Friday, 27 February 2015

मन का दिया जलाए रखना

बीना  छोटी  सी  बच्ची  है  पर  बीना  है  प्यार  की  मारी 
अपमानित  होती  है  घर  में  पर  बीना  है कितनी प्यारी ।

बोल  नहीं  सकती  है  बीना  पर  पढने  का  शौक  बहुत है
पेन्सिल को कागज़ पर घिसती चित्र बनाती वह अद्भुत है ।

धीरे - धीरे  उस  बच्ची  ने  बिल्ली की एक तस्वीर बनाई
फिर चिडिया फिर चूहा  मोर  सब पर अपना हाथ चलाई ।

एक दिन बीना गाय बनाई फिर बन गया गाय का बछडा
सिखलाती थी अब  मॉ  बोल पर बडा ढीठ था वह बछडा ।

पर बीना भी तो ज़िद्दी थी मॉ बोल यही था उसका कहना
फिर भी बछडा चुप ही था पर बीना को आ गया बोलना ।

मॉ - मॉ  कहती  पल्ला - भागी फौरन अपनी मॉ के पास
मॉ की ऑखें  भीग  गई  थीं आज मिला है मॉ को खास ।

देखो कभी निराश न होना आशा का दामन थामे रखना
जितना भी हो घोर- अ‍ॅधेरा मन का दिया जलाए रखना ।

Saturday, 14 February 2015

कुछ भी नहीं असंभव होता

राधा  देख  नहीं  सकती  है  पढने  से  भी  वह  वञ्चित  है
खीख  उसे  मिलती  है  घर  में  बचपन  में  सुख वर्जित है ।

सूना - पन  था  साथी उसका  सुख  था बिल्कुल अनजाना
उसके  रुदन  में  गान छिपा था रो - कर उसने गाया गाना ।

क्या  सुन्दर - स्वर  था  राधा  का  राधा खुद पर रीझ गई
फिर  मन्दिर  में  जाकर उसने  गीत -  सुनाए  कई -  कई ।

मन्दिर  में  भीड  बहुत  है आज  सबने उसका  गीत सुना
बडे - पुजारी  ने  खुश - हो  कर  भजन  के  लिए उसे चुना ।

मंदिर  में  वह  रोज  सुनाती  श्याम को सुंदर - सुंदर गीत
उसकी  विनती  सुनी  श्याम  ने उसे बनाया मन का मीत ।

पूरे -  देश  में  चर्चा  है अब  राधा  के सु - मधुर गायन की
यश -  वैभव  सब  कुछ मिलता है प्रेम - पूर्ण पारायण की ।

राधा  के  गीतों  की  सी - डी दुनियॉ भर में अब है बिकती
यश का तरु फल  फूल रहा है सुर में कई मुरकियॉ बनती ।

राधा - रानी  को  मिलते  हैं  बडे - बडे अनगिन - सम्मान
क़मज़ोरी ही ताकत बन गई  रुदन  बन गया था वरदान ।

हर मानव में क़मज़ोरी है यह ही जब ताक़त बन जाती
कुछ  भी  नहीं असंभव  होता आशा  ही  बलवान बनाती ।
  

Wednesday, 11 February 2015

उज्जैन में एक महिला रहती है

उज्जैन  में  एक  महिला  रहती  है पर वह लँगडी है बेचारी
उस की  एक  छोटी - बच्ची  है  कैसे  पाले  भूख  की  मारी ?

एक - दिन मुझसे मिलने आई अपनी दिक्कत मुझे बताई
'क्या आता है मुझे बताओ' 'कुछ- कुछ आती  मुझे सिलाई ।'

'मेरी  सहेली  की  फैक्ट्री  है क्या तुम उसमें काम - करोगी
प्रति - दिन  लण्च मिलेगा नीता कम पैसों में काम करोगी ?'

