Saturday, 6 April 2013

मेरे सब कुछ

                                     
इतने दिनों के बाद तुम्हारा घर लौटना ,मन को उद्वेलित कर रहा है
तुम्हारा नित नूतन स्पर्श देह  में सिहरन भर रहा है .

असंख्य महाकाव्यों से भरी तुम्हारी ऑंखें ,मुझे भावशून्य बना देती हैं
मेरे होठों में दबे शब्द , तुम्हारे पास जाने से कतराते हैं .
दुबक कर छिप जाते हैं , रात में सरगोशी के लिए .

तुम सचमुच वात्स्यायन हो , तुम्हारी हर चेष्टा मोहक है
तुम्हारा चुप रहना भी उतना ही मुखर है जितना तुम्हारा बोलना .

तुम्हारी शरारतें , तुम्हारे निश्छल मन की बयानबाजी है
मैं तुम्हारी सरलता  पर मुग्ध  हूँ , तुम्हारे होंठों के स्पर्श से ,
जो शब्द थिरकते हुए लहराते हैं ,वे मुझे मन्त्र जैसे लगते हैं .

तुम्हारे व्यक्तित्व में सम्मोहन है , मैं जान चुकी हूँ कि
मैं चाहे जितनी तुम्हारी शिकायतें करूं पर
तुम्हारे बिना जी नही सकती .

तुम मेरी धडकन हो , मेरा चिन्तन मनन निदिध्यासन हो.
एक शब्द में कहूँ , तो तुम्हीं मेरे जीवन का फागुन हो ,
होली का रंग हो , सुखद तरंग हो ,
तुम्हीं अनँग हो , तुम्हीं अनंग हो .

                                                 शकुन्तला शर्मा
                                                 भिलाई [छ ग ]



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