एक किशोरी है सुन्दर सी वह दिया बेचने आई है
' दिए तुम्हारे सुन्दर हैं' यह सुन कर वह शर्मायी है ।
मैंने सौ दिए खरीद लिए मैंने सोचा दाम सही है
नज़र पडी उसके हाथों पर उसके तो दोनों हाथ नहीं हैं ।
मेरी ऑखें भर आईं थीं 'साथ तुम्हारे अभी कौन है ?'
' अकेली हूँ मॉ घर पर है 'आधा उत्तर अभी मौन है ।
'मॉ ने दिया बनाया होगा यहॉ से कितनी दूर है घर ?'
बच्ची मुस्काई फिर बोली 'चलिए यहीं पास है घर ।'
मैंने जल्दी से फिर उसका मोल ले लिया सब सामान
उसको अपने साथ बिठाई यही लगा मुझको आसान ।
उसके घर पहुँचे थे जब हम उसकी मॉ बिस्तर पर थी
उसकी तबियत ठीक नहीं थी वह बुखार से बेदम थी ।
बिन पूछे ही मुझे बताया 'मॉ की तबियत ठीक नहीं है
मेरी मॉ देख नहीं सकती घर में कुछ भी ठीक नहीं है ।
हम दोनों घर पर रहते हैं और हमारा नहीं है कोई '
इन शब्दों को कहते कहते लडकी फूट - फूट कर रोई ।
मैंने वैद्य तुरन्त बुलाया उसने आ कर मुझे बताया
' प्राण नहीं है शेष देह में ' तब मुझको भी रोना आया ।
भगवान भास्कर के जाने में समय शेष था उसी समय
कुछ लोग आए देह ले गए माटी - माटी में हुई विलय ।
गॉव के मुखिया को समझाई लडकी को मैं घर ले आई
बच्ची आने को उत्सुक थी उसकी यह बात मुझे भाई ।
अपने छोटे - छोटे पॉवों से दिया बनाती थी खुद बच्ची
बडे गर्व से मुझे बताया बात है उसकी बिल्कुल सच्ची ।
'शिल्पी' नाम दिया है मैंने अब वह मेरी ही बिटिया है
मेरा घर अब तक सूना था उसने सूनापन दूर किया है ।
आज मेरे घर दीवाली है लक्ष्मी खुद चल कर आई है
मेरे घने - अँधेरे घर में शिल्पी ही उजियारा लाई है ।
' दिए तुम्हारे सुन्दर हैं' यह सुन कर वह शर्मायी है ।
मैंने सौ दिए खरीद लिए मैंने सोचा दाम सही है
नज़र पडी उसके हाथों पर उसके तो दोनों हाथ नहीं हैं ।
मेरी ऑखें भर आईं थीं 'साथ तुम्हारे अभी कौन है ?'
' अकेली हूँ मॉ घर पर है 'आधा उत्तर अभी मौन है ।
'मॉ ने दिया बनाया होगा यहॉ से कितनी दूर है घर ?'
बच्ची मुस्काई फिर बोली 'चलिए यहीं पास है घर ।'
मैंने जल्दी से फिर उसका मोल ले लिया सब सामान
उसको अपने साथ बिठाई यही लगा मुझको आसान ।
उसके घर पहुँचे थे जब हम उसकी मॉ बिस्तर पर थी
उसकी तबियत ठीक नहीं थी वह बुखार से बेदम थी ।
बिन पूछे ही मुझे बताया 'मॉ की तबियत ठीक नहीं है
मेरी मॉ देख नहीं सकती घर में कुछ भी ठीक नहीं है ।
हम दोनों घर पर रहते हैं और हमारा नहीं है कोई '
इन शब्दों को कहते कहते लडकी फूट - फूट कर रोई ।
मैंने वैद्य तुरन्त बुलाया उसने आ कर मुझे बताया
' प्राण नहीं है शेष देह में ' तब मुझको भी रोना आया ।
भगवान भास्कर के जाने में समय शेष था उसी समय
कुछ लोग आए देह ले गए माटी - माटी में हुई विलय ।
गॉव के मुखिया को समझाई लडकी को मैं घर ले आई
बच्ची आने को उत्सुक थी उसकी यह बात मुझे भाई ।
अपने छोटे - छोटे पॉवों से दिया बनाती थी खुद बच्ची
बडे गर्व से मुझे बताया बात है उसकी बिल्कुल सच्ची ।
'शिल्पी' नाम दिया है मैंने अब वह मेरी ही बिटिया है
मेरा घर अब तक सूना था उसने सूनापन दूर किया है ।
आज मेरे घर दीवाली है लक्ष्मी खुद चल कर आई है
मेरे घने - अँधेरे घर में शिल्पी ही उजियारा लाई है ।
दिल को छूते अहसास...नमन आपकी लेखनी को..
ReplyDeleteदिल को छूते अहसास...नमन आपकी लेखनी को..
ReplyDeleteशिल्पी की जिजीविषा को सलाम
ReplyDelete