अंधे  को  मिल  गई थी लाठी ऑखों में अब चमक आ गई
उसको फैक्ट्री तक पहुँचाया मन माफिक वह काम पा गई ।

उस  फैक्ट्री  में  महिलायें  ही  केवल  करती  हैं  सब - काम
बच्चों  के  कपडे  बनते  हैं  कुरता क़मीज़ और कई तमाम ।

घर  मिल  गया  वहॉ  नीता  को  मॉ  के  संग  बेटी रहती है
बेटी  वहॉ  बहुत  खुश  रहती ऑगन - बाडी में वह पडती है ।

रात  के  पीछे  दिन  आता  है  दिन  के  पीछे  आती - रात
एक - एक  दिन  करते - करते  बीत  गई कितनी बरसात ।

नीता  का  बढ  गया  है  वेतन नमिता बारहवीं - पढती है
नमिता  की  पढाई  का  खर्चा फैक्ट्री स्वयं वहन करती है ।

नमिता- पढने में होशियार है सी  ए बनूँगी वह  कहती  है
देखो आगे क्या होता है मेहनत  ही  किस्मत - गढती  है ।

फैक्ट्र्री के संग - संग नमिता भी अब तेजी से दौड रही है
उद्यम  सदा - सफल  होता  है  यही  बात  सर्वदा  सही है ।

उद्योग जगत में इस फैक्ट्री को मिलता है अनेक सम्मान
महिलायें  प्रोत्साहित - होतीं उनका  भी  बढता  है मान ।

नमिता अब  सी - ए बन कर  के  इस  फैक्ट्री में आई  है
नीता  ने  एक  पार्टी  दी  है पर ऑख उसकी भर आई है ।

'मैंने  कभी  नहीं  सोचा  था  मेरी  बेटी पढ - लिख लेगी
यह फैक्ट्री हम सब की मॉ है जीवन भर उपकार करेगी ।

गला भर आया  है नीता का बोल नहीं सकती कुछ और
पर जो उद्यम - पथ  पर चलता वह पाता है उत्तम - ठौर ।  

Sunday, 8 February 2015

मेहंदी

" अशुभ हो तुम निकलो इस घर से
              अपनी शकल दिखाना मत ।
पति अपनी पत्नी से बोला
             लौट के फिर अब आना मत ।"

राखी कानी है बचपन से
             सत्य बता कर हुई थी शादी ।
पिता ने दो बीघा ज़मीन दी
                  पर देखो उसकी बरबादी ।

ससुराल में सास ननद देवर भी
                   हर कोई कहता है कानी ।
पति भी उसको कानी कहता
             कभी न बोला प्रेम की बानी ।

रो - रो कर बदहाल थी राखी
         मात - पिता को बात बताई  ।
फिर भाई जब लेने आया
           तो उसके साथ चली आई  ।

उसकी सखियों ने उसे संभाला
              तू मेरे पार्लर में चलना ।
मेहंदी तो खूब लगाती है तू
       कल से यही काम तू करना ।

राखी माला के पार्लर में
       मेहंदी की एक्सपर्ट बन गई। 
बस थोडे दिन में राखी की
   उसके पार्लर में धाक जम गई ।

मेहंदी में राखी प्रवीण थी
       खूब उसका मन लगता था ।
बारीकियॉ समझती थी वह
       कलाकार मन में पलता था ।

मन पसन्द वह काम मिला है
        राखी को यह रास आया है ।
हॉबी ही व्यवसाय बन गया
    निज को बहुत सहज पाया है ।

थोडे ही दिन में अब राखी
         मेहंदी का पर्याय बन गई ।
उसके हाथों की यह मेहंदी
       जगह-जगह मशहूर हो गई ।

बडे - बडे घर की बहुयें भी
              आती हैं राखी के पास ।
मेहंदी में भी होड लगी है
           राखी की मेहंदी है खास ।

अब तो मिलते ही रहते हैं
         राखी को कितने सम्मान ।
पति का रुख भी नरम हुआ है
       राखी को मिल रहा है मान ।

टीवी में इन्टर - व्यू देने
     राखी अक्सर जाती रहती है ।
सब कुछ सच- सच कह देती है
        पति की दिक्कत बढती है ।

उसका पति लेने आया है
    कहता है " मुझे माफ कर दो ।
भूल सभी से हो जाती है
         अब तो मुझे क्षमा कर दो ।"

टीवी चैनल पर राखी ने
            चाहने वालों से पूछा है ।
" ससुराल जाऊँ या न जाऊँ
     तुम्हीं बताओ क्या करना है ?"

