Sunday 12 October 2014

वर्तमान का अमृत पी लें

गत - आगत  को  भूलो  भैया  वर्तमान  में जियो निरन्तर
एक भी पल यदि चूक गए तो हो सकते  हैं हम विषयांतर ।

वर्तमान  ही  वन्दनीय  है  यह  सचमुच अपना  लगता  है
वर्तमान  से  विमुख  हुआ  जो उसको पछताना पडता  है ।

पल - पल कर के बीत रहा  है मूल्यवान  यह  मेरा  जीवन
वर्तमान  को  जिसने  जीता उसका जीवन है एक उपवन ।

देर हो गई बहुत सखी पर आओ हम पल - पल को जी लें
वर्तमान  के  इस गागर में आओ अमृत  भर - कर  पी लें ।

4 comments:

  1. बहुत खूब !! मंगलकामनाएं आपको !

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  2. वर्तमान ही वन्दनीय है -हाँ अतीतजीविता से बचना चाहिए

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  3. बहुत सही कहा है...परमात्मा सदा वर्तमान में ही मिलता है..

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  4. शकुंतला जी, यात्रा वृतांत पर आपका स्वागत है

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