एक
प्रेम - प्रहार,
मिलन - विरह हो,
दोनों अंगार ।
दो
प्रीत की डोर ,
नाज़ुक बहुत है ,
नहीं है छोर ।
तीन
अपना कौन ,
पता नहीं चलता ,
भला है मौन ।
चार
सम - अर्पण ,
सुनने में भला है ,
यह तर्पण ।
पाँच
कहाँ है प्रेम ,
मृग - मरीचिका है ,
नहीं है नेम ।
छ:
प्रेम की प्यास ,
आस है तब भी है ,
मन उदास ।
सात
मन है वही ,
जो निरंकुश सा है ,
मानता नहीं ।
आठ
मन सारथी ,
कहाँ ले जा रहा है ,
कैसा है साथी ।
नव
मन की पीर ,
नयन भर आए ,
बरसे नीर ।
दस
प्रेम की गली ,
बहुत सँकरी है ,
तिलांजली ।
ग्यारह
मन - दर्पण ,
हर पल माँगे है ,
सम - अर्पण ।
बारह
प्रेम में मन ,
नहीं पाता है चैन ,
बावरा मन ।
तेरह
सीधी सी बात,
नहीं पूछी जाती है,
साधू की जात ।
चौदह
प्रीत की रीत ,
सब कुछ अर्पित ,
मन के मीत ।
पन्द्रह
पते की बात
प्रेम की बिसात में,
प्रेमी की मात ।
सोलह
प्रेम की पाती ,
भाव अतिरेक में,
पढ़ी न जाती ।
सत्रह
प्रेम में मन ,
निर्मल दर्पण ,
कंपित मन ।
अठारह
प्रेम का रंग ,
उनका पदचाप ,
जल - तरंग ।
उन्नीस
प्रीत की कड़ी
हँसी की फुलझड़ी,
लड़ी की लड़ी ।
बीस
मन संसार ,
अपने में मगन ,
प्रेम है सार ।
इक्कीस
प्रेम की माला,
साँस जपती है ,
यही है हाला ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
प्रेम - प्रहार,
मिलन - विरह हो,
दोनों अंगार ।
दो
प्रीत की डोर ,
नाज़ुक बहुत है ,
नहीं है छोर ।
तीन
अपना कौन ,
पता नहीं चलता ,
भला है मौन ।
चार
सम - अर्पण ,
सुनने में भला है ,
यह तर्पण ।
पाँच
कहाँ है प्रेम ,
मृग - मरीचिका है ,
नहीं है नेम ।
छ:
प्रेम की प्यास ,
आस है तब भी है ,
मन उदास ।
सात
मन है वही ,
जो निरंकुश सा है ,
मानता नहीं ।
आठ
मन सारथी ,
कहाँ ले जा रहा है ,
कैसा है साथी ।
नव
मन की पीर ,
नयन भर आए ,
बरसे नीर ।
दस
प्रेम की गली ,
बहुत सँकरी है ,
तिलांजली ।
ग्यारह
मन - दर्पण ,
हर पल माँगे है ,
सम - अर्पण ।
बारह
प्रेम में मन ,
नहीं पाता है चैन ,
बावरा मन ।
तेरह
सीधी सी बात,
नहीं पूछी जाती है,
साधू की जात ।
चौदह
प्रीत की रीत ,
सब कुछ अर्पित ,
मन के मीत ।
पन्द्रह
पते की बात
प्रेम की बिसात में,
प्रेमी की मात ।
सोलह
प्रेम की पाती ,
भाव अतिरेक में,
पढ़ी न जाती ।
सत्रह
प्रेम में मन ,
निर्मल दर्पण ,
कंपित मन ।
अठारह
प्रेम का रंग ,
उनका पदचाप ,
जल - तरंग ।
उन्नीस
प्रीत की कड़ी
हँसी की फुलझड़ी,
लड़ी की लड़ी ।
बीस
मन संसार ,
अपने में मगन ,
प्रेम है सार ।
इक्कीस
प्रेम की माला,
साँस जपती है ,
यही है हाला ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
गागर में सागर..बधाई !
ReplyDeleteसारे हाइकू बहुत सुन्दर ..नावक के तीर जैसे।
ReplyDeleteजीवन का भेद बतलाते सुन्दर हाइकू
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