Friday, 16 December 2016

मजदूर [ कहानी ]

चैत का महीना है आज अष्टमी तिथि है. आज रामभरोसे और अंजोरा ने उपवास रखा है. माता रानी से मनौती भी मॉगी है कि ' हे देवी ! हमें एक बेटा दे दो, हम पर कृपा करो. हमारा वंशवृक्ष जीवित रहे.' ' बापू ! मुझे भी एक गुडिया चाहिए, रानी के पास है,मुझे भी दिला दो न बापू .' तीन बरस की धनिया ने अपने बापू रामभरोसे से कहा.' हॉ बिटिया, ले दूँगा पर मुझे थोडी सी मोहलत तो दे.' ' मोहलत नहीं दूँगी अभी लाकर दो.' रामभरोसे ने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड दियाऔर कहा- 'ले'.बच्ची तमाचा खाकर ज़मीन पर गिर पडी ऑखों से ऑसूँ बह रहे थे पर बच्ची चुपचाप उठी और घर से बाहर निकल गई.लगभग आधा घंटे बाद धनिया की मॉ अंजोरा ने आवाज़ लगाई-'धनिया ! तू कहॉ है बेटा? आ जा भात खा ले.' जब बार-बार पुकारने पर भी धनिया नहीं आई तो अंजोरा बाहर निकली तो उसने देखा कि रामभरोसे आराम से सो रहा है. उसने रामभरोसे को जगाया और पूछा कि ' धनिया कहॉ है ? यहीं कहीं खेल रही होगी, छोटी सी बच्ची और जाएगी कहॉ ?' दोनों घबरा कर बस्ती के आस-पास धनिया को खोजने लगे पर धनियॉ कहीं नहीं मिली.

छोटी सी बच्ची धनियॉ चलते- चलते एक मंदिर में पहुँची. वह धीरे-धीरे बैठ-बैठ कर मंदिर की सीढी में चढ ही रही थी कि वह लुढक कर गिर गई और बेहोश हो गई. एक पति- पत्नी ने देखा, और ममता से भरकर उन्होंने उस बच्ची को उठा लिया. वे भी माता के मंदिर में संतान की आस लेकर आए थे. बच्ची बेहोश थी उसे तुरंत अस्पताल ले गए. जब बच्ची होश में आई तो उन्होंने बच्ची से पूछा-' तुम्हारा नाम क्या है?' ' मेरा नाम धनिया है.' 'तुम यहॉ पर किसके साथ आई हो?' पर बच्ची ने यही कहा कि ' मैं यहॉ अकेली ही आई हूँ.' ' तुम्हारा घर कहॉ है?' ' वो उधर.'

अजनबी दम्पत्ति, उसे अपनी गाडी में बिठाकर, बहुत देर तक आस-पास की बस्ती में घुमाते रहे पर धनिया का घर नहीं मिला. हार कर वे उस बच्ची को अपने साथ ले गए. जाने के पहले पुलिस चौकी में एफ.आई.आर.दर्ज करवा दिए और इंसपेक्टर से कह दिए कि' जैसे ही इस बच्ची के माता-पिता का पता चले हमें बताइए,हम उनकी बच्ची को उसके मॉ-बाप को सौंप देंगे.' पुलिस इंसपेक्टर ने भी बच्ची को अपनी कस्टडी में लेने की ज़िद नहीं की क्योंकि वे जानते थे कि यह सज्जन कोई और नहीं यहॉ के कलेक्टर तिवारी जी हैं. बच्ची भूखी थी. पति-पत्नी ने बच्ची को बडे प्यार से खिलाया, उसकी पसन्द की चीज़ें उसे दीं और ढेर सारे खिलौने देकर कहा- 'जाओ,अपने खिलौने के साथ खेलो. बच्ची ने पूछा-' यह सब मेरा है क्या ?' पति-पत्नी ने एक साथ मुस्कुरा कर कहा-' जी हॉ, यह सब आपका ही है.' बच्ची खुश होकर खेलने लगी. धनिया के लिए तरह-तरह के कपडे, जूते और उसकी पसन्द की हर चीज़ आ गई. धनिया की खुशी का ठिकाना नहीं था. घर में टीचर आ गई.बच्ची पढ्ने लगी.डी.पी.एस.में उसका एडमीशन हो गया. धनिया यहॉ के रंग में रंग गई, उसे जीने में मज़ा आने लगा.

हम सभी काम करते-करते थक जाते हैं और थक कर सो जाते हैं पर काल-चक्र कभी नहीं थमता, वह निरंतर चलता रहता है. धनिया बारहवीं पास होने के बाद आई.आई.टी. मुँबई से बी.टेक. कर ली है. वह आई.ए.एस. फाइट कर रही है. वह अपने भविष्य के प्रति बहुत सावधान है और बहुत मेहनत कर रही है. उसके माता-पिता तिवारी दम्पत्ति अपनी बेटी की सफलता पर फूले नहीं समाते. उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है.

आज एक मई है-मज़दूर दिवस. रामभरोसे और अंजोरा आज धनिया का जन्मदिन मना रहे हैं.मन ही मन सोच रहे हैं. 'आज धनिया तेइस बरस की हो गई होगी, न जाने कहॉ होगी ? किस हाल में होगी ? कोई अनहोनी न हो गई हो' यही सोचते-सोचते माता-पिता दोनों के ऑसू थमते नहीं. अभी उनका एक बेटा है जिसका नाम रामू है. उसने बारहवीं पास कर ली है और अभी वह बीस बरस का हो चुका है. वह रामभरोसे के साथ मज़दूरी करने जाता है. अंजोरा अपनी बस्ती के आसपास दो -तीन घरों में चौका-बर्तन करती है.किसी तरह जीवन की गाडी चल रही है. आधार कार्ड से चॉवल,गेहूँ और चना मिल जाता है,इस प्रकार तीनों अच्छे से जी रहे हैं.

