सूक्त - 1
[ ऋषि- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7691
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः॥1॥
अत्यन्त सौम्य है वह परमात्मा अनन्त - गुणों का वह स्वामी है ।
जो भी सौम्य - भाव अपनाता बन जाता प्रभु - अनुगामी है ॥1॥
7692
रक्षोहा विश्वचर्षणिरभि योनिमयोहितम् । द्रुणा सधस्थमासदत्॥2॥
हे पावन पूजनीय परमात्मन् तुम ही इस जग के सृष्टा हो ।
अन्तर्मन में तुम बस जाओ तुम ही जगती के द्रष्टा हो ॥2॥
7693
वरिवोधातमो भव मंहिष्ठो वृत्रहन्तमः। पर्षि राधो मघोनाम् ॥3॥
परमात्मा सब सुख देता है अज्ञान - तमस को वही मिटाता ।
सर्वोपरि है वह परमेश्वर सत्पथ पर वह ही ले जाता ॥3॥
7694
अभ्यर्ष महानां देवानां वीतिमन्धसा । अभि वाजमुत श्रवः ॥4॥
कृपा - सिन्धु है वह परमात्मा सब पर कृपा वही करता है ।
वह ही हमें समर्थ बनाता हम सब की विपदा हरता है ॥4॥
7695
त्वामच्छा चरामसि तदिदर्थं दिवेदिवे । इन्दो त्वे न आशसः ॥5॥
निष्काम - कर्म हो लक्ष्य हमारा इस पथ पर हम चलें निरन्तर ।
दुनियॉ है परिवार हमारा सुख - दुख बॉटें सदा परस्पर ॥5॥
7696
पुनाति ते परिस्त्रुतं सोमं सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥6॥
प्रतिदिन - परमेश्वर पूजन से सौम्य स्वभाव स्वतः मिल जाता ।
उषा जिस तरह सुख देती है सौम्य - भाव सुख देने आता ॥6॥
7697
तमीमण्वीः समर्य आ गृभ्णन्ति योषणो दश । स्वसारः पार्ये दिवि॥7॥
श्रध्दा - पूरित है जिसका मन दस गुण वाला बन जाता है ।
साधक को सब कुछ मिलता है मन का संतोष वही पाता है॥7॥
7698
तमीं हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुरं दृतिम् । त्रिधातु वारणं मधु ॥8॥
परमात्मा प्रोत्साहित करता तन - मन बनता ऊर्जा - वान ।
उसका आत्मिक- बल बढता है कृपा-सिन्धु है वह भगवान॥8॥
7699
अभी3 ममघ्र्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् । सोममिन्द्राय पातवे॥9॥
श्रध्दा से यश - वैभव मिलता श्रध्दा से मिलता सत् - ज्ञान ।
वह वाणी का वैभव देती श्रध्दा में बसते हैं भगवान ॥9॥
7700
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्राणि जिघ्नते । शूरो मघा च मंहते॥10॥
श्रध्दा - भाव से ही विज्ञानी अज्ञान - तमस को दूर भगाता ।
वीर - विजय अविरल पाता है जीवन अपना सफल बनाता ॥10॥
[ ऋषि- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7691
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः॥1॥
अत्यन्त सौम्य है वह परमात्मा अनन्त - गुणों का वह स्वामी है ।
जो भी सौम्य - भाव अपनाता बन जाता प्रभु - अनुगामी है ॥1॥
7692
रक्षोहा विश्वचर्षणिरभि योनिमयोहितम् । द्रुणा सधस्थमासदत्॥2॥
हे पावन पूजनीय परमात्मन् तुम ही इस जग के सृष्टा हो ।
अन्तर्मन में तुम बस जाओ तुम ही जगती के द्रष्टा हो ॥2॥
7693
वरिवोधातमो भव मंहिष्ठो वृत्रहन्तमः। पर्षि राधो मघोनाम् ॥3॥
परमात्मा सब सुख देता है अज्ञान - तमस को वही मिटाता ।
सर्वोपरि है वह परमेश्वर सत्पथ पर वह ही ले जाता ॥3॥
7694
अभ्यर्ष महानां देवानां वीतिमन्धसा । अभि वाजमुत श्रवः ॥4॥
कृपा - सिन्धु है वह परमात्मा सब पर कृपा वही करता है ।
वह ही हमें समर्थ बनाता हम सब की विपदा हरता है ॥4॥
7695
त्वामच्छा चरामसि तदिदर्थं दिवेदिवे । इन्दो त्वे न आशसः ॥5॥
निष्काम - कर्म हो लक्ष्य हमारा इस पथ पर हम चलें निरन्तर ।
दुनियॉ है परिवार हमारा सुख - दुख बॉटें सदा परस्पर ॥5॥
7696
पुनाति ते परिस्त्रुतं सोमं सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥6॥
प्रतिदिन - परमेश्वर पूजन से सौम्य स्वभाव स्वतः मिल जाता ।
उषा जिस तरह सुख देती है सौम्य - भाव सुख देने आता ॥6॥
7697
तमीमण्वीः समर्य आ गृभ्णन्ति योषणो दश । स्वसारः पार्ये दिवि॥7॥
श्रध्दा - पूरित है जिसका मन दस गुण वाला बन जाता है ।
साधक को सब कुछ मिलता है मन का संतोष वही पाता है॥7॥
7698
तमीं हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुरं दृतिम् । त्रिधातु वारणं मधु ॥8॥
परमात्मा प्रोत्साहित करता तन - मन बनता ऊर्जा - वान ।
उसका आत्मिक- बल बढता है कृपा-सिन्धु है वह भगवान॥8॥
7699
अभी3 ममघ्र्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् । सोममिन्द्राय पातवे॥9॥
श्रध्दा से यश - वैभव मिलता श्रध्दा से मिलता सत् - ज्ञान ।
वह वाणी का वैभव देती श्रध्दा में बसते हैं भगवान ॥9॥
7700
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्राणि जिघ्नते । शूरो मघा च मंहते॥10॥
श्रध्दा - भाव से ही विज्ञानी अज्ञान - तमस को दूर भगाता ।
वीर - विजय अविरल पाता है जीवन अपना सफल बनाता ॥10॥
सुन्दर सन्देश...शुभकामनाएं...
ReplyDeleteपरमात्मा सब सुख देता है अज्ञान - तमस को वही मिटाता ।
ReplyDeleteसर्वोपरि है वह परमेश्वर सत्पथ पर वह ही ले जाता ॥3॥
परमात्मा सखा है