उज्जैन में एक महिला रहती है पर वह लँगडी है बेचारी
उस की एक छोटी - बच्ची है कैसे पाले भूख की मारी ?
एक - दिन मुझसे मिलने आई अपनी दिक्कत मुझे बताई
'क्या आता है मुझे बताओ' 'कुछ- कुछ आती मुझे सिलाई ।'
'मेरी सहेली की फैक्ट्री है क्या तुम उसमें काम - करोगी
प्रति - दिन लण्च मिलेगा नीता कम पैसों में काम करोगी ?'
अंधे को मिल गई थी लाठी ऑखों में अब चमक आ गई
उसको फैक्ट्री तक पहुँचाया मन माफिक वह काम पा गई ।
उस फैक्ट्री में महिलायें ही केवल करती हैं सब - काम
बच्चों के कपडे बनते हैं कुरता क़मीज़ और कई तमाम ।
घर मिल गया वहॉ नीता को मॉ के संग बेटी रहती है
बेटी वहॉ बहुत खुश रहती ऑगन - बाडी में वह पडती है ।
रात के पीछे दिन आता है दिन के पीछे आती - रात
एक - एक दिन करते - करते बीत गई कितनी बरसात ।
नीता का बढ गया है वेतन नमिता बारहवीं - पढती है
नमिता की पढाई का खर्चा फैक्ट्री स्वयं वहन करती है ।
नमिता- पढने में होशियार है सी ए बनूँगी वह कहती है
देखो आगे क्या होता है मेहनत ही किस्मत - गढती है ।
फैक्ट्र्री के संग - संग नमिता भी अब तेजी से दौड रही है
उद्यम सदा - सफल होता है यही बात सर्वदा सही है ।
उद्योग जगत में इस फैक्ट्री को मिलता है अनेक सम्मान
महिलायें प्रोत्साहित - होतीं उनका भी बढता है मान ।
नमिता अब सी - ए बन कर के इस फैक्ट्री में आई है
नीता ने एक पार्टी दी है पर ऑख उसकी भर आई है ।
'मैंने कभी नहीं सोचा था मेरी बेटी पढ - लिख लेगी
यह फैक्ट्री हम सब की मॉ है जीवन भर उपकार करेगी ।
गला भर आया है नीता का बोल नहीं सकती कुछ और
पर जो उद्यम - पथ पर चलता वह पाता है उत्तम - ठौर ।
उस की एक छोटी - बच्ची है कैसे पाले भूख की मारी ?
एक - दिन मुझसे मिलने आई अपनी दिक्कत मुझे बताई
'क्या आता है मुझे बताओ' 'कुछ- कुछ आती मुझे सिलाई ।'
'मेरी सहेली की फैक्ट्री है क्या तुम उसमें काम - करोगी
प्रति - दिन लण्च मिलेगा नीता कम पैसों में काम करोगी ?'
अंधे को मिल गई थी लाठी ऑखों में अब चमक आ गई
उसको फैक्ट्री तक पहुँचाया मन माफिक वह काम पा गई ।
उस फैक्ट्री में महिलायें ही केवल करती हैं सब - काम
बच्चों के कपडे बनते हैं कुरता क़मीज़ और कई तमाम ।
घर मिल गया वहॉ नीता को मॉ के संग बेटी रहती है
बेटी वहॉ बहुत खुश रहती ऑगन - बाडी में वह पडती है ।
रात के पीछे दिन आता है दिन के पीछे आती - रात
एक - एक दिन करते - करते बीत गई कितनी बरसात ।
नीता का बढ गया है वेतन नमिता बारहवीं - पढती है
नमिता की पढाई का खर्चा फैक्ट्री स्वयं वहन करती है ।
नमिता- पढने में होशियार है सी ए बनूँगी वह कहती है
देखो आगे क्या होता है मेहनत ही किस्मत - गढती है ।
फैक्ट्र्री के संग - संग नमिता भी अब तेजी से दौड रही है
उद्यम सदा - सफल होता है यही बात सर्वदा सही है ।
उद्योग जगत में इस फैक्ट्री को मिलता है अनेक सम्मान
महिलायें प्रोत्साहित - होतीं उनका भी बढता है मान ।
नमिता अब सी - ए बन कर के इस फैक्ट्री में आई है
नीता ने एक पार्टी दी है पर ऑख उसकी भर आई है ।
'मैंने कभी नहीं सोचा था मेरी बेटी पढ - लिख लेगी
यह फैक्ट्री हम सब की मॉ है जीवन भर उपकार करेगी ।
गला भर आया है नीता का बोल नहीं सकती कुछ और
पर जो उद्यम - पथ पर चलता वह पाता है उत्तम - ठौर ।
जीवन में तो सारे रंग हैं , आशाएं और विश्वास बना रहे
ReplyDeleteपरिश्रम, लगन और आत्मविश्वास का मीठा फल ज़रूर चखने के लिये मिलता है ! शारीरिक विकलांगता या असमर्थता कहीं आड़े नहीं आती ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसच में किसी में आत्मविश्वास जगा देना उसकी पूरी ज़िंदगी बदल देता है..बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteप्रेरक
ReplyDeleteprernadaayi. Sundar abhivyakti
ReplyDeleteprernadaayi. Sundar abhivyakti
ReplyDeleteप्रेरणादायक सुन्दर कविता!! आभार पढवाने के लिए!
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