तिवारी जी आज अपने पद से रिटायर्ड हो रहे हैं,आज उनका विदाई समारोह है. उनकी पत्नी और बच्ची धनिया भी इस कार्यक्रम में आई हैं. प्रथम पंक्ति में बैठी हुई हैं, इन्हें भी समारोह में बोलने का अवसर मिला.उनकी बेटी ने कहा- कि ' मेरे पापा खास हैं वे दुनियॉ के सबसे अच्छे पापा हैं.' सबने जोरदार तालियॉ बजाईं और धनियॉ को बहुत मज़ा आया.

आज आई.ए.एस. का परिणाम आने वाला है,जैसे ही न्यूज़ पेपर आया तो धनिया दौड कर गई और अपना रीज़ल्ट देखने लगी. वह थोडी देर में रोते-रोते अपने पापा के पास पहुँची और बोली-' पापा ! मेरा नाम कहीं नहीं है', वह फूट- फूट कर रोने लगी. पापा हँसने लगे- " मेरी बिटिया का नाम नहीं है क्या ? और यह क्या है?' धनिया ने देखा- वह तो आई.ए.एस.में टॉप की है,अव्वल आई है. वह खुशी के मारे रोने लगी. बधाई देने वालों का तॉता लग गया. रामू अपने साहब को रोज पेपर देने जाता है, उसके बाद अपना काम करता है. आज उसने पेपर में बडे-बडे अक्षरों में धनिया का नाम देखा तो उसे भी अपनी बहन की याद आ गई. उसने घर जाकर अपने माता-पिता को यह बात बताई. रामभरोसे और अंजोरा ने सोचा- ' चलो! एक बार उससे मिल लेते है . वे तीनो कलेक्टर के बंगले तक पहुँच गए. बहुत देर तक बाहर में खडे रहे. वहॉ बहुत लोग पहले से ही खडे हुए थे. धनिया सबसे मिल रही थी. जब वह रामभरोसे से मिली तो उसने धीरे से कहा- ' मुझे माफ कर दे धनिया मैं उस समय तुझे गुडिया नहीं दे सका लेकिन आज मैं तेरे लिए गुडिया लेकर आया हूँ, ए ले.' धनिया ने रामभरोसे के हाथ से गुडिया को लिया और बापू कह कर अपने पिता से लिपट गई फिर मॉ से मिली. रामू ने अपनी दीदी को प्रणाम किया. वह अपने परिवार से मिलकर बहुत खुश हुई. वह इस खुश्खबरी को बॉटने के लिए जैसे ही वह पीछे मुडी, तिवारी दम्पत्ति ने उसे कुछ भी कहने से मना कर दिया. तिवारी जी ने रामभरोसे का उनकी पत्नी ने अंजोरा का आलिंगन किया और अपने साथ अपने घर में ले गए. धनिया औ रामू एक-दूसरे का हाथ पकड कर इस तरह घर में घुस रहे थे जैसे वे बरसों से इसी घर में रहते हों. सबकी ऑखों में खुशी के ऑसूँ थे. मातारानी ने सभी की फरियाद सुन ली थी.
शकुन्तला शर्मा,भिलाई,छ्त्तीसगढ, मो- 09302830030
  

Tuesday, 8 November 2016

कालिदास कवि कुल गौरव हैं

कालिदास कवि - कुल - गौरव हैं शब्द - चित्र के हैं आकाश
लोगों  ने उपहास - किया पर हुए  नहीं वह कभी - निराश ।

अभिज्ञानशाकुन्तल रच - कर दुनियां भर में नाम कमाया
मेघदूत छा - गया गगन में प्रणय - गीत जब तुमने गाया ।

सत्यमेव जयते की धुन पर तुमने रचा कुमार - सम्भवम्
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है आदि सनातन यही नियम ।

मालविका भी अग्नि - मित्र - संग हंसी - ठिठोली करती है
प्रेम - रतन - धन दिया तुम्हीं ने आतुर - हो कर कहती है ।

विक्रम की उर्वशी क्षितिज पर सहज - सरल देती - सन्देश
अमर - रहे अनुराग  हमारा प्रेम - से पूरित- हो परि - वेश ।

ऋतु - संहार यही कहता  है  नित - नवीन  है यह - धरती
वनस्पतियॉ कितनी सुंंदर हैं कल कल कर कावेरी कहती ।

शिप्रा - तुम्हें - याद करती  है  बैठी - रहती  है  वह - मौन
पद - चापों की परख उसे है कभी - कभी कह उठती कौन ?

महाकाव्य - रघुवंश - तुम्हारा सब को राह - दिखाता है
यह मानव - जीवन अमूल्य है हम सब को समझाता है ।

जन्म भूमि की महिमा अद्भुत तुमने किया है गौरव गान
आज़ादी की खीर बँटी जब जाग- गया फिर हिन्दुस्तान ।

कालिदास तुम यहीं - कहीं हो सुनती  हूँ तेरा  पद - चाप
तुम मेरे मन में बसते हो अनुभव करती हूँ अपने - आप ।  
  

Sunday, 3 July 2016

वसंत पञ्चमी

                                                  [ कहानी ]

" तेरी मॉ बर्तन धोती है, तू भी वही काम कर. यहॉ स्कूल में क्या करने आई है ? पढ - लिख कर मास्टरनी बनेगी क्या ?" विद्या फूट-फूट कर रोने लगी.टीचर की डॉट की डर से वह ज़ोर-ज़ोर से नहीं रो रही थी, पर ऑख से ऑसू लगातार बह रहे थे और विद्या अपराधिनी की तरह सिर झुका कर खडी थी. थोडी देर में नाश्ते की छुट्टी हुई. सभी बच्चे अपना-अपना टिफिन खोल कर खाने लगे पर विद्या एक कोने में चुपचाप सिर झुका कर बैठी रही. शाम को जब छुट्टी हुई तो वह अपना बस्ता उठा कर घर की ओर जाने लगी तभी उसे रास्ते में उसी  की कक्षा में पढने वाली सहेली माया मिली. उसने विद्या से पूछा - ' तेरा घर कहॉ पर है ?' विद्या ने उसे बताया कि वह पास की बस्ती में ही रहती है. माया ने कहा- 'मैं भी तो वहीं रहती हूँ पर मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा, तब विद्या ने उसे बताया कि वह अपनी नानी के साथ गॉव में रहती थी और अभी पढने के लिए मॉ के पास आ गई है. दोनों बच्चियों में दोस्ती हो गई और दोनों साथ-साथ रहने लगीं.

