Tuesday, 9 April 2013

मेरे सहचर

                             
जब - जब मैं चलते - चलते  लड़खड़ाई  मेरे  गीतों  ने मुझे  थाम लिया
जब - जब  मैं   निराश  हुई  मेरी   कविताओं   ने  मुझे   सहारा   दिया l

जब - जब   मैं  रोई   मेरी   कहानियों   ने  मुझे  गले  से  लगा   लिया
जब - जब   मैं   अकेली   हुई   मेरे  निबंधों  ने  मेरा   साथ   निभाया l

जब - जब मैं जीवन समर में हारी मेरी गजलों ने  मुझे  हौसला दिया
जब - जब  मैं  टूट  कर  बिखरी  मेरे  हाइकू  ने  मुझे  संभाल  लिया l

जब  मैं दीन - हीन हुई मेरे नाटकों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया
मेरी  बेवकूफी  को   मेरे   सहचरों  ने  अपने  दामन  में  छिपा लिया l

जब - जब मुझे अहंकार ने  छुआ  मेरे सहचरों  ने  मुझे  उबार  लिया
मेरी कमियों को उजागर करके कसौटी पर कसने का उपक्रम किया l

                                           शकुन्तला शर्मा
                                            भिलाई [छ ग ]

2 comments:

  1. निरपेक्ष दृष्टि, तटस्‍थ आत्‍मावलोकन.

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  2. सच है, कविता औषधिसम हैं।

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