Thursday, 27 August 2015

हाइकू

   एक
इरा ने पाया
आई ए एस वन
सबको भाया ।

    दो
कुसुमकली
देख नहीं सकती
कुसुम - कली ।

  तीन
अँधी - भैरवी
सुन्दर गाती है
राग - भैरवी ।

   चार
सूरदास है
मन से देखने का
एहसास है ।

   पॉच
अँधा है पर
तोडता है पत्थर
सडक - पर ।

    छः
रानी है नाम
लंगडी है लेकिन
करती - काम ।

   सात
गूँगी है गंगा
बरतन धोती है
मन है चँगा ।

  आठ
काना - कुमार
झूम - झूम गाता है
मेघ - मल्हार ।

    नव
बहरा - राम
दिन भर करता
बढई - काम ।

    दस
अंधी है माला
अंधों को पढाती है
माला है शाला ।

  ग्यारह
लँगडा - मान
किसानी करता है
नेक - इंसान ।

  बारह
बहरा - राम
टोकनी बनाता है
कहॉ - आराम ?   



Sunday, 23 August 2015

वचन

                             [ कहानी ]

श्याम और उसके आठ साथी रुक-रुक कर फायरिंग करते रहे, जब पडोसी देश से फायरिंग होती कश्मीर बॉर्डर से हमारे जवान जवाबी फायरिंग करते रहे. अचानक फायरिंग रुकी, हमारे जवान 30- 35 मिनट तक चुपचाप अपनी पोजिशन पर तैनात रहे पर जब घंटा भर हो गया तो इन्होंने सोचा, फायरिंग बन्द हो गई है, चलो हम भी देखते हैं कि आखिर पडोसी की नीयत क्या है ? रोज़-रोज़ फायरिंग करना इसने अपनी आदत बना ली है. जब तक ईंट का जवाब पत्थर से न मिले, उसकी फायरिंग बन्द ही नहीं होती. रिहायशी इलाके में फायरिंग करता है, महिलायें और बच्चे डर जाते हैं, इस तरह आपस में बातें करते जैसे ही सीमा पर जवान उठ कर खडे हुए फिर फायरिंग हुई और इस बार गोली कैप्टन श्याम को लगी. गोली उसके सीने में लगी थी, वह तुरन्त बेहोश हो गया. उसे तुरन्त अस्पताल पहुँचाया गया. उसे दो घंटे बाद होश आ गया, उसके दोस्तों ने उसका मोबाइल उसे पकडाया और बताया-' सुभद्रा का फोन है, ग्यारह मिस्ड-कॉल आ चुके हैं. श्याम ने फोन उठाया तो सुभद्रा ने रुठ कर कहा-' क्या भाई आप मुझसे बात भी नहीं करते हो,राखी आ रही है, भाई ! तुम राखी के दो दिन पहले नहीं आ सकते हो क्या ? अच्छा ये बताओ कि तुम्हारे लिए क्या-क्या बनाऊँ ? तुम्हारे लिए छुहारे की खीर तो बनेगी ही और बताओ क्या बनाऊँ ?'
श्याम ने कहा- ' वो जो तुम मूँगफली डाल कर हलुआ बनाती हो न ! वो ज़रूर बनाना पर सुभद्रा मैं राखी के पहले नहीं आ सकता पर तुम्हें वचन देता हूँ कि मैं राखी के दिन आऊँगा ज़रूर.' श्याम मारे दर्द के कराहने लगा और उसके हाथ से मोबाइल छूट गया. तन के दर्द पर मन का दर्द भारी पड रहा था. डाक्टरों ने तुरन्त श्याम को ऑपरेशन थियेटर में शिफ्ट किया और ऑपरेशन थियेटर का दरवाज़ा बन्द हो गया.

