[ऋषि- शुनः शेप आजीगर्ति । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7711
एष देवो अमर्त्यः पर्णवीरिव दीयति । अभि द्रोणान्यासदम् ॥1॥
आलोक - प्रदाता है परमात्मा कण - कण में वह ही बसता है ।
वह अनादि है अविनाशी है भाव - भूमि पर वह रमता है ॥1॥
7712
एष देवो विप्रा कृतोSति ह्वरांसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥2॥
मेधावी - मन में वह रहता विद्वत् - जन करते हैं ध्यान ।
वह पावन है पूजनीय है निशि - दिन देता है वरदान ॥2॥
7713
एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः। हरिर्वाजाय मृज्यते॥3॥
जिसने वाणी का वैभव पाया प्रभु का जो करता गुण - गान ।
सब की विपदा वह हरता है दया - दृष्टि रखता भगवान ॥3॥
7714
एष विश्वानि वार्या शूरो यन्निव सत्वभिः। पवमानः सिषासति॥4॥
सब को पात्रानुसार फल देता कर्मानुकूल मिलता है बल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल ॥4॥
7715
एष देवो रथर्यति पवमानो दशस्यति । आविष्कृणोति वग्वनुम्॥5॥
परम पूज्य है वह परमात्मा वह ही है शुचिता का धाम ।
वही अभ्युदय देता सब को आओ चलें वहीं अविराम ॥5॥
7716
एष विप्रैरभिष्टुतोSपो देवो वि गाहते । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥6॥
ज्ञान - गम्य है वह परमात्मा ज्ञानी - जन करते हैं ध्यान ।
वह है अजर अमर शुभचिंतक कृपा सिन्धु है वह भगवान॥6॥
7717
एष दिवं वि धावति तिरो रजांसि धारया । पवमानः कनिक्रदत्॥7॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा वह रक्षक है वही वितान ।
वह सन्मार्ग दिखाता सब को हमको करता है आह्वान ॥7॥
7718
एष दिवं व्यासरत्तिरो रजांस्यस्पृतः । पवमानः स्वध्वरः ॥8॥
शुध्द - बुध्द है सरल - तरल है कण - कण में वह ही रहता है ।
वह सब को सुख देता रहता सब की विपदा वह हरता है ॥8॥
7719
एष प्रत्नेन जन्मना देवो देवेभ्यः सुतः । हरिः पवित्रे अर्षति ॥9॥
जिनका अन्तर्मन पावन है परम - आत्मा उस मन में रहता ।
शुभ - भावों को धारण कर लो यही बात वह सब से कहता ॥9॥
7720
एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः। धारया पवते सुतः॥10॥
अनन्त - शक्ति का वह स्वामी है पात्रानुकूल देता है बल ।
वह सब की रक्षा करता है कर्मानुरूप देता है फल ॥10॥
7711
एष देवो अमर्त्यः पर्णवीरिव दीयति । अभि द्रोणान्यासदम् ॥1॥
आलोक - प्रदाता है परमात्मा कण - कण में वह ही बसता है ।
वह अनादि है अविनाशी है भाव - भूमि पर वह रमता है ॥1॥
7712
एष देवो विप्रा कृतोSति ह्वरांसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥2॥
मेधावी - मन में वह रहता विद्वत् - जन करते हैं ध्यान ।
वह पावन है पूजनीय है निशि - दिन देता है वरदान ॥2॥
7713
एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः। हरिर्वाजाय मृज्यते॥3॥
जिसने वाणी का वैभव पाया प्रभु का जो करता गुण - गान ।
सब की विपदा वह हरता है दया - दृष्टि रखता भगवान ॥3॥
7714
एष विश्वानि वार्या शूरो यन्निव सत्वभिः। पवमानः सिषासति॥4॥
सब को पात्रानुसार फल देता कर्मानुकूल मिलता है बल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल ॥4॥
7715
एष देवो रथर्यति पवमानो दशस्यति । आविष्कृणोति वग्वनुम्॥5॥
परम पूज्य है वह परमात्मा वह ही है शुचिता का धाम ।
वही अभ्युदय देता सब को आओ चलें वहीं अविराम ॥5॥
7716
एष विप्रैरभिष्टुतोSपो देवो वि गाहते । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥6॥
ज्ञान - गम्य है वह परमात्मा ज्ञानी - जन करते हैं ध्यान ।
वह है अजर अमर शुभचिंतक कृपा सिन्धु है वह भगवान॥6॥
7717
एष दिवं वि धावति तिरो रजांसि धारया । पवमानः कनिक्रदत्॥7॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा वह रक्षक है वही वितान ।
वह सन्मार्ग दिखाता सब को हमको करता है आह्वान ॥7॥
7718
एष दिवं व्यासरत्तिरो रजांस्यस्पृतः । पवमानः स्वध्वरः ॥8॥
शुध्द - बुध्द है सरल - तरल है कण - कण में वह ही रहता है ।
वह सब को सुख देता रहता सब की विपदा वह हरता है ॥8॥
7719
एष प्रत्नेन जन्मना देवो देवेभ्यः सुतः । हरिः पवित्रे अर्षति ॥9॥
जिनका अन्तर्मन पावन है परम - आत्मा उस मन में रहता ।
शुभ - भावों को धारण कर लो यही बात वह सब से कहता ॥9॥
7720
एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः। धारया पवते सुतः॥10॥
अनन्त - शक्ति का वह स्वामी है पात्रानुकूल देता है बल ।
वह सब की रक्षा करता है कर्मानुरूप देता है फल ॥10॥
सुन्दर सन्देश...
ReplyDeleteउत्कृष्ट भक्तिमय प्रस्तुति...आभार
ReplyDelete