri ?
By writing Hindi/Urdu in Roman script may dissolve their History and revive India's old Brahmi script.
if K+ dhwanis were so powerful and holy ,why this script was not taught to masses in the past?
Sanskit pundits can chant but can they communicate?
Mother India needs simple script but let the people of India and computers decide what's good for them.
Have a Happy Hindi Divas!
http://iastphoneticenglishalphabet.wordpress.com/
सच कहा आपने, इसी पीड़ामयी उद्गार में एक साँस सुन्दर भविष्य की भी है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाषा
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
जंगल की डेमोक्रेसी
बहुत सुन्दर ...सारगर्भित ....
ReplyDeletewahh sundar ..saras..or sarthak lekhan ..
ReplyDeleteऐसी कौन सी विधा है ,
जिसकी छवि मुझसे नहीं निखरी ?
मैं पारस हूँ ,मैनें जिसे भी छुआ
वह कंचन हो गया।
मैं जीती -जागती बैठी हूँ
पर वर्ष में एक बार
मेरा श्राध्द किया जाता है
'हिंदी डे ' मनाया जाता है ,
जिसमें बड़े -बड़े अफसरों को
'चीफगेस्ट ' बनाया जाता है ,
जिनके मन मस्तिष्क में ,अभी भी
महारानी विक्टोरिया विराजमान है ,
uttam kataksh sadar naman :)
हम तो इतना जानते हैं कि यह हमारी भाषा है, इसका प्रयोग करने में हमें खुद अच्छा भी लगता है और सुविधाजनक भी।
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