विद्या अभी तक समझ नहीं पाई थी कि टीचर ने उसे क्यों डॉटा था पर जब माया ने बताया कि टीचर ने तुम्हें इसलिए डाटा था कि तुम्हें न तो वर्णमाला लिखना आता और न ही तुम गिनती जानती हो.
' पर मुझे टीचर ने कभी सिखाया ही नहीं तो मुझे आएगा कैसे? मैं सीखने के लिए ही तो स्कूल जाती हूँ न ?'
'ऐसा नहीं होता विद्या ! हमें घर से सब कुछ सीख कर स्कूल जाना पडता है नहीं तो टीचर इसी तरह अपमानित करते हैं. वे केवल मुँह से बोलते हैं, हाथ पकड कर नहीं सिखाते.'
'पर मेरी मॉ तो कहती है कि टीचर भगवान की तरह होते हैं. वे सभी बच्चों को अपने बच्चे की तरह समझते हैं और सबको बराबर प्यार करते हैं.'
'अच्छा देख ! तेरा नाम विद्या है न ! तो तू ज़रूर पढेगी, चल आज वर्णमाला से मैं तेरा परिचय करवाती हूँ.'
बस फिर क्या था दोनों सहेलियॉ साथ-साथ पढने लगीं और विद्या ने थोडे ही दिनों में वर्णमाला और सौ तक गिनती सीख ली.टीचर का व्यवहार भी धीरे-धीरे बदलने लगा.रूखी बानी में मिठास आ गई.

आज वसंत-पञ्चमी है. आज विद्या के स्कूल में सरस्वती-पूजा हो रही है. बडे गुरुजी के साथ-साथ सभी बच्चों ने सरस्वती माता की वन्दना की फिर बडे गुरुजी के संग-संग सभी बच्चों ने गाया-
" जय सरस्वती की जय सरस्वती
तोर माथे धरवँ बेल की पत्ती ।
मॉ तुम पहनो गज - मुक्ताहार
हमको दे दो विद्या - भण्डार ॥"

विद्या गाती रही पर ऑखों से झर-झर ऑसू बहते रहे. बडे गुरुजी ने देख लिया, उन्होंने विद्या को अपने पास बुलाया और फिर उससे पूछा- " बेटा ! तुम क्यों रो रही हो ?"
विद्या ने बताया- " बडे गुरुजी ! मेरी दो छोटी बहनें हैं और मेरे पिताजी हम लोगों को छोड कर कहीं चले गए हैं । हमारे पास न ही रहने की जगह है न ही खाने-पीने के लिए कुछ है, मेरी मॉ दो घरों में बर्तन धोती है पर उससे गुज़ारा नहीं हो रहा है. आप मुझे कुछ काम दिलवा दीजिए,मैं पूरे स्कूल में झाडू-पोछा कर सकती हूँ" कहते -कहते वह फूट-फूट कर रोने लगी. गुरुजी की ऑखें भर आईं,उन्होंने विद्या के सिर पर हाथ रख कर कहा -
" आज से तुम मेरी बेटी हो ! तुम्हारी किताबें,स्कूल-ड्रेस तुम्हें मैं दूँगा और तुम्हारी मॉ को काम भी मिल जाएगा । तुम चिंता मत करो, तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं है,अभी तुम्हें पढना है और पढ-लिख कर कुछ बनना है. "

बडे गुरुजी, विद्या और माया के साथ उसके घर गए. एक छोटे से सीलन भरे कमरे में उसकी दोनों बहनें,फ्टी हुई चादर पर खेल रही थीं और उसकी मॉ काम करने गई थी. बडे गुरुजी बाहर खडे रहे और जब उसकी मॉ काम से लौट कर आई तो उन्होंने कहा-" बच्चों को लेकर मेरे साथ चलिए, स्कूल में चौकीदार का कमरा खाली है, अपने बच्चों के साथ वहॉ रहिए. चपरासी का काम तुम्हें मिल जाएगा और तुम्हारा गुज़ारा हो जाएगा."

बच्चियॉ खुश हो गईं पर उनकी मॉ, लक्ष्मी के ऑसूँ नहीं थम रहे थे, उसने बडे गुरुजी के दोनों पैरों को पकड कर प्रणाम किया और बोली- " बडे गुरुजी ! आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं, आपने मेरी बच्चियों को नई ज़िन्दगी दी है. लक्ष्मी अपनी छोटी बेटी रंभा को गोद में लेकर चल रही थी और विद्या और सरस्वती,बडे गुरुजी की ऊँगली पकड कर ऐसे शान से चल रही थीं जैसे उनको आसमान मिल गया हो.

विद्या आज खेल-खेल में सरस्वती -माता की मिट्टी की मूरत बनाई है और उसे अपने सीने से लगा कर अपने नए घर में ले जा रही है. रास्ते भर वह सरस्वती-माई से बात करती रही- ' हे सरस्वती माता ! तुम मुझे विद्या का भण्डार देना. वाणी का वरदान देना. मुझे अपने समान बनाना सरस्वती माई ! हमारी रक्षा करना. मुझे इतनी विद्या देना कि हम सिर उठा कर इस संसार में जी सकें.'

हम सब काम करते-करते थक जाते हैं और थक कर सो जाते हैं. एक-एक दिन करते -करते कई बरस गुज़र जाते हैं. कालचक्र कभी नहीं थमता, वह निरंतर चलता रहता है . बेटियॉ कब बडी हो जाती हैं पता ही नहीं चलता. लक्ष्मी बडी हो गई है. वह आई. पी. एस. अफसर बन चुकी है और उसकी नियुक्ति मुँबई - ठाणे में हो गई है. विद्या का घर हँस रहा है बहनें खिलखिला रही हैं और मॉ की ऑखें मुस्कुरा रही हैं. सरस्वती, मेडिकल कॉलेज़ में पढ रही है. रंभा आई. आई. टी. की तैय़ारी कर रही है.

