Monday, 9 September 2013

श्री गणेशाय नमः

अभीप्सितार्थसिध्दयर्थम्, पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्न हरस्तस्मै महा गणाधिपतये नमः  ।।

गणेश जी विवेक के प्रतीक हैं ,विघ्न -विनाशक हैं एवं प्रथम पूज्य हैं। इसके पीछे भी एक कहानी है। एक बार देवगणों में विवाद हो गया कि सबसे पहले किसकी पूजा की जाए ? सभी अपने आपको श्रेष्ठ कहने लगे ,तब यह निर्णय हुआ कि जो सबसे पहले सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करेगा ,उसी की पूजा सर्व -प्रथम होगी। सभी देवगण अपने -अपने वाहन पर सवार होकर परिक्रमा के लिए निकल पड़े। गणेश जी ने सोचा कि माता -पिता की महिमा तो सर्वोपरि है और उन्होंने शिव -पार्वती की परिक्रमा की और उन्हें प्रणाम कर लिया। गणेश जी विजयी घोषित किए गए। इसके पश्चात् किसी भी तरह की पूजा में गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है। यह हमारी परम्परा बन चुकी है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ,स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को गति देने के लिए और सामाजिक चेतना की बढ़ोतरी के लिए घर -घर में ,गणेश चतुर्थी के दिन गणेश स्थापना का संदेश दिया। उसी रास्ते पर पूरा देश चल रहा है। निश्चित रूप से गणेशोत्सव से परस्पर भाई -चारा एवं मित्रता पूर्ण सम्बन्धों में बढ़ोतरी होती है। चिन्तन परिमार्जित होता है और समाज में सुख -समृद्धि एवं शांति स्थापित होती है। अतः हमें गणेश जी की स्थापना अपने मन -मस्तिष्क में करना चाहिए।

गणेश जी बुध्दि के देवता हैं। विवेक के समुचित उपयोग के द्वारा हम किस तरह विषम परिस्थिति में भी सम्यक समाधान ढूढ़ लेते हैं यह हमारी बुध्दि पर निर्भर करता है। हम अपने विवेक का उपयोग ,जिस प्रकार ,जिस दिशा में और जिस भाव से करते हैं उसी के अनुरूप हमें परिणाम प्राप्त होते हैं। हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि बुध्दि का सार्थक प्रयोग हो ,सृजनात्मक प्रयोग हो। स्मरण रहे कि सृजन ही धर्म है ,विनाश अधर्म है। सृजन में ही सुख संतोष निहित है अतः हम यह संकल्प लें कि हमारा जीवन सृजन हेतु समर्पित हो।

मानव -जीवन में जो विधेयात्मक चिन्तन है वही कल्प -वृक्ष है। इसे ही ऋतंभरा -प्रज्ञा कहते हैं। प्रत्येक मनुष्य के भीतर यह प्रज्ञा विद्यमान है। गणेश जी ने अपनी बुध्दि का सार्थक उपयोग कर ,हम सबको बुध्दि का विधेयात्मक प्रयोग करना सिखाया है। "सिध्दि बुध्दि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। "

शकुन्तला शर्मा ,भिलाई [छ ग ]   
  

9 comments:

  1. सुंदर सन्देश ,,,
    गणेश चतुर्थी की मंगल शुभकामनाए ..

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  2. गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं ...

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  3. कुछ लोग शार्टकट की सीख लेते हैं इस कथा से, क्‍या करें कहना पड़ता है, जाकी रही भावना...

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  4. मानव -जीवन में जो विधेयात्मक चिन्तन है वही कल्प -वृक्ष है। इसे ही ऋतंभरा -प्रज्ञा कहते हैं। प्रत्येक मनुष्य के भीतर यह प्रज्ञा विद्यमान है।

    बहुत सुंदर बोध देती पोस्ट !

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  5. नमस्कार आपकी यह रचना आज मंगलवार (09-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. “अजेय-असीम "
    -
    आदरणीया
    सादर प्रणाम |
    बहुत ही ज्ञानवर्धक और सार्थक लेखन |हमारे नजरिये के अनुसार ही रिजल्ट मिलता हैं क्यूंकि चीजे वैसे ही दीखती हैं |
    इस ब्लॉग कों पढ़कर बड़ा आनंद आया |
    सीखने कों मिला ,आपको बहुत बहुत आभार इतनी ज्ञान वर्धक चीजों कों हमसे शेयर करने के लिए |
    आपका अजय |

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  7. लोकमान्य तिलक निश्चय ही दूरदर्शी महापुरुष थे। परंपराओं को सकारात्मक रूप में अपनाने का उनका प्रयास और फ़ले-फ़ूले, ऐसी कामना करता हूँ।
    ’विघ्न विनायक’ की सदा जय हो।

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  8. विवेचनापूर्ण ...सुन्दर ...सारगर्भित प्रस्तुति ...शुभ कामनाएँ ...हार्दिक धन्यवाद !

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