Sunday, 15 June 2014

सूक्त - 3

[ऋषि- शुनः शेप आजीगर्ति । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7711
एष देवो अमर्त्यः पर्णवीरिव दीयति । अभि द्रोणान्यासदम् ॥1॥

आलोक - प्रदाता है परमात्मा कण - कण में वह ही बसता है ।
वह अनादि है अविनाशी है भाव - भूमि पर वह  रमता  है ॥1॥

7712
एष देवो विप्रा कृतोSति ह्वरांसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥2॥

मेधावी - मन  में  वह  रहता  विद्वत् - जन  करते  हैं ध्यान ।
वह  पावन  है  पूजनीय  है  निशि - दिन देता है वरदान ॥2॥

7713
एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः। हरिर्वाजाय मृज्यते॥3॥

जिसने वाणी का वैभव पाया प्रभु का जो करता गुण - गान ।
सब की विपदा  वह हरता है दया - दृष्टि रखता भगवान ॥3॥

7714
एष विश्वानि वार्या शूरो यन्निव सत्वभिः। पवमानः सिषासति॥4॥

सब को  पात्रानुसार  फल  देता  कर्मानुकूल  मिलता  है  बल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल ॥4॥

7715
एष देवो रथर्यति पवमानो दशस्यति । आविष्कृणोति वग्वनुम्॥5॥

परम  पूज्य  है  वह  परमात्मा  वह ही है शुचिता का धाम । 
वही अभ्युदय देता  सब को आओ  चलें  वहीं अविराम ॥5॥

7716
एष  विप्रैरभिष्टुतोSपो  देवो वि गाहते । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥6॥

ज्ञान - गम्य  है  वह  परमात्मा ज्ञानी - जन  करते हैं ध्यान ।
वह है अजर अमर शुभचिंतक कृपा सिन्धु है वह भगवान॥6॥

7717
एष दिवं वि धावति तिरो रजांसि धारया । पवमानः कनिक्रदत्॥7॥

सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा  वह  रक्षक  है  वही  वितान ।
वह सन्मार्ग दिखाता सब को हमको करता है आह्वान ॥7॥

7718
एष दिवं व्यासरत्तिरो रजांस्यस्पृतः । पवमानः स्वध्वरः ॥8॥

शुध्द - बुध्द है सरल - तरल है कण - कण में वह ही रहता है ।
वह सब को सुख देता रहता सब की विपदा वह हरता है ॥8॥

7719
एष प्रत्नेन जन्मना देवो देवेभ्यः