Wednesday 4 February 2015

मैं कुछ भी कर सकती हूँ

छत्तीसगढ की भैरी भौजी
     परिचय की मोहताज़ नहीं है ।
लाई-बडी वाली कहलाती
        यही विशेषण आज सही है ।

एक समय था जब घर भर में
            होता था उनका उपहास ।
भैया भी संग छोड गए थे
           अब कहते हैं था परिहास ।

" निच्चट भैरी हावस भौजी"
        कह कर ननंदें चुटकी लेतीं ।
देवर पीठ के पीछे हँसते
          सास हज़ार गालियॉ देतीं ।

डट-कर काम करा लेते थे
     खाने को मिलता था उपवास ।
हार गई जब भैरी भौजी
          तब छोडा अपना आवास ।

दीन-हींन दुखियारी खुद थी
            पर मन था जैसे फौलाद ।
एक टोकरी धान को लेकर
      लाई- फोड कर किया निनाद ।

लाई से फिर बडी बनाई
         लगी बेचने बडी बना - कर । 
" लाईबडी बहुत अच्छी है"
        सबने यही कहा था खा-कर ।

धीरे - धीरे गॉव के बाहर 
          लाई - बडी ने जगह बनाई ।
अपने जैसों को संग लेकर
       फिर एक फैक्ट्री तभी लगाई ।

ऑर्डर पर ऑर्डर आते हैं 
            अब भैरी - भौजी के पास ।
लाई - बडी बाज़ार में पसरी
            रहता है चारों ओर प्रवास ।

पूरे - देश में भैरी - भौजी 
                पाती रहती हैं सम्मान । 
पूरा - देश साथ है उनके 
        अपमान बन गया है वरदान ।

जीवन में कभी निराश न होना
           भैरी - भौजी ने सिखलाया ।
रात अंधेरी जितनी भी हो
           राह दिए ने खुद दिखलाया । 

शकुन्तला शर्मा , भिलाई

4 comments:

  1. रात अंधेरी जितनी भी हो
    राह दिए ने खुद दिखलाया ।
    ...बिलकुल सही...आवश्यकता है अपने ऊपर विश्वास क़ायम रखने की...बहुत प्रेरक प्रस्तुति..

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  2. आत्मविश्वास जगाती पंक्तियाँ..

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  3. क्या बात है -प्रेरणादायक

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  4. प्रेरक प्रसंग...सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुति...

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