Sunday, 1 September 2013

तैत्तिरीयोपनिषद्

भौतिक आध्यात्मिक पदार्थ को मनुज आपस में जोड़ देता है 
इस रहस्य को जान - समझ  कर विविध  शक्तियाँ पा लेता है ।

भौतिकता से पंच - प्राण जुड़ते हैं विविध लोक से प्राण जुड़े हैं
भौतिक- बल सूक्ष्म - शक्ति की पूरक दोनों तत्त्व महान बड़े हैं । 

"ओंकार "  की  महिमा  अद्भुत  यह  तो है  परमेश्वर  का  नाम
ओम  समाधान  -  सूचक  है  अति- अद्भुत  है  इसका  काम  ।

चिंतन - मनन - निदिध्यासन भी हर मनुज हेतु आवश्यक है 
सदाचार  है  बहुत  जरूरी  इह - पर  गुण  का  यह   गाहक  है । 

सत्यवचा - ऋषि  का  कहना  है  सच  ही गुण में सर्व - श्रेष्ठ है
प्रत्येक  कर्म  हो  सत्य - निष्ठ  तभी  फल  भी  होता यथेष्ठ  है

धर्म  में  दृढ़ता  तब  आती है तप की कसौटी सत्य - वचन है
नाक  मुनि  यह  समझाते  हैं  श्रेष्ठ   तपस्या  वेद -  पठन  है

श्रुतियों   के  अनुकूल  कर्म   हो  बाधाएँ  हमें  डिगा  न  पायें
दृढ़ता  से तप  करें  हम  सभी  सत्य - भाव  के पथ पर जायें । 

जैसा  चिन्तन  मानव  करता  है  वह  वैसा  ही  बन जाता है
संकल्प  सदा  पूरा  होता  है  भावानुसार  नर  फल  पाता  है।  

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ  ग  ]

3 comments:

  1. यथा चिन्तन, तथा जीवन

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  2. जैसा चिन्तन मानव करता है वह वैसा ही बन जाता है
    संकल्प सदा पूरा होता है भावानुसार नर फल पाता है।

    परम सत्य !

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  3. http://zaruratakaltara.blogspot.in/2013/09/blog-post.html

    विनम्र आग्रह २ का अवलोकन की कृपा कर अपना अमूल्य विचार दें

    manasa, wachaa, karmana ki aasth jagata post behatarin.

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