" अशुभ हो तुम निकलो इस घर से
अपनी शकल दिखाना मत ।
पति अपनी पत्नी से बोला
लौट के फिर अब आना मत ।"
राखी कानी है बचपन से
सत्य बता कर हुई थी शादी ।
पिता ने दो बीघा ज़मीन दी
पर देखो उसकी बरबादी ।
ससुराल में सास ननद देवर भी
हर कोई कहता है कानी ।
पति भी उसको कानी कहता
कभी न बोला प्रेम की बानी ।
रो - रो कर बदहाल थी राखी
मात - पिता को बात बताई ।
फिर भाई जब लेने आया
तो उसके साथ चली आई ।
उसकी सखियों ने उसे संभाला
तू मेरे पार्लर में चलना ।
मेहंदी तो खूब लगाती है तू
कल से यही काम तू करना ।
राखी माला के पार्लर में
मेहंदी की एक्सपर्ट बन गई।
बस थोडे दिन में राखी की
उसके पार्लर में धाक जम गई ।
मेहंदी में राखी प्रवीण थी
खूब उसका मन लगता था ।
बारीकियॉ समझती थी वह
कलाकार मन में पलता था ।
मन पसन्द वह काम मिला है
राखी को यह रास आया है ।
हॉबी ही व्यवसाय बन गया
निज को बहुत सहज पाया है ।
थोडे ही दिन में अब राखी
मेहंदी का पर्याय बन गई ।
उसके हाथों की यह मेहंदी
जगह-जगह मशहूर हो गई ।
बडे - बडे घर की बहुयें भी
आती हैं राखी के पास ।
मेहंदी में भी होड लगी है
राखी की मेहंदी है खास ।
अब तो मिलते ही रहते हैं
राखी को कितने सम्मान ।
पति का रुख भी नरम हुआ है
राखी को मिल रहा है मान ।
टीवी में इन्टर - व्यू देने
राखी अक्सर जाती रहती है ।
सब कुछ सच- सच कह देती है
पति की दिक्कत बढती है ।
उसका पति लेने आया है
कहता है " मुझे माफ कर दो ।
भूल सभी से हो जाती है
अब तो मुझे क्षमा कर दो ।"
टीवी चैनल पर राखी ने
चाहने वालों से पूछा है ।
" ससुराल जाऊँ या न जाऊँ
तुम्हीं बताओ क्या करना है ?"
नब्बे प्रतिशत जनता कहती
" राखी अब वहॉ नहीं जाना ।
ज़ालिम हैं अपमान करेंगे
उसकी बातों में मत आना ।"
पति ने जिसको अशुभ कहा था
हज़ारों दुल्हन सजा रही है ।
लंबी लाइन में लगकर भी
दुल्हन मेहंदी रचा रही है ।
उसकी मेहंदी दुनियॉ भर में
बढ - चढ कर अब बोल रही है ।
दकियानूसी परम्परा की
पोल मेहंदी खोल रही है ।
तिरस्कार मत करो किसी का
हर मानव का हो सम्मान ।
पति ने अशुभ कहा राखी को
अब दीन-हींन है वह इन्सान ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
अपनी शकल दिखाना मत ।
पति अपनी पत्नी से बोला
लौट के फिर अब आना मत ।"
राखी कानी है बचपन से
सत्य बता कर हुई थी शादी ।
पिता ने दो बीघा ज़मीन दी
पर देखो उसकी बरबादी ।
ससुराल में सास ननद देवर भी
हर कोई कहता है कानी ।
पति भी उसको कानी कहता
कभी न बोला प्रेम की बानी ।
रो - रो कर बदहाल थी राखी
मात - पिता को बात बताई ।
फिर भाई जब लेने आया
तो उसके साथ चली आई ।
उसकी सखियों ने उसे संभाला
तू मेरे पार्लर में चलना ।
मेहंदी तो खूब लगाती है तू
कल से यही काम तू करना ।
राखी माला के पार्लर में
मेहंदी की एक्सपर्ट बन गई।
बस थोडे दिन में राखी की
उसके पार्लर में धाक जम गई ।
मेहंदी में राखी प्रवीण थी
खूब उसका मन लगता था ।
बारीकियॉ समझती थी वह
कलाकार मन में पलता था ।
मन पसन्द वह काम मिला है
राखी को यह रास आया है ।
हॉबी ही व्यवसाय बन गया
निज को बहुत सहज पाया है ।
थोडे ही दिन में अब राखी
मेहंदी का पर्याय बन गई ।
उसके हाथों की यह मेहंदी
जगह-जगह मशहूर हो गई ।
बडे - बडे घर की बहुयें भी
आती हैं राखी के पास ।
मेहंदी में भी होड लगी है
राखी की मेहंदी है खास ।
अब तो मिलते ही रहते हैं
राखी को कितने सम्मान ।
पति का रुख भी नरम हुआ है
राखी को मिल रहा है मान ।
टीवी में इन्टर - व्यू देने
राखी अक्सर जाती रहती है ।
सब कुछ सच- सच कह देती है
पति की दिक्कत बढती है ।
उसका पति लेने आया है
कहता है " मुझे माफ कर दो ।
भूल सभी से हो जाती है
अब तो मुझे क्षमा कर दो ।"
टीवी चैनल पर राखी ने
चाहने वालों से पूछा है ।
" ससुराल जाऊँ या न जाऊँ
तुम्हीं बताओ क्या करना है ?"
नब्बे प्रतिशत जनता कहती
" राखी अब वहॉ नहीं जाना ।
ज़ालिम हैं अपमान करेंगे
उसकी बातों में मत आना ।"
पति ने जिसको अशुभ कहा था
हज़ारों दुल्हन सजा रही है ।
लंबी लाइन में लगकर भी
दुल्हन मेहंदी रचा रही है ।
उसकी मेहंदी दुनियॉ भर में
बढ - चढ कर अब बोल रही है ।
दकियानूसी परम्परा की
पोल मेहंदी खोल रही है ।
तिरस्कार मत करो किसी का
हर मानव का हो सम्मान ।
पति ने अशुभ कहा राखी को
अब दीन-हींन है वह इन्सान ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
बहुत ही प्रेरक अभिव्यक्ति...इंसान कभी कभी कितने असंवेदनशील हो जाते हैं..प्रस्तुति दिल को छू गयी...आभार
ReplyDeleteराखी अबला नहीं सबला है समर्थ है सशक्त है ! उसका व्यक्तित्व प्रेरक है ! अपना आत्म सम्मान और आत्म विश्वास कभी भी खोना नहीं चाहिए ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteसच्चे जीवन के प्रतिबिम्बों को स्थापित करती रचना...
ReplyDeleteविचारणीय भाव लिए रचना , बहुत उम्दा
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