Monday, 2 September 2013

श्वेताश्वतरोपनिषद्

ब्रह्म  कौन  है  हम  हैं  कौन हम सबका आधार कौन है 
कहाँ रहता है तीन काल में हम सबका स्वामी है कौन ?

एक नदी के पाँच श्रोत हैं ज्ञानेन्द्रिय ही पाँच श्रोत हैं 
नदी का वेग है बड़ा भयंकर जन्म मृत्यु से ओत प्रोत है।

मन ही जग की रचना करता अमन ही करता है संहार 
जग में जन्म मृत्यु का भय है प्रबल वेग ही तो है हार। 

अपरा -  परा  की  यह  रचना पुरुषोत्तम ही धारण  करते  हैं 
जीवात्मा आस्वादन करती संचालन नियमन प्रभु करते हैं।

वह  प्रभु सर्व- शक्ति- मान  है  अल्पज्ञ  जीव  तो है बलहीन
किंतु अजन्मा हैं तीनों ही जीवात्मा प्रकृति और प्रभु तीन।

सम्पूर्ण विश्व यह देह उसी का वे सर्जक  पोषक  संहारक हैं 
पर कर्ता - पन का भाव नहीं है प्रकृति जगत के वे कारक हैं।

 जैसे तिल में तेल दही में घी नदी में जल छिपकर रहता है
मनुज  -हृदय में वैसे ही वह परम - पुरुष निवास करता  है।

ओंकार नाम से ही करना है हमको  परमात्मा  का  ध्यान
जन्म - मृत्यु  के पार चलें हम अमृत  पाने का है आह्वान।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]

4 comments:

  1. जैसे तिल में तेल दही में घी नदी में जल छिपकर रहता है
    मनुज -हृदय में वैसे ही वह परम - पुरुष निवास करता है।

    दिल की गहराई में ही वह मोती मिलता है..

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  2. ओंकार नाम से ही करना है हमको परमात्मा का ध्यान
    जन्म-मृत्यु के पार चलें हम अमृत पाने का है आह्वान।

    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति,,,

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  3. सम्पूर्ण विश्व यह देह उसी का वे सर्जक पोषक संहारक हैं
    पर कर्ता-पन का भाव नहीं है प्रकृति जगत के वे कारक हैं।

    -सत्य वचन!

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  4. सुन्दर और उत्कृष्ट अनुवाद..

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