Wednesday, 18 June 2014

॥ अथ नवमं मण्डलम् ॥

                सूक्त - 1

[ ऋषि- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7691
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः॥1॥

अत्यन्त सौम्य है वह परमात्मा अनन्त - गुणों का वह स्वामी है ।
जो  भी  सौम्य - भाव अपनाता  बन जाता प्रभु - अनुगामी  है ॥1॥

7692
रक्षोहा विश्वचर्षणिरभि योनिमयोहितम् । द्रुणा सधस्थमासदत्॥2॥

हे  पावन  पूजनीय  परमात्मन्  तुम ही इस जग के सृष्टा हो ।
अन्तर्मन में तुम बस जाओ तुम  ही जगती  के  द्रष्टा  हो ॥2॥

7693
वरिवोधातमो भव मंहिष्ठो वृत्रहन्तमः। पर्षि राधो मघोनाम् ॥3॥

परमात्मा सब सुख देता है अज्ञान - तमस  को  वही मिटाता ।
सर्वोपरि  है  वह  परमेश्वर  सत्पथ  पर  वह  ही  ले जाता ॥3॥

7694
अभ्यर्ष महानां देवानां वीतिमन्धसा । अभि वाजमुत श्रवः ॥4॥

कृपा - सिन्धु  है  वह  परमात्मा  सब  पर  कृपा  वही करता है ।
वह  ही  हमें  समर्थ  बनाता  हम  सब  की  विपदा हरता है ॥4॥

7695
त्वामच्छा चरामसि तदिदर्थं दिवेदिवे । इन्दो त्वे न आशसः ॥5॥

निष्काम - कर्म हो लक्ष्य हमारा इस पथ पर हम चलें निरन्तर ।
दुनियॉ  है  परिवार  हमारा  सुख - दुख  बॉटें  सदा  परस्पर ॥5॥

7696
पुनाति ते परिस्त्रुतं सोमं सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥6॥

प्रतिदिन - परमेश्वर पूजन  से सौम्य स्वभाव स्वतः मिल जाता ।
उषा  जिस  तरह  सुख देती  है  सौम्य - भाव सुख देने आता ॥6॥

7697
तमीमण्वीः समर्य आ गृभ्णन्ति योषणो दश । स्वसारः पार्ये दिवि॥7॥

श्रध्दा - पूरित है जिसका मन  दस  गुण  वाला  बन  जाता  है ।
साधक को सब कुछ मिलता है मन का संतोष वही पाता है॥7॥

7698
तमीं हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुरं दृतिम् । त्रिधातु वारणं मधु ॥8॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करता  तन - मन  बनता  ऊर्जा - वान ।
उसका आत्मिक- बल बढता है कृपा-सिन्धु है वह भगवान॥8॥

7699
अभी3 ममघ्र्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् । सोममिन्द्राय पातवे॥9॥

श्रध्दा  से यश - वैभव मिलता श्रध्दा से मिलता  सत् - ज्ञान ।
वह  वाणी  का  वैभव  देती  श्रध्दा  में  बसते हैं भगवान ॥9॥

7700
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्राणि जिघ्नते । शूरो मघा च मंहते॥10॥

श्रध्दा - भाव  से  ही  विज्ञानी  अज्ञान - तमस  को  दूर  भगाता ।
वीर - विजय अविरल पाता है जीवन अपना सफल बनाता ॥10॥ 

    

2 comments:

  1. सुन्दर सन्देश...शुभकामनाएं...

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  2. परमात्मा सब सुख देता है अज्ञान - तमस को वही मिटाता ।
    सर्वोपरि है वह परमेश्वर सत्पथ पर वह ही ले जाता ॥3॥

    परमात्मा सखा है

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