छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं परम्पराओं के मूल में अध्यात्म एवं विज्ञान है । यहाँ लोकाचार भी अध्यात्म से पोषित होता है और विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही परम्पराओं की निसेनी तक पहुँचता है । यहाँ का लोक विज्ञान समृध्द है । " चरैवेति चरैवेति " की शैली में चारों पुरुषार्थ [धर्म अर्थ काम मोक्ष ] को प्राप्त करना हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य होता है । हमारा छत्तीसगढ़ " धान का बौटका " है । यहाँ धान की शताधिक किस्में बोई जाती हैं । धान छत्तीसगढ़ की आत्मा है ।
"भोजली " का पर्व धान- बोनी का पर्व है । खेत में धान बोने से पहले यहाँ का किसान छोटी छोटी टोकनी में विभिन्न किस्म के धान को अलग अलग टोकनी में बोता है , उसकी देखभाल करता है । अँकुर निकलना पौधे की स्थिति, उसकी बाढ़ का बड़ी चतुराई से निगरानी करता है और फिर यह अनुमान लगाने में आसानी हो जाती है कि किस धान की फसल अच्छी होगी । किसान अपने हिसाब से धान की उसी किस्म को बोता है जिसकी पैदावार भोजली के रूप में अच्छी हुई है । अध्यात्म की भाषा में यदि हम कहें तो किसान अन्नपूर्णा मातेश्वरी का आवाहन करता है सेवा सुश्रुषा करता है और संतोष का अनुभव करता है । यह पूरी प्रक्रिया यज्ञ -विधान जैसी है उतना ही सत्य पावन और भाव-पूर्ण ।
" अक्षैर् मा दीव्य: कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमान : ।" ऋग्वेद [१० /४ /७ ] ऋषि कहते हैं -अक्षों [जुआ ] से मत खेल खेती कर । उससे जो धन मिलेगा यद्यपि वह कम होगा परन्तु तू उसी में खुश रहना सीख । मेहनत कर । मेहनत से जो धन मिलता है उसी से संतुष्टि मिलती है ।
भादो कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को भोजली का विसर्जन किया जाता है । भोजली सेराने की यह प्रक्रिया बहुत ही सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में अत्यन्त भाव पूर्ण ढंग से सम्पन्न होती है । मातायें-बहनें और बेटियाँ भोजली को अपने सिर पर रखकर विसर्जन के लिए धारण करती हैं और भजन मण्डली के साथ, बाजे-गाजे के साथ भाव पूर्ण स्वर में भोजली गीत गाती हुई तालाब की ओर प्रस्थान करती हैं ।
" देवी गँगा देवी गँगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा हमरो देवी भोजली के भींजै आठो अँगा अहो देवी गँगा ।
कौशल्या माँ के मइके म भोजली सेराबो हो भोजली सेराबो सिया राम के सँगे सँग तोला परघाबो अहो देवी गँगा । " भोजली सेराने के बाद एक दूसरे को भोजली देकर गियाँ बदते हैं जिसे जीवन भर निभाया जाता है । इस भोजली पर्व का महत्व नवरात्रि जैसा ही है । मेरी ओर से आप सभी को भोजली तिहार की बधाई ।
यह तो विशुद्ध वैज्ञानिक सोच है, त्योहार के रूप में लघु प्रयोग और निष्कर्षों का वृहद मंचन।
ReplyDeleteआध्यात्म लोकाचार, परम्परा, रीतिरिवाज संग छत्तीसगढ़ के जीवन शैली को वैज्ञानिकता संग चित्रित करता ज्ञान परक पोस्ट आभार नहीं न ही बधाई *******
ReplyDeleteलोकाचार परम्परा का त्यौहार ; ?
ReplyDeleteलोकसंस्कृति के प्रयोगात्मक पहलू पर प्रकाश डालती पोस्ट। निश्चित ही हमारी बहुत सी परंपरायें उद्देश्यपूर्ण हैं, बहुत बार उनका औचित्य सबको समझ नहीं आता।
ReplyDeleteइस दिन के साथ बचपन की कई यादें जुड़ी हैं मेरी, आपने वे सारी फिर से जीवित कर दी।।।
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