Sunday 8 March 2015

जया की जीत

जया  नाम  है  उस  लडकी  का  जेसलमेर में रहती है
बचपन  से  ही  वह  लंगडी  है उसकी अम्मॉ कहती है ।

पॉच  ऊँट  हैं उसके  घर  पर  ऊँट - सवारी  करती  है
सैलानी  को  वह खूब घुमाती  मॉड सुनाया  करती  है ।

जया खुश मिज़ाज़ है लेक़िन सबको वह खुश रखती है
दसवीं  कक्षा  में  पढती  है  खेल  में  भी आगे रहती है ।

काल - चक्र  चलता  रहता  है कभी नहीं करता विश्राम
दिन के बाद रात आती है पल- पल चलता है अविराम ।

बी. ए. पास  हो  गई  बिटिया पर ऊँट - सवारी करती है
यह उसकी रोज़ी - रोटी  है घर का ध्यान वही रखती है ।

घर में मॉ - बेटी रहती हैं पर  घर की हालत  पतली  है
मॉ  पडोस  में  बर्तन - धोती गाडी ले - दे कर चलती है ।

जया के ऊँट बहुत अच्छे हैं स्वामि - भक्त हैं वे सब ऊँट
जया  उन्हें  भाई  कहती  है  कभी  नहीं  कहती  है  ऊँट ।

जया ने मन में कुछ सोचा है अपने काम में देगी ध्यान
जब तक सर्विस नहीं मिली है चलेगा ऐसा ही अभियान ।

सैलानी आते ही रहते हैं  वह  ऊँट - सवारी भी करते हैं
पैसे  भी  मिल  ही  जाते  हैं पर जया से लडके जलते हैं ।

'लडकी हो एहसास करो तुम जया छोड दो अब यह काम
ऊँट  -  तुम्हारे  हम  देखेंगे  देते  रहेंगे  वाज़िब  -  दाम ।'

जया को यह मंज़ूर नहीं है  'मैं अपना  काम समझती हूँ
मुझ पर क्यों एहसान करोगे मैं अच्छे से जी  सकती  हूँ ।'

जया को अब मिल गई नौक़री वह लोकगीत में माहिर है
दूर - दर्शन में मिली नौक़री यह भी अब जग - जाहिर है ।

टी. वी.ऑफिस का एक सैलानी ऊँट - सवारी करने आया
जया का ऊँट ही उसको भाया उसने उसको मॉड सुनाया ।

उसके भीतर के गायक को जीवन ने भी भॉप लिया था
घर की माली- हालत को वह अच्छे से पहचान गया था ।

अच्छी - खासी मिली नौक़री अब उनका घर हँसता  है
अब  भी  है  संघर्ष  किन्तु  वह  थोडा  हल्का  लगता है ।

जया बहुत सुन्दर दिखती है उसे चाहने लगा है जीवन
मुँह से कभी नहीं बोला पर मन में ही है भारी- उलझन ।

जया के मुँह पर तो ताला है पर जीवन ने चुप्पी- तोडी
'बहुत प्यार करता हूँ तुमसे '  नेह  कडी उसने ही जोडी ।

जया का मुख हो गया गुलाबी तब जीवन ने थामा हाथ
जया के घर की ओर गए हैं वे दोनों हैं अब साथ - साथ ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग . ]

 

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