नब्बे प्रतिशत जनता कहती
      " राखी अब वहॉ नहीं जाना ।
ज़ालिम हैं अपमान करेंगे
        उसकी बातों में मत आना ।"

पति ने जिसको अशुभ कहा था
        हज़ारों दुल्हन सजा रही है ।
लंबी लाइन में लगकर भी
          दुल्हन मेहंदी रचा रही है ।

उसकी मेहंदी दुनियॉ भर में
   बढ - चढ कर अब बोल रही है ।
दकियानूसी परम्परा की
            पोल मेहंदी खोल रही है ।

तिरस्कार मत करो किसी का
         हर मानव का हो सम्मान ।
पति ने अशुभ कहा राखी को
     अब दीन-हींन है वह इन्सान ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]




Wednesday, 4 February 2015

मैं कुछ भी कर सकती हूँ

छत्तीसगढ की भैरी भौजी
     परिचय की मोहताज़ नहीं है ।
लाई-बडी वाली कहलाती
        यही विशेषण आज सही है ।

एक समय था जब घर भर में
            होता था उनका उपहास ।
भैया भी संग छोड गए थे
           अब कहते हैं था परिहास ।

" निच्चट भैरी हावस भौजी"
        कह कर ननंदें चुटकी लेतीं ।
देवर पीठ के पीछे हँसते
          सास हज़ार गालियॉ देतीं ।

डट-कर काम करा लेते थे
     खाने को मिलता था उपवास ।
हार गई जब भैरी भौजी
          तब छोडा अपना आवास ।

दीन-हींन दुखियारी खुद थी
            पर मन था जैसे फौलाद ।
एक टोकरी धान को लेकर
      लाई- फोड कर किया निनाद ।

लाई से फिर बडी बनाई
         लगी बेचने बडी बना - कर । 
" लाईबडी बहुत अच्छी है"
        सबने यही कहा था खा-कर ।

धीरे - धीरे गॉव के बाहर 
          लाई - बडी ने जगह बनाई ।
अपने जैसों को संग लेकर
       फिर एक फैक्ट्री तभी लगाई ।

ऑर्डर पर ऑर्डर आते हैं 
            अब भैरी - भौजी के पास ।
लाई - बडी बाज़ार में पसरी
            रहता है चारों ओर प्रवास ।

पूरे - देश में भैरी - भौजी 
                पाती रहती हैं सम्मान । 
पूरा - देश साथ है उनके 
        अपमान बन गया है वरदान ।

जीवन में कभी निराश न होना
           भैरी - भौजी ने सिखलाया ।
रात अंधेरी जितनी भी हो
           राह दिए ने खुद दिखलाया । 

शकुन्तला शर्मा , भिलाई

Monday, 2 February 2015

चेतावनी

केशर की खुशबू आती है
          ऐसा है काश्मीर हमारा ।
दृष्टि जहॉ जाती बँध जाती
      वहॉ से उठती नहीं दोबारा ।

इस केशर की बस्ती में ही
       बसा हुआ  है डोडा -  गॉव ।
लहू - लुहान सदा रहता है
        दुश्मन का बन गया ठॉव ।

पडोसी की हरक़त ऐसी
         डोडा पर होता अत्याचार ।
उठकर भाग नहीं सकता है
         डोडा  है कितना - लाचार ।

डोडा में ही हया नाम की
         रहती है एक बच्ची प्यारी ।
बडी तेज है हया - हमारी
         वह सब पर पडती है भारी ।

पर वह सैनिक की बेटी है
         वह सारी बात समझती है ।
कभी पडोसी की हरक़त को
           वह हल्के में नहीं लेती है ।

जब पापा छुट्टी पर आते
         सिखलाते हैं बंदूक चलाना ।
हया ध्यान से सीखती है
       लगता उसका सही निशाना ।

गोधूलि के समय जब हया
             अदा कर रही थी नमाज़ ।
तभी अचानक सुनी थी उसने
          सरहद के उस पार आवाज़ ।

तीन - चार मुस्टंडे थे वह
          घुस रहे थे भारत-सीमा पर ।
हया ने उनको देख लिया था
               करते थे वे ऐसा अक्सर ।

बंदूक उठाया आज हया ने
             मार दिया चारों को आज ।
फिर इत्मिनान से अदा किया
           आज उसने अपना नमाज़ ।

हे खुदा पडोसी को समझा दे
          अपनी हरक़त से आए बाज़ ।
नापाक हरक़तों का जवाब है
                क़ुबूल करो मेरा नमाज़ ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग.]