Sunday, 8 February 2015

मेहंदी

" अशुभ हो तुम निकलो इस घर से
              अपनी शकल दिखाना मत ।
पति अपनी पत्नी से बोला
             लौट के फिर अब आना मत ।"

राखी कानी है बचपन से
             सत्य बता कर हुई थी शादी ।
पिता ने दो बीघा ज़मीन दी
                  पर देखो उसकी बरबादी ।

ससुराल में सास ननद देवर भी
                   हर कोई कहता है कानी ।
पति भी उसको कानी कहता
             कभी न बोला प्रेम की बानी ।

रो - रो कर बदहाल थी राखी
         मात - पिता को बात बताई  ।
फिर भाई जब लेने आया
           तो उसके साथ चली आई  ।

उसकी सखियों ने उसे संभाला
              तू मेरे पार्लर में चलना ।
मेहंदी तो खूब लगाती है तू
       कल से यही काम तू करना ।

राखी माला के पार्लर में
       मेहंदी की एक्सपर्ट बन गई। 
बस थोडे दिन में राखी की
   उसके पार्लर में धाक जम गई ।

मेहंदी में राखी प्रवीण थी
       खूब उसका मन लगता था ।
बारीकियॉ समझती थी वह
       कलाकार मन में पलता था ।

मन पसन्द वह काम मिला है
        राखी को यह रास आया है ।
हॉबी ही व्यवसाय बन गया
    निज को बहुत सहज पाया है ।

थोडे ही दिन में अब राखी
         मेहंदी का पर्याय बन गई ।
उसके हाथों की यह मेहंदी
       जगह-जगह मशहूर हो गई ।

बडे - बडे घर की बहुयें भी
              आती हैं राखी के पास ।
मेहंदी में भी होड लगी है
           राखी की मेहंदी है खास ।

अब तो मिलते ही रहते हैं
         राखी को कितने सम्मान ।
पति का रुख भी नरम हुआ है
       राखी को मिल रहा है मान ।

टीवी में इन्टर - व्यू देने
     राखी अक्सर जाती रहती है ।
सब कुछ सच- सच कह देती है
        पति की दिक्कत बढती है ।

उसका पति लेने आया है
    कहता है " मुझे माफ कर दो ।
भूल सभी से हो जाती है
         अब तो मुझे क्षमा कर दो ।"

टीवी चैनल पर राखी ने
            चाहने वालों से पूछा है ।
" ससुराल जाऊँ या न जाऊँ
     तुम्हीं बताओ क्या करना है ?"

नब्बे प्रतिशत जनता कहती
      " राखी अब वहॉ नहीं जाना ।
ज़ालिम हैं अपमान करेंगे
        उसकी बातों में मत आना ।"

पति ने जिसको अशुभ कहा था
        हज़ारों दुल्हन सजा रही है ।
लंबी लाइन में लगकर भी
          दुल्हन मेहंदी रचा रही है ।

उसकी मेहंदी दुनियॉ भर में
   बढ - चढ कर अब बोल रही है ।
दकियानूसी परम्परा की
            पोल मेहंदी खोल रही है ।

तिरस्कार मत करो किसी का
         हर मानव का हो सम्मान ।
पति ने अशुभ कहा राखी को
     अब दीन-हींन है वह इन्सान ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]




4 comments:

  1. बहुत ही प्रेरक अभिव्यक्ति...इंसान कभी कभी कितने असंवेदनशील हो जाते हैं..प्रस्तुति दिल को छू गयी...आभार

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  2. राखी अबला नहीं सबला है समर्थ है सशक्त है ! उसका व्यक्तित्व प्रेरक है ! अपना आत्म सम्मान और आत्म विश्वास कभी भी खोना नहीं चाहिए ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  3. सच्चे जीवन के प्रतिबिम्बों को स्थापित करती रचना...

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  4. विचारणीय भाव लिए रचना , बहुत उम्दा

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