Wednesday, 29 October 2014

जन्म - जयन्ती पर - सरदार वल्लभ भाई पटेल

रदार  थे  तुम आगे  रहते  थे  तुम सम दूजा नहीं हुआ 
त रह कर तुम सदा सोचते आज़ाद हो जायें करो दुआ ।
दास नहीं हम  फिरंगियों के जननी को हमें बचाना होगा
स आएगा जीने  में  जब  धरती - गगन  हमारा  होगा ।
वल्लभ - भाई  बडे साहसी  सब रियासतों को एक किया
गन लगी थी आज़ादी की आज़ादी का अभिषेक किया ।
व्य बने अपना भारत यह संकल्प यही था उनको भाता
भारत मॉ का उज्ज्वल ऑचल महिमा मण्डित हो जाता ।
श्वर  को  यह  मञ्जूर  न था भारत - निर्माण न हो पाया
र  सोमनाथ  सम्पूर्ण  हुआ उन्हें  महाकाल  लेने आया ।
टेक लिया माथा शिव सम्मुख वह स्वर्ग धाम में चले गए
गता  है तुम वापस आए हो संकल्प निभाने नए - नए ।

Monday, 20 October 2014

दिये जलाओ ज्योतिर्मय

फोडो न  पटाखे  दीवाली  में  दिये जलाओ ज्योतिर्मय
ये वातावरण प्रदूषित करते दिये जलाओ ज्योतिर्मय ।

वायु -  प्रदूषण  ध्वनि - प्रदूषण मृदा प्रदूषित करते हैं
जल  भी  होता  मैला इससे दिये जलाओ ज्योतिर्मय ।

लक्ष्मी जी को नहीं ज़रूरत ऐटम - बम फुलझडियों  की
मंत्रोच्चार करो सुन्दर तुम  दिये  जलाओ ज्योतिर्मय ।

पटाखे अहंकार  के  सूचक  यह  ईर्ष्या - द्वेष  बढाता  है
छोडो इन्हें  त्याग दो  भाई  दिये  जलाओ  ज्योतिर्मय ।

पटाखों  की  फैक्ट्री  में  देखो बच्चों  का  शोषण होता है
'शकुन'  रिहाई  हो बच्चों की दिये जलाओ ज्योतिर्मय ।

Sunday, 12 October 2014

वर्तमान का अमृत पी लें

गत - आगत  को  भूलो  भैया  वर्तमान  में जियो निरन्तर
एक भी पल यदि चूक गए तो हो सकते  हैं हम विषयांतर ।

वर्तमान  ही  वन्दनीय  है  यह  सचमुच अपना  लगता  है
वर्तमान  से  विमुख  हुआ  जो उसको पछताना पडता  है ।

पल - पल कर के बीत रहा  है मूल्यवान  यह  मेरा  जीवन
वर्तमान  को  जिसने  जीता उसका जीवन है एक उपवन ।

देर हो गई बहुत सखी पर आओ हम पल - पल को जी लें
वर्तमान  के  इस गागर में आओ अमृत  भर - कर  पी लें ।

Thursday, 9 October 2014

जन्म दिवस के पावन पर्व पर - नेता जी जयप्रकाश नारायण

                         
                                                           
नेता थे  तुम सबने माना जन - मानस  ने  मन   में  बिठाया 
तारीफ क्या करें छोटी होगी जन - जन ने अपना- पन पाया ।
जीत  लिया  मन  के  विकार को जीवन संत - समान जिए
ब  पत्नी  ने  संन्यास  लिया  खुद  को  भी उस  डगर किए ।
ह  भारी अचरज  की  बात  थी आज़ाद - देश में हुए बन्द
प्रकाश  तुम्हें  जनता  ने चाहा गाया  तुमने आज़ाद - छन्द ।
काश  सफल  होता ऑदोलन  तो  भारत  होता  कुछ  और
ताधिक  घोटाले  न  होते  तुमको मिलता कोई और  ठौर ।
नारा  था  कुर्सी  खाली  कर  दो  जनता  जाग  गई आती है
राम - राज्य फिर से लाना है जनता फिर - फिर दुहराती  है ।
ह  ऑदोलन  नहीं  है  यह  तो  अन्तः  मन  की  भाषा  है
त  हैं  हम  भारत -  माता  पर  यही  हमारी  परिभाषा  है ।


 

Sunday, 5 October 2014

वृन्दावनी

आज की व्यस्तता के इस युग में, मनुष्य मशीन की तरह हो गया है । वह हर समय थकान का अनुभव करता है और थोडी - थोडी देर में हर - समय, चाय - कॉफी की चुस्की लेता रहता है । वह फायदा - नुकसान के विषय में नहीं सोचता, पर कुछ लोग चाय - कॉफी या ठण्डा नहीं पीते, वे बेचारे क्या करते होंगे ? मैं भी चाय - कॉफी - ठण्डा नहीं पीती हूँ । मैं "वृन्दावनी" पीती हूँ । मेरे बगीचे में, तुलसी के लगभग 50 - 60 पौधे हैं । दो - चार पौधे तो हर घर में होते हैं, आप भी इनकी सँख्या आसानी से बढा सकते हैं और आप भी "वृन्दावनी " पी सकते हैं । इसे बनाना बडा सरल है, बस दूध में चाय - पत्ती या कॉफी के बदले, अदरक और तुलसी कूट - कर डाल दीजिए । थोडी देर उबलने दीजिए और जब दूध का रँग हल्का हरा हो जाए तो इसे छान - कर गरमा - गरम पी लीजिए ।

वृन्दावनी, आरोग्य - वर्धक तो है ही , यह बहुत स्वादिष्ट भी होती है । इसका नाम - करण, " वृन्दावनी " इसलिए किया गया कि "वृन्दा " तुलसी का ही पर्यायवाची शब्द है । " वृन्दावनी " का आनन्द ऐसा है कि पीने वाले को सीधे वृन्दावन से जोडता है । हो गया न ! मन वृन्दावन ?        

Thursday, 2 October 2014

अपना कवच बनाओ

मन  में   जिजीविषा   हो  पर्यावरण  बचाओ
जलवायु स्वच्छ रखो अपना गगन बचाओ ।

रखो   विचार  ऊँचा   यह   है   कवच  हमारा
वाणी   मधुर  हो   भाई  पर्यावरण  बचाओ ।

नित यज्ञ करो घर में परिआवरण का रक्षक
इस यज्ञ - होम से तुम ओज़ोन को बचाओ ।

सत राह पर है चलना सब सीख लें तो बेहतर
गंदी - गली  से अपने अस्तित्व को बचाओ ।

तरु हैं हमारे रक्षक रोपो  'शकुन' तुम उनको
इस  वृक्ष के कवच से अपना वतन बचाओ ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई , मो. 09302830030