अब विद्या को घर की याद आ रही है, वह अपनी खुशियों को अपनों से बॉटना चाहती है. उसे मॉ की बहनों की और बडे गुरुजी की याद आ रही है पर आज सडक - दुर्घटना में एक आदमी बुरी तरह घायल हो गया है,उसके दोनों पॉव टूट गए हैं, उससे मिलने जा रही है. वैसे तो इंस्पैक्टर उसका बयान लेकर आ गए हैं पर विद्या स्वयं उससे मिलना चाहती है. उसका नाम प्रभाकर है. विद्या उससे मिली और उसने उससे पूछा - ' कहॉ रहते हो ?'
' फुटपाथ पर .'
'कहॉ से आए हो ?'
'भवतरा से .'
अरे ! यह तो मेरा ही गॉव है.
' घर में और कौन - कौन हैं ?'
' मैं अपनी पत्नी और तीन बेटियों को छोड कर मुँबई आ गया था , पता नहीं वे कहॉ हैं और किस हाल में हैं .'
उसकी ऑखें भर आईं,वह रोने लगा,अपने आपको कोसने लगा. उसने कहा - 'मेरी बेटी आपके उम्र की होगी पर मैं बेटे की चाह में, अपनी बेटियों को छोड कर यहॉ भाग आया. क्या पता वे जिन्दा हैं भी या नहीं ?'
वह फूट-फूट कर रोने लगा.
अब विद्या पहचान चुकी थी कि वह उसका पिता है पर उसने बताया नही.उसके पैरों का ऑपरेशन करवाया.जयपुरी पैर लग गए और प्रभाकर जब चलने-फिरने लायक हो गया तो विद्या ने उससे पूछा-'क्या आप अपने गॉव जाना चाहेंगे? 'उसने रोते हुए कहा- ' हॉ , जाऊँगा .'

आज वसंत-पञ्चमी है . विद्या , प्रभाकर को लेकर मॉ के पास पहुँचने वाली है, मॉ ने विद्या के सम्मान में पूरे गॉव को बुलाया है, बडे गुरुजी नई धोती- कुर्ता पहन कर, सोफे पर बैठे हुए हैं, वे सभी आगंतुकों का स्वागत कर रहे हैं, विद्या की मॉ , लक्ष्मी आरती की थाल सजा कर , विद्या का इंतज़ार कर रही है, जैसे ही विद्या आई उसकी दोनों बहनें उससे लिपट गईं. लक्ष्मी ने विद्या की आरती उतारी और विद्या ने मॉ के चरण छुए, उसने बडे गुरुजी को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लिया. प्रभाकर असहज होकर इधर-उधर देख रहा था,तभी विद्या ने अपनी मॉ से कहा- ' मॉ ! यहॉ आओ, देखो तो ये कौन हैं ?'
लक्ष्मी ने प्रभाकर को ध्यान से देखा- ' अरे ! वही ऑखें, वही चेहरा ! उसके होठों ने कहा- ' प्रभाकर !'
' मॉ ! तुम इन्हें जानती हो क्या ?'
" मैं तुम्हारा अपराधी हूँ लक्ष्मी !" कहकर प्रभाकर हाथ जोड कर बोला - " हो सके तो मुझे माफ कर देना ,मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ ." वह रोने लगा . नारी तो धरती है . लक्ष्मी ने उसका हाथ पकड कर उसे बिठाया, अपने बच्चों से मिलवाया और फिर पूरे गॉव वालों के साथ माता सरस्वती की पूजा की. माता सरस्वती ने विद्या की प्रार्थना सुन ली थी .  
  

Tuesday, 28 June 2016

सागर के सीप में मोती है मॉरीशस


अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन के संस्थापक डॉ लॉरी आज़ाद ने जब हमें बताया कि हम 14वीं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मॉरीशस जा रहे हैं, तो मैं बहुत खुश हुई । कारण श्रीलंका,से लेकर भूटान, कनाडा, अमेरिका, रूस, सिंगापुर,नेपाल,मलेशिया,इंडोनेशिया,थाईलैण्ड और मॉरीशस से हिंदुस्तान की खुशबू आती है.इन देशों का अपनापन मुझे आकर्षित करता है.मेरा मन वहॉ बार-बार जाना चाहता है.लारी भाई ने हमारे आने-जाने और ठहरने की फटाफट तैयारी कर दी और हम निकल पडे अपने गंतव्य की ओर.
11जून 2016

छ्त्तीसगढ से हम पॉच बहनें जा रही हैं- चंद्रावती,संध्या,मधुलिका,सावित्री और शकुन्तला शर्मा.रायपुर एअरपोर्ट से आज शाम 6.55 को हमें दिल्ली पहुँचना है.हम सभी ठीक 5.00 बजे एअरपोर्ट पहुँच गए और 6.30 तक अपने विमान पर सवार हो गए.रास्ते भर हम कुछ न कुछ खाने की चीज़ें निकाल-निकाल कर खाते रहे और 8.55 पर दिल्ली पहुँच गए.डिनर के लिए हम घर से रोटी-सब्ज़ी रख लिए थे,उसे निकाल कर हम सभी इतमिनान से खाए और आराम से वहीं बैठे रहे क्योंकि हमें टर्मिनल 5 पर 1.00 बजे रात को एकत्र होना है.हम 12.00 बजे घरेलू हवाई अड्डे से निकले और बस में बैठकर,अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल -5 पर जाकर बैठ गए.थोडी ही देर में लारी भैया आए और उन्होंने हमें हमारी टिकट दी,एक-एक बैग और खाने-पीने की चीज़ें भी उन्होंने हमें ऑफर किया और फिर हमने चेक-इन किया. बोर्डिंग-पास लेने के बाद हमने एक जगह बैठकर मीटिंग की और फिर मॉरीशस एअर में बैठ गए.

