Thursday, 9 October 2014

जन्म दिवस के पावन पर्व पर - नेता जी जयप्रकाश नारायण

                         
                                                           
नेता थे  तुम सबने माना जन - मानस  ने  मन   में  बिठाया 
तारीफ क्या करें छोटी होगी जन - जन ने अपना- पन पाया ।
जीत  लिया  मन  के  विकार को जीवन संत - समान जिए
ब  पत्नी  ने  संन्यास  लिया  खुद  को  भी उस  डगर किए ।
ह  भारी अचरज  की  बात  थी आज़ाद - देश में हुए बन्द
प्रकाश  तुम्हें  जनता  ने चाहा गाया  तुमने आज़ाद - छन्द ।
काश  सफल  होता ऑदोलन  तो  भारत  होता  कुछ  और
ताधिक  घोटाले  न  होते  तुमको मिलता कोई और  ठौर ।
नारा  था  कुर्सी  खाली  कर  दो  जनता  जाग  गई आती है
राम - राज्य फिर से लाना है जनता फिर - फिर दुहराती  है ।
ह  ऑदोलन  नहीं  है  यह  तो  अन्तः  मन  की  भाषा  है
त  हैं  हम  भारत -  माता  पर  यही  हमारी  परिभाषा  है ।


 

3 comments:

  1. जयप्रकाश जी का युवा चेहरा नहीं देखा था -आज देखा और कविता पढ़ी -धन्य हुआ

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  2. राजेन्द्र जी ! आभार ।

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  3. बहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति ..

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