नेता थे तुम सबने माना जन - मानस ने मन में बिठाया
तारीफ क्या करें छोटी होगी जन - जन ने अपना- पन पाया ।जीत लिया मन के विकार को जीवन संत - समान जिए
जब पत्नी ने संन्यास लिया खुद को भी उस डगर किए ।
यह भारी अचरज की बात थी आज़ाद - देश में हुए बन्द
प्रकाश तुम्हें जनता ने चाहा गाया तुमने आज़ाद - छन्द ।
काश सफल होता ऑदोलन तो भारत होता कुछ और
शताधिक घोटाले न होते तुमको मिलता कोई और ठौर ।
नारा था कुर्सी खाली कर दो जनता जाग गई आती है
राम - राज्य फिर से लाना है जनता फिर - फिर दुहराती है ।
यह ऑदोलन नहीं है यह तो अन्तः मन की भाषा है
नत हैं हम भारत - माता पर यही हमारी परिभाषा है ।
जयप्रकाश जी का युवा चेहरा नहीं देखा था -आज देखा और कविता पढ़ी -धन्य हुआ
ReplyDeleteराजेन्द्र जी ! आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति ..
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