12 जून 2016
सुबह 8.00 बजे हमारा विमान मॉरीशस की ओर चल पडा.हमारी सीट के आगे लेपटॉप जैसा एक सिस्टम था,जिसमें हर पल यह दिखा रहा था कि- हम कहॉ हैं और हमें जाना कहॉ है? रास्ते में समुद्र का दृश्य भी कम लुभावना नहीं था.सफर सात घंटे का था. उस लैपटॉप पर हम फिल्म भी देख सकते थे,गाना सुन सकते थे और गेम भी खेल सकते थे किंतु मुझे समुंदर में अपने लक्ष्य की ओर धीरे-धीरे खिसकते हुए बढने में ही मज़ा आ रहा था. मैं निरंतर उसी को देखती रही और आराम से सीट पीछे करके बैठी रही. मॉरीशस एअर ने हमें जलपान करवाया. उन्होंने कई बार कॉफी भी पिलाई.हम उनसे बार-बार पानी मॉगकर उन्हें परेशान करते रहे पर उन्होंने हर बार बहुत प्यार से न केवल पानी परोसा अपितु हर बार हमारा अभिनंदन भी किया.लारी भाई ने मेरी प्लेट के लिए जैन लिखवा दिया था,इसका बडा प्रभाव पडा.उन लोग सबसे पहले मेरी प्लेट ला कर दे रहे थे,उसके बाद शाकाहारियों को और बाद में किसी और को परोस रहे थे. मेरे पास ही संध्या बैठी थी.वह मेरी प्लेट को ध्यान से देखती थी और कहती थी-" शकुन दीदी,मुझे पनीर नहीं दिया",मैं चुपचाप मुस्कुरा देती थी. अचानक 3.00बजे दोपहर को हमसे कहा गया-" कृपया अपना सीट-बेल्ट बॉध लें,हम पोर्टलुईस पहुँच चुके हैं
.

थोडी ही देर में हम पोर्ट लुईस के सर शिवसागर रामगुलाम एअरपोर्ट पर पहुँच गए. वहॉ पर अ.भा.क.स.की टीम हमारे स्वागत में हमारे लिए गाडी लेकर आई है, उन्होंने मोतियों की माला पहना कर हमारा स्वागत किया फिर हम उनकी गाडी में बैठ गए. गाडी में एक गाइड भी है,जिसका नाम वरुणा है,वह एक-एक दृश्य को बारीक़ी से समझाती है,सबसे पहले हम " कासा फ्लोरिडा" हॉटेल गए,वहॉ हमने डिनर और विश्राम किया.

13 जून 2016
सुबह जलपान के तुरंत बाद हमारी गाडी आ गई, हम सब बैठ गए और हम मॉरीशस के वनस्पति-उद्यान की ओर भ्रमण के लिए निकल गए. वहॉ की मनोहारी छ्टा देख कर हम अभिभूत हो गए. हमने फोटोग्राफी भी की.हमारी गाइड वरुणा हमें वनस्पति विशेष के गुण-दोषों से रूबरू कराती रही.फिर नमस्ते रेस्टोरेण्ट में हमने लंच किया और प्रधानमंत्री आवास की ओर निकल गए क्योंकि प्रधानमंत्री जी से हमें मिलना था, प्रधानमंत्री जी ने हमसे बातचीत की और हम सबका अभिनंदन किया. हमने उन्हें अपनी किताबें भेंट की. वहॉ से निकल कर हम एक मॉल में घूमने चले गए और फिर उसी मॉल से नीचे उतर कर एक सुंदर जगह थी जिसका नाम लभ पॉइण्ट था वहॉ गए . वहॉ हमने फोटोग्राफी की. हमने वहॉ शॉपिंग भी की. हमें बहुत मज़ा आया. शाम को हमने अपने हॉटेल में डिनर किया और विश्राम किया.

14 जून 2016
आज हम जलपान के पश्चात शिप मॉडल फैक्ट्री देखने जा रहे हैं. यहॉ हर कारीगर बडी लगन से अपना काम कर रहा है. यह कारखाना बहुत आकर्षक है. अब हम यहॉ से निकल कर चमरेल जलप्रपात देखने जा रहे हैं.इस प्रपात में दो धारायें हैं.यहॉ हमने फोटोग्राफी कर ली है और अब हम गंगा तालाब की ओर बढ रहे हैं. आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व अंग्रेज, हमारे भोले-भाले पूर्वजों को-" तुम पत्थर ढोना और हम तुम्हें सोना देंगे" कहकर बुला लेते थे और कभी जाने नहीं दिए. कलकत्ते के कुली-घाट से लोग यहॉ आते तो थे तो अपने साथ गंगा-जल लेकर आते थे और इसी तालाब पर चढा देते थे, इस तरह इसका नाम गंगा तालाब पड गया. यहॉ शिवरात्रि में बडा महोत्सव होता है. तालाब के बीचों-बीच शिवजी की बहुत बडी मूर्ति है.अभी रूबेन रेस्टोरेण्ट में भोजन करके अब हम सतरंगी भूमि की ओर बढ रहे हैं.

15 जून 2016
आज हम समुद्र तट पर हैं.यह बहुत आकर्षक है,मनोहारी है. हमने यहॉ तरह-तरह की बोटिंग की,फोटोग्राफी की . बहुत मज़ा आया. अरे लंच-टाइम हो गया.चलिए सीमांस रेस्टोरेण्ट में लंच करते हैं.अब यहॉ से हम शॉपिंग करते हुए अपने हॉटेल पहुँच गए हैं. अभी हम विश्राम करके " गोपीओ" महेन उच्चाना जी के कार्यक्रम में जा रहे हैं. वहॉ हमें भारतीय दूतावास के विनोद मिश्र जी मिले, उन्होंने हमसे बातचीत भी की.मैंने वहॉ काव्यपाठ किया,सभी ने ध्यान से सुना और सराहा भी, मुझे बहुत अच्छा लगा.वहॉ हमारी मुलाकात सरिता बुधु दीदी से हुई,वे वहॉ भोजपुरी की अध्यक्षा हैं.हमने वहॉ डिनर भी किया और फिर अपने हॉटेल में लौट आए.