उडीसा के तरापुर गॉव में श्याम का घर है. उसके माता-पिता कपास से कपडा बनाते हैं और उसे रंग कर बाज़ार में बेच देते हैं. यही उनके जीने का जरिया है. उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढाया- लिखाया और स्वावलम्बी बनाया और अपना बुढापा सुख से गुज़ार रहे हैं. बेटा आर्मी में कैप्टन है और बेटी सुभद्रा स्कूल में इतिहास की व्याख्याता है. सुभद्रा ने राखी की ज़ोरदार तैयारी कर ली है. उसने कटक जाकर, राखी में पहनने के लिए पीले रंग की रेशमी साडी खरीदी है. उसकी सभी सहेलियॉ भी श्याम को राखी बॉधती हैं. कुछ सहेलियों की शादी हो चुकी है पर वे श्याम को राखी बॉधने के लिए हर साल राखी में आती हैं और श्याम की जेब खाली करने पर तुली रहती हैं और श्याम आखरी में अपनी जेब खाली करके ही जाता है. वह अपनी बहनों को कहता है- तुम सबने मेरी जेब खाली कर दी है अब मैं टिकट कैसे खरीदूँगा ? तुम्हीं लोगों से उधार मॉग कर टिकट लेना पडेगा.

उधर श्याम की हालत दिन-ब-दिन ढीली होती जा रही है. सीने से गोली निकालते समय बहुत खून बह गया है, खून चढाया गया है फिर भी हालत बिगडती ही जा रही है.
आज राखी है. सुभद्रा ने ऑगन में फूलों की पंखुडियों से अल्पना बनाई है और उस पर पीले गुलाब की पंखुडियों से अपने भाई का नाम लिखा है. उसने छुहारे की खीर और आटे का हलुवा भी मूँगफली डाल कर बना लिया है. उसकी सभी सहेलियॉ भी आ गई हैं और सभी ऑगन में बैठ कर श्याम का इन्तज़ार कर रही हैं. सभी के पेट में चूहे दौड रहे हैं पर भाई को राखी बॉधे बिना वे कुछ खायेंगी नहीं.

तभी अचानक गाडी की आवाज़ सुनाई दी.खिलखिलाती हुई सभी लडकियॉ दौड कर बाहर निकलीं. उन्होंने देखा कि चार - पॉच गाडियॉ उनके घर के पास खडी हो गई हैं. सभी गाडियॉ सफेद रंग की हैं. सभी बहनें भाई की आगवानी के लिए गाडी के पास जाकर खडी हो गईं, पर श्याम बाहर क्यों नहीं आ रहा है ? तभी सुभद्रा ने ज़ोर से कहा-' भाई ! यदि तुम जल्दी से बाहर नहीं आए तो मैं रो दूँगी, भाई ! तुम शुभ-मुहूर्त में आ गए हो, तुमने अपना वचन निभाया है, अब तुम जल्दी से बाहर आ जाओ.' तभी गाडी का पिछला दरवाज़ा खुला, जिसमें श्याम तिरंगे  में लिपटा हुआ चुपचाप सो रहा था और उसके ऊपर फूल- मालायें बिखरी हुई थीं.                               

Sunday, 9 August 2015

वन्दे मातरम

बादल गरज रहे हैं बिजली चमक रही है . इन्द्रदेव अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ सज धज कर नभ जल का प्रसाद दे रहे हैं . नदियॉ तालाब खुश होकर लहरों के माध्यम से अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं और गोंदा डर के मारे अपनी मॉ की छाती से चिपक कर पूछ रही है ' मॉ पानी बरसना कब बन्द होगा ? मुझे ज़ोर से भूख लग रही है मॉ कुछ खाने को दो न !' गोंदा बचपन से कानी है पर पता नहीं चलता है बिना बताए कोई नहीं जान सकता कि वह कानी है . मॉ ने उसे चार - पॉच तेन्दू दिए और कहा- ' ले बेटा! तू खा ले.' चार बरस की गोंदा खुश होकर तेन्दू खा रही थी कि अचानक बहुत तेज हवा आई और उनके तम्बू को उडा कर ले गई.चंदा अपनी बच्ची को पकड कर पीपल के पेड के नीचे खडी हो गई . उनके साथ बादल नाम का उनका कुत्ता भी था . छोटू- मोटू नाम के दो बन्दर भी थे . यही तो गोंदा के दोस्त हैं वह अपने दोस्तों के साथ खेलने लगी.

