जब - जब मैं चलते - चलते लड़खड़ाई मेरे गीतों ने मुझे थाम लिया
जब - जब मैं निराश हुई मेरी कविताओं ने मुझे सहारा दिया l
जब - जब मैं रोई मेरी कहानियों ने मुझे गले से लगा लिया
जब - जब मैं अकेली हुई मेरे निबंधों ने मेरा साथ निभाया l
जब - जब मैं जीवन समर में हारी मेरी गजलों ने मुझे हौसला दिया
जब - जब मैं टूट कर बिखरी मेरे हाइकू ने मुझे संभाल लिया l
जब मैं दीन - हीन हुई मेरे नाटकों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया
मेरी बेवकूफी को मेरे सहचरों ने अपने दामन में छिपा लिया l
जब - जब मुझे अहंकार ने छुआ मेरे सहचरों ने मुझे उबार लिया
मेरी कमियों को उजागर करके कसौटी पर कसने का उपक्रम किया l
शकुन्तला शर्मा
भिलाई [छ ग ]
निरपेक्ष दृष्टि, तटस्थ आत्मावलोकन.
ReplyDeleteसच है, कविता औषधिसम हैं।
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