Saturday, 7 June 2014

सूक्त - 10

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7778
प्र स्वानासो रथा इवार्वन्तो न श्रवस्यवः। सोमासो राये अक्रमुः॥1॥

परमात्मा की गति अद्भुत है विद्युत - समान  है उसका  बल ।
अभिलाषी  है  वैभव  देने  का  कर्मानुसार  देता  है  फल ॥1॥

7779
हिन्वानासो रथा इव दधन्विरे गभस्त्योः। भरासः कारिणामिव॥2॥

कर्म  -  मार्ग  का  पथिक  सदा  ही  कर्म -  हेतु  तत्पर  रहता  है ।
सत्कर्मों का फल समय-समय पर सज्जन को मिलता रहता है॥2॥

7780
राजानो न प्रशस्तिभिः सोमासो गोभिरञ्जते । यज्ञो न सप्त धातुभिः॥3॥

यज्ञ - वेदिका  है  यह  धरती  प्रकृति - मात आहुति  देती  है ।
परमात्मा ही यज्ञ - रूप है यज्ञ - ज्योति तम हर  लेती  है॥3॥

7781
परि सुवानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा । सुता अर्षन्ति धारया॥4॥

प्रभु - प्रकाश  से  सभी प्रकाशित वह मन को पावन करता  है ।
आनन्द - अमृत  वह  देता है वह सबकी विपदा  हरता  है ॥4॥

7782
आपानासो विवस्वतो जनन्त उषसो भगम् । सूरा अण्व वि तन्वते॥5॥

परमात्मा आलोक - प्रदाता अज्ञान - तमस को  वही  मिटाता ।
भिनसरहा - ऐश्वर्य - प्रदाता सन्मार्ग सभी को वही दिखाता॥5॥

7783
अप द्वारा मतीनां प्रत्ना ऋण्वन्ति कारवः। वृष्णो हरस आयवः॥6॥

जो  कर्म - मार्ग  पर  चलता  है  प्रतिदिन उपासना  करता  है ।
प्रभु का सच्चा - भक्त वही है वह निज - जीवन को गढता है॥6॥

7784
समीचीनास आसते होतारः सप्तजामयः। पदमेकस्य पिप्रतः॥7॥

एक - निष्ठ  हो  कर  जो  साधक  परमेश्वर का करता ध्यान ।
वह ही सदा सफल होता  है  वरद - हस्त  रखते भगवान॥7॥

7785
नाभा नाभिं न आ ददे चक्षुश्चित्सूर्ये सचा । कवेरपत्यमा दुहे॥8॥

वह आलोक - रूप  परमात्मा  सज्जन  के  मन  में  रहता  है ।
वह ही अन्वेषण - बल  देता शोध - हेतु  प्रेरित  करता  है ॥8॥

7786
अभि प्रिया दिवस्पदमध्वर्युभिर्गुहा हितम् । सूरः पश्यति चक्षसा॥9॥

कण - कण में रहता है फिर भी अत्यन्त सूक्ष्म है वह परमात्मा ।
भाव का भूखा है वह भोला निश्चित पहुँचेगी उस तक आत्मा ॥9॥

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