गोंदा के परिवार के साथ-साथ दस - बारह देवार- देवरनिन तम्बू तान कर कोसला गॉव के भॉठा में तीन दिनों से रह रहे थे. अभी जब सभी का तम्बू ऑधी में उड गया तो सबने आस-पास के पेडों के नीचे शरण ले ली है. इनकी आजीविका का प्रमुख साधन- गोदना, नाचना-गाना,सुअर और बन्दर पालना आदि हैं. देवार - जाति नट-नटी का करतब दिखा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं और बदले में लोग इन्हें कुछ दे दिया करते हैं,इसी से इनका पेट भरता है.पुरखों से इनकी यह परम्परा चली आ रही है कि वे घर नहीं बनाते. वे चार - दीवारी के भीतर क़ैद होकर जीना पसन्द नहीं करते अपितु चलते- चलते जहॉ भी रात हुई वहीं अपना तम्बू - तानकर रात बिता लेते हैं पर गोंदा की मॉ चन्दा ने सोचा-'हमारा जो पुश्तैनी काम है वह मुझे रास नहीं आ रहा है. मैं अपनी बच्ची को पढाना चाहती हूँ उसे अच्छा नागरिक बनाना चाहती हूँ. मैं चाहती हूँ कि वह जहॉ भी रहे अपने देश का नाम उज्ज्वल करे,देश- धर्म सीखे.उसके बापू तो नहीं रहे अब मैं ही उसकी मॉ भी हूँ और बाप भी हूँ.' चन्दा अपने मन की बात कबीले के सभी सदस्यों को बताई तो कबीले के सरदार ने कहा- ' चन्दा बिल्कुल ठीक कह रही है. हम लोगों को अपनी ज़िद छोडनी होगी. परम्परा की तुलना में विवेक को महत्व देना होगा. इसी में हमारा और हमारे बच्चों की भलाई है.

देवारों का पूरा कुनबा देश की मुख्य-धारा से जुडने के लिए शहरों के आस-पास बस गया है. भगवान ने उन्हें मेहनत-क़श तो बनाया ही है उन्हें प्रतिभा का वरदान भी खूब दिया है.गोंदा अब स्कूल जाने लगी है,साथ -साथ वह भरत-नाट्यम् भी सीख रही है.उसके ऊपर ईश्वर की विशेष-कृपा है. नृत्य-कला की सभी खूबियॉ गोंदा को अनायास ही मिल गई हैं. उसकी ऑखें,उसका चेहरा उसके हाव-भाव को सजीव कर देता है.

हम सब काम करते-करते थक जाते हैं और थक -कर सो जाते हैं पर काल-चक्र कभी नहीं थकता,वह निरन्तर चलता रहता है. एक-एक दिन करते-करते कई-बरस बीत जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता. समूची परिस्थितियॉ बदल जाती हैं. गोंदा, खैरागढ संगीत विश्व- विद्यालय में पढती है. भरत-नाट्यम् में ग्रेज़ुएट हो चुकी है, इतना ही नहीं वह भरत-नाट्यम् में जानी-मानी हस्ती भी बन चुकी है. उसकी टीम में चौबीस-लडकियॉ हैं. सभी एक से एक हैं, प्रतिभाशालिनी हैं. उनकी संस्था का नाम है 'वन्दे-मातरम्.' महीनों पहले उनके कार्यक्रमों की बुकिंग हो जाती है. पिछले महीने फ्रॉस के पैरिस में उनका कार्यक्रम था. उन्हें शोहरत और दौलत इफरात मिल रही है.अभी चौदह अगस्त को दिल्ली में उनका कार्यक्रम है, जिसमें गोंदा,सिंह-वाहिनी, भारतमाता के रूप में प्रस्तुत हो रही है,उसके इस कार्यक्रम का नाम है-'वन्दे-मातरम्.'