Saturday, 27 April 2013

आचार्यकुलम

आचारानाम कुलम = आचारकुलम l प्राचीन काल से ही हमारा देश , अध्यात्म , विज्ञान , कला एवं शिक्षा का
केन्द्र रहा है l भारत में विद्याध्ययन हेतु , सम्पूर्ण विश्व के जिज्ञासु आया करते थे l नालन्दा , तक्षशिला , काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय एवं शान्तिनिकेतन इसके प्रत्यक्ष गवाह हैं l महात्मा गाँधी तो स्वयं , अनेक विद्यापीठ के
समान थे l विवेकानन्द ने सम्पूर्ण विश्व को ' वसुधैव - कुटुम्बकम' के दर्शन को  अनुभूति - परक शैली में
समझाया l आज उसी परम्परा को आगे बढ़ाने का काम , योगगुरु बाबा रामदेव ने किया है l
उन्होंने 'आचार्यकुलम ' की स्थापना के माध्यम से शंखनाद करते हुए यह कहा है कि हम
अपनी  पावन  परम्परा  के प्रवाह को , अवरुद्ध नहीं होने देंगे l यह कल कल  प्रवाहिनी
परम्परा चिरकाल तक प्रवाहित होती रहेगी और अध्यात्म एवं ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में
एक नया अध्याय जोड़ती रहेगी l

इस अवसर पर मोरारी बापू ने कहा कि , योगगुरु बाबा रामदेव ने पहले आरोग्य दिया और
अब उनके 'आचार्यकुलम ' के माध्यम से , सम्पूर्ण विश्व को तीन तरह का अनुदान मिलेगा ,
शिक्षा , दीक्षा और भिक्षा l शिक्षा सत्य की , दीक्षा प्रेम की और भिक्षा करुणा की l आज
सम्पूर्ण विश्व उनकी ओर , आशा पूर्ण दृष्टि से निहार रहा है और बाबा , निरन्तर , चरैवेति की
शैली में , अपने कर्तव्य - धर्म का निर्वाह कर रहे हैं l उनमें बाल सुलभ सरलता है ----
' करती है फ़रियाद ये धरती कई हजारों साल तब होता है जाकर पैदा कोई माई का लाल l '
मोरारी बापू ने , नरेन्द्र मोदी की , प्रशंसा करते हुए कहा कि - हमारे गुजरात के मुख्यमंत्री
अपने राज्य को ऐसे चला रहे हैं , जैसे अनुष्ठान कर रहे हों l

गुरु शरणानंद जी ने कहा कि - वेदव्यास जी ने ' महाभारत ' में कहा है  ' यतो धर्म: ततो जय: l'
जहाँ धर्म है , वहाँ जय है किन्तु यहाँ यह समझना आवश्यक है कि धर्म की परिभाषा क्या है ?
जो समष्टि के लिए हितकर है , वही धर्म है l उन्होंने नरेन्द्र की तारीफ करते हुए कहा कि वे
चाणक्य की तरह हैं और गुणों की कद्र करना जानते हैं , वे विरोधी के गुणों की भी प्रशंसा करते
हैं , बिल्कुल उसी तरह जैसे चाणक्य ने , अपने विरोधी नंद के अमात्य 'राक्षस ' को चन्द्रगुप्त का
अमात्य बनाया l

नरेन्द्र मोदी ने कहा कि - इक्कीसवीं सदी ज्ञान की सदी है l भारत ने सदैव ज्ञान - विज्ञान का
नेतृत्त्व किया है और भविष्य में भी करेंगे , हम भारतीयों का यह संकल्प है l विवेकानन्द कहा
करते थे कि मैं अपनी आँखों से देख रहा हूँ कि मेरी भारतमाता  विश्वगुरु के रूपमें  प्रतिष्ठित हो
रही है l हमारी सरकार अपनी दमन- नीति  से हमे डराना चाहती है , अरे ! हमें अँग्रेज नहीं डरा
सके तो ये क्या चीज़ हैं ? श्रेष्ठता को नकारने से काम नहीं चलेगा , यह हजारों बरस पुरानी
सांस्कृतिक धरोहर है l यदि रामदेव बाबा किसी और देश में होते तो उनके ऊपर कई पी एच डी
हो गई होती l सात्विक शक्ति की अनदेखी नहीं होनी चाहिए l पतंजलि - पीठ ने बहुत उत्तम
कार्य किए हैं , बाबा रामदेव ने मूलभूत परंपराओं को पुनर्जागृत किया है l हमारी यह परम्परा
रही है कि राजतंत्र पर धर्मतंत्र का अंकुश हुआ करता था पर अभी उल्टा हो गया है और यही
देश की विकृति का कारण है l अब देश की जनता को निर्णय लेना है कि आखिर वह क्या
चाहती है l

आज चाहे साहित्य हो , संस्कृति हो , कला हो , कृषि हो , खेल - कूद हो , राजनीति हो या
व्यापार हो , सबका भविष्य , राजनेता और उनके प्यादे ही लिखते हैं और यही हमारे देश
का दुर्भाग्य है , अब देखिये ऐसी स्थिति में 'आचार्यकुलम ' क्या अपने दायित्व का निर्वाह
भली- भाँति कर पायेगा ?

                                       शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]

7 comments:

  1. बोधपरक लेख के लिए बधाई . प्रणाम सहित सुप्रभात ...

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  2. आचार्यकुलम के लिए मंगलकामनायें ! आभार!

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  3. बहुत बधियाआलेख शकुन्तला जी .....
    आभार...

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  4. जीवन में संस्कार होना जरुरी हैं क्योंकि यह हमारे आचरण में
    समाया हुआ होता है,आपने सहजता से जीवन की गहन अनुभूतियों
    को आलेख में व्यक्त किया है
    सार्थक प्रस्तुति
    साझा करने का आभार
    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  5. ज्योति जी,
    आपने आचार्यकुलम के लिए ,इतने सुन्दर विचार व्यक्त किए , मैं आभारी हूँ.

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  6. आचार्यकुलम्‘ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो, शुभकामनाएं !

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  7. सुंदर उद्देश्य लिये सुंदर विचार.

    आभार.

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