16 जून 2016
आज हमारी ओर से एक कार्यक्रम हो रहा है जिसके मुख्य अतिथि हैं-मॉरीशस के उप-राष्ट्रपति परमा शिवम पिल्लई व्यापुरी.साथ में महेन उच्चाना, देविका भाभी, सरिता दीदी और विनोद मिश्र जी भी आए हैं.कुलगीत से हमारे कार्यक्रम का आरंभ हुआ.कुलगीत गाने का दायित्व मुझे मिला था. मेरे साथ करुणा,मधुलिका और मीना भी थी. इसके बाद अ.भा.क.स.के संस्थापक डा. लारी आज़ाद ने अतिथियों को अ.भा.क.स.के उद्देश्य का उल्लेख किया-1-नारी सशक्तीकरण 2- भाषाई सौहार्द्र- राष्ट्रीय - एकता 3- सम्पूर्ण विश्व में शांति का संदेश.मुख्य अतिथि ने मुझे " The Pride Of India "से सम्मानित किया.मॉरीशस में मुझे " मिस हैट्रिक " का सम्मान भी मिला. यह मेरे लिए अभूतपूर्व अनुभव  है.अब हम अतिथियों के साथ लंच करने जा रहे हैं,लंच के तुर्ंत बाद हमें एअरपोर्ट की ओर रवाना होना है. हमने पैकिंग की और अपना बैग लेकर बस में आकर बैठ गए हैं. अभी हम " अप्रवासी घाट " जा रहे हैं, यह जगह मुझे अंडमान के सेल्यूलर जेल जैसी लग रही है. ऑखों में ऑसू लेकर हम अपने वतन की ओर लौट रहे हैं.अलविदा मॉरीशस बहुत याद आओगे.
शकुन्तला शर्मा, भिलाई,छत्तीसगढ       

Sunday, 22 May 2016

गुरु दक्षिणा

                      [  कहानी ]
मैं और सुकवारा दोनों संगवारी, कोसला के प्राथमिक शाला में पहली से पॉचवीं तक साथ - साथ पढा करते थे
मेरी सहेली सुकवारा का घर गॉव के बाहर तालाब के किनारे बना हुआ था. उसके पिता चमडे का जूता बनाते थे और वही उनके परिवार की आमदनी का जरिया था. मुझे सुकवारा अच्छी लगती थी.वह कई खेलों में मुझे हरा कर ईनाम जीत लेती थी. जैसे घडा- दौड, कबड्डी, सुई-धागा दौड में उसका कोई सानी नहीं था. घडा-दौड में तो वह 'पामगढ' जाकर भी ईनाम लेकर आती थी. कबड्डी में मुझे हमेशा पकड लेती थी, मैं कभी भी उसे न पकड सकी. मदरसे में हम दोनों पास-पास ही बैठते थे पर हमारे गुरुजी को यह बात अच्छी नहीं लगती थी इसीलिए हम गुरुजी के सामने दूर-दूर रहते थे पर न जाने कैसे गुरुजी हमारी हर बात को बिना बताए जान जाते थे. उसके और मेरे घर का रास्ता भी ऐसा था कि मेरे घर के बाद उसका घर पडता था. मेरे नाना - नानी कभी भी मुझे सुकवारा के साथ खेलने - कूदने के लिए मना नहीं करते थे पर घर के नौकर- चाकर को इससे बडी तकलीफ होती थी. कारण तो वही जानें पर हम बिना किसी की परवाह किए साथ-साथ खेलते-कूदते,हँसी-खुशी जी रहे थे.

स्कूल में एक गुरुजी, सुकवारा को बहुत डॉटते थे और बुरा-भला कहते रहते थे. इमला में गलती होने पर कहते थे- ' पढाई तेरे बस की बात नहीं है सुकवारा ! तुम चुपचाप अपने घर में बैठो और गोबर सैंतो.' उसकी ऑखें छलछला जाती थीं और वह मेरी ओर देखती थी फिर मैं गुरुजी से पूछती थी-' गुरुजी ! सुकवारा क्यों नहीं पढ सकती ? जब मैं पढ सकती हूँ तो सुकवारा क्यों नहीं पढ सकती ?' गुरुजी मुझे गुर्रा कर देखते थे किसी गुरुजी ने मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया क्योंकि सभी गुरुजी मुझे 'भॉची' मानते थे.

हम पॉचवीं कक्षा में पहुँच गए थे. परीक्षा पास आ गई थी, बडे गुरुजी अपने घर के सामने बुला कर, पॉचवीं के सभी बच्चों को पढाते थे. किसी ने सुकवारा से कह दिया- ' सुकवारा ! तुम मत आना.' सुकवारा को बहुत खराब लगा, उसने मुझे बताया, मैं सुकवारा का हाथ पकड कर बडे-गुरुजी होरीलाल के पास गई और उन्हें पूरी बात बता दी. बडे गुरुजी ने मझसे कहा- ' अच्छा किया जो तुमने मुझे बता दिया.' उन्होंने सुकवारा के सिर पर हाथ रख कर कहा-' बेटी! तुम कभी किसी से मत डरना. मैं तुम्हारे साथ हूँ. तुम भी सब बच्चों के साथ मेरे घर पर पढने के लिए आना.'

उस दिन के बाद सुकवारा के भी पंख निकल आए. हम दोनों बहुत मस्ती करते साथ-साथ पढाई में भी ध्यान देने लगे. पॉचवीं में हम दोनों के अच्छे नम्बर आए.सुकवारा ने 11वीं पास की और वह शिक्षिका बन गई. साथ-साथ प्रायवेट परीक्षा देती रही- बी.ए.कर ली एम.ए. कर ली. बी. एड. कर ली.धीरे-धीरे प्रमोशन भी होता रहा. अभी वह हिन्दी की व्याख्याता है.

एक दिन एक बुज़ुर्ग उसके पास आए, उनकी ऑखों में ऑसूँ थे, सुकवारा ने उनसे पूछा-' आप रो क्यों रहे हैं ? ' तो उन्होंने बताया- ' मेरा बेटा किशोर दसवीं में दो साल से फेल हो रहा है. पढाई में ध्यान ही नहीं देता, आप ही बताइए मैं क्या करू ?' वह फूट-फूट कर रोने लगा.' सुकवारा ने कहा- ' किशोर तो मेरी ही क्लास में पढता है, मैं उसकी क्लास टीचर हूँ, रुकिए मैं उसे बुलवाती हूँ.' किशोर आया तो सुकवारा ने उसे समझाया- ' देखो किशोर ! तुम्हारे लिए तुम्हारे पापा कितने परेशान हैं, तुम मन लगा कर पढाई करो और 60% से ज्यादा नम्बर लाकर दिखाओ.' ' यस मैम' कह कर किशोर ने सुकवारा के पॉव छुए और क्लास में चला गया.

सुकवारा को लगा कि यह चेहरा कुछ परिचित लग रहा है और जब उसने किशोर के पिता का नाम देखा तो पता चला कि यह तो वही गुरुजी हैं जो हमेशा उसका अपमान किया करते थे. फिर क्या था सुकवारा ने उस किशोर का ऐसा ध्यान रखा जैसे कोई अपने सगे भाई का ध्यान रखता है.देखते ही देखते एक साल बीत गया और इस बार किशोर ने सुकवारा को निराश नहीं किया, वह केवल अपने स्कूल में ही नहीं अपितु पूरे पामगढ में अव्वल आया है ।                          


Monday, 11 January 2016

भूमिका

      बेटी बचाओ

" बेटी बचाओ "  नारा देश को संयमित - संतुलित करने का संदेश सम्प्रेषित करता है । अजन्मी - बेटी को दुनियॉ देखने के पूर्व मार डालना,जघन्य हत्या तो है ही, सामन्ती सोच की शोषण - वृत्ति और रूढिग्रस्त पारम्परिक प्रवृत्ति का पोषण भी है जो प्रकारांतर में पुरुषवादी समाज के अहं की तुष्टि का कुत्सित स्वरूप दिग्दर्शित करता है । जन्म लेते ही बेटे और बेटी में अंतर निर्दिष्ट करना और जीवन पर्यन्त इस भेद को बनाए - बढाए रखना निम्न - निकृष्ट व सीमित - संकुचित दृष्टि का प्रतिफलन है जो अद्य - पर्यन्त अक्षुण्ण है । शिक्षा - शास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस विषय को वैचारिक वितान विनिर्मित कर विवेचित विश्लेषित करते हैं जबकि एक कवि संवेदना से संपृक्त कर इस तरह प्रस्तुत करता है कि वह सीधा मर्म को स्पर्श करता है । ' बेटी ' वह भी यदि विकलॉग हो तो भावना की छलॉग कविता में, आख्यानकता का आश्रय ढूँढती है और यदि लेखनी कवयित्री की हो तो 'सोने में सुहागा ' का मुहावरा मूर्त्त हो जाता है ।

एक महिला साहित्यकार के रूप में शकुन्तला शर्मा देश - विदेश में छत्तीसगढ का नाम रोशन कर रही हैं । इनकी रचनाओं में इक्कीसवीं सदी के नव्य स्पर्श  "विकलॉग - विमर्श  " का  वृत्त विनिर्मित करने का उद्यम उपस्थित है । छत्तीसगढी की विकलॉग -विमर्ष-विषयक लघु-कथाओं का संग्रह  "करगा" इनकी चर्चित कृति है और अब इसके बाद  "बेटी बचाओ " शीर्षक  से विकलॉग विमर्श के आख्यानक गीतों का संग्रह प्रस्तुत हो जाना महत्वपूर्ण घटना का सूत्रपात ही कहा जाएगा। कवयित्री की घुमक्कड-वृत्ति और अकादमिक, साहित्यिक,सामाजिक  संस्थाओं  के  आमंत्रण पर सहर्ष उपस्थित होने की प्रवृत्ति ने उन्हें अनुभव का जो व्यापक धरातल दिया उससे उनके विषय को भी असीम आकाश मिला । " जिन खोजा तिन पाइयॉ " के अनुरूप रुचि -प्रवृत्ति की नींव " जहॉ चाह वहॉ राह "  के भवन को आकार देती है तदनुरूप शकुन्तला शर्मा जो देखना चाह रही हैं, वह दृश्य उनके समक्ष प्रस्तुत हो जाता है । आसपास से लेकर प्रदेश और देश - विदेश - पर्यन्त   उन्हें जितने भी विकलॉग मिले उन्होंने उनके जीवन को जाँचकर और आदमियत को ऑक कर आख्यानक गीतों का जो ताना - बाना रचा, वह हिन्दी काव्य - जगत के लिए भी नयी भाव - भूमि प्रदान करती है । उन्होंने संग्रहीत इंक्यावन विकलॉगजन्य आख्यानक गीत लिखकर विकलॉगों का जो जीवन -दर्शन प्रस्तुत किया वह अनुपम - अद्भुत है । इन कथा - गीतों में कहीं भी विकलॉग - जन, दया या कृपा के पात्र नहीं हैं । वे सभी आत्मबल के पथ से, आत्मनिर्भरता का गन्तव्य ही प्राप्त नहीं करते अपितु उत्कट - जिजीविषा के जज़्बे को  अक्षुण्ण रखकर उत्कर्ष को स्पर्श कर लेने का माद्दा भी रखते हैं । वे सकलॉगों की तरह न शार्टकट का सहारा लेते हैं न और न ही बेईमानी और भ्रष्टाचार की सीढी से आगे बढने का तिकडम करते हैं । सत्कर्म से सद्गति को सिद्ध करने और प्रतिभा तथा मेधा के आश्रय से, गतिमान होने के लिए वे साधनामय कर्मठ को लक्ष्य बनाते हैं । अंग विशेष की अल्पता या शिथिलता के कारण, प्रकृति ने इन्हें जो अतिरिक्त शक्ति - क्षमता प्रदान की है,उसे सक्रिय करके वे जटिल - जीवन को विरल तथा प्रतिकूल स्थिति को अनुकूल बना लेने में सिद्ध - हस्त होते हैं । ऐसे चरित्रों को खोजकर, प्रसंगों तथा घटनाओं को उकेर कर, आख्यान के रूप में अधिष्ठित कर, संवेदना के सॉचे में ढालकर, काव्य के रूप में, अभिव्यक्त कर देना सरल कार्य नहीं है । यह शकुन्तला शर्मा जैसी सिद्ध कवयित्री से ही सम्भव है ।

विकलॉग को सहानुभूति नहीं,समानुभूति चाहिए जो कवयित्री के मन में भरी हुई है -

' सरगुजा में एक संगवारी है पर उसके नहीं हैं दोनों हाथ ।
वैसे तो हम दूर - दूर हैं पर मन से रहते हैं साथ - साथ ॥ '

निशक्त निर्विवाद रूप से अशक्त नहीं,सशक्त हैं जो अपनी प्रतिभा का लाभ समाज को समर्पित कर देते हैं -

' जिसको क़मज़ोर समझते थे वह धुरी पडी सब पर भारी ।
उससे साक्षात्कार हो गया यह भी है तकदीर हमारी ॥
वह दुनियॉ - भर में जानी जाती औषधि अन्वेषण करती है
नवजीवन जग को देती है सञ्जीवनी रग में भरती है ॥'

विकलॉगों की कर्मठता, ईमानदारी सच्चरित्रता, उदारता, कृतज्ञता आदि नानाविध दिव्य - गुणों को अनावृत्त करके कवयित्री ने उनके साथ जो संलग्नता और अंतरंगता दिखलाई है, यही विकलॉग - विमर्श का गन्तव्य - मन्तव्य है । उल्लेखनीय है कि सामान्य सी चोट या चुभन हमारा धीरज छीन लेती है परिणामतः हम उपचार और आराम करते हैं, जबकि एक अंग की अनुपस्थिति के बाद भी विकलॉग - जन अपने कार्य को कुशलता पूर्वक अर्थात् सहर्ष सम्पादित कर लेते हैं -
' छोटी सी चोट से हम चिल्लाते लेते नहीं धैर्य से काम
कुछ भी काम नहीं कर पाते करते हैं दिन भर आराम ।
पर बिना हाथ की होकर भी वह पैरों से करती है काम
जिजीविषा उसकी प्रणम्य है करती हूँ मैं उसे प्रणाम ॥'

विकलॉगों के मन में परोपकारिता व पर दुख कातरता है, वह सहज रूप से सकलॉगों में सम्भव नहीं है -
' वाणी - वैभव से वञ्चित बुधिया इतना सब कुछ करती है
आओ उससे जाकर पूछें वह मन में क्या गुनती रहती है ।
उसने लिख कर मुझे बताया यह जीवन है पर - उपकार
परोपकार में सच्चा सुख है यह ही है जीवन का आधार ॥'

विकलॉग पुष्पा सी. बी. आई. में अधिकारी है, जिसने डाकुओं से, रेल - यात्रियों को बचा कर स्फूर्ति - साहस और विवेक - युक्ति का जो करतब दिखाया, वह सन्तुलन - कुशलता व प्रबन्धन - पटुता सचमुच प्रणम्य है -'उस दिन पुष्पा ने मुझे बचाया मुझ पर है उसका एहसान
एक - हाथ वाली लडकी पर अब मुझको भी है अभिमान ।
त्वरित सोच से ही दिखलाया अद्भुत अनुपम आस अदम्य
पराक्रमी  है  मेरी  पुष्पा  वह  हस्ताक्षर  है  एक  प्रणम्य । '
विकलॉग किसी के आश्रय का मोहताज़ नहीं होना चाहता । वह अपना रास्ता बनाने और उस पर स्वतः प्रस्थित होने का पक्षपाती है -
' मदद किसी की लिए बिना ही देखो उसके उच्च - विचार
अपना काम स्वयं करती  है नहीं किसी पर  है वह भार ।'
एक ही भाव - भूमि पर रचित कविताओं में पुनरुक्ति का प्रश्रय सहज है लेकिन यह दोष के रूप में नहीं, अपितु विभिन्न - प्रसंगों में उसे पुष्ट करने की दृष्टि से प्रयुक्त है । इसी तरह लोक - कथाओं के  'लोक - अभिप्राय ' की तरह वर्णन - साम्य [ पुनरुक्ति - प्रयोग ]  काव्य को दुर्बल नहीं प्रत्युत सबल - समर्थ बनाने का संयोजन सिद्ध हुआ है -
' रात के पीछे  दिन आता  है दिन  के पीछे आती रात
एक एक दिन करते करते बीत गई कितनी बरसात ।'

भाषा पर कवयित्री का जबर्दस्त अधिकार है । सरल - सहज होते हुए भी इनकी भाषा सरल - सुबोध है । अरबी - फारसी और अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों के समाहार और यथावसर यत्किंचित् ऑचलिकता के व्यवहार से भाषा, भावों - विचारों को सम्प्रेषित कर पाने में सक्षम - समर्थ है । अलंकार भावोत्कर्ष में सहायक और छ्न्द, भावों के विधायक रूप में अलंकृत है । इस अभिनव कृति से यदि पाठकों को नयी दशा व दिशा की ओर मंथन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो यह इस कृति के प्रकाशन की सार्थकता होगी । शुभ कामनाओं सहित -
सी- 62, अज्ञेय नगर ,                                                          डा. विनय कुमार पाठक
बिलासपुर छ्त्तीसगढ                                                     एम. ए., पी. एच. डी., डी. लिट् [ हिन्दी ] 
मो- 092298 79898                                                      पी. एच. डी., डी. लिट् [ भाषा विज्ञान ]
                                                                                         निदेशक प्रयास प्रकाशन