छत्तीसगढ की भैरी भौजी
परिचय की मोहताज़ नहीं है ।
लाई-बडी वाली कहलाती
यही विशेषण आज सही है ।
एक समय था जब घर भर में
होता था उनका उपहास ।
भैया भी संग छोड गए थे
अब कहते हैं था परिहास ।
" निच्चट भैरी हावस भौजी"
कह कर ननंदें चुटकी लेतीं ।
देवर पीठ के पीछे हँसते
सास हज़ार गालियॉ देतीं ।
डट-कर काम करा लेते थे
खाने को मिलता था उपवास ।
हार गई जब भैरी भौजी
तब छोडा अपना आवास ।
दीन-हींन दुखियारी खुद थी
पर मन था जैसे फौलाद ।
एक टोकरी धान को लेकर
लाई- फोड कर किया निनाद ।
लाई से फिर बडी बनाई
लगी बेचने बडी बना - कर ।
" लाईबडी बहुत अच्छी है"
सबने यही कहा था खा-कर ।
धीरे - धीरे गॉव के बाहर
लाई - बडी ने जगह बनाई ।
अपने जैसों को संग लेकर
फिर एक फैक्ट्री तभी लगाई ।
ऑर्डर पर ऑर्डर आते हैं
अब भैरी - भौजी के पास ।
लाई - बडी बाज़ार में पसरी
रहता है चारों ओर प्रवास ।
पूरे - देश में भैरी - भौजी
पाती रहती हैं सम्मान ।
पूरा - देश साथ है उनके
अपमान बन गया है वरदान ।
जीवन में कभी निराश न होना
भैरी - भौजी ने सिखलाया ।
रात अंधेरी जितनी भी हो
राह दिए ने खुद दिखलाया ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई
रात अंधेरी जितनी भी हो
ReplyDeleteराह दिए ने खुद दिखलाया ।
...बिलकुल सही...आवश्यकता है अपने ऊपर विश्वास क़ायम रखने की...बहुत प्रेरक प्रस्तुति..
आत्मविश्वास जगाती पंक्तियाँ..
ReplyDeleteक्या बात है -प्रेरणादायक
ReplyDeleteप्रेरक प्रसंग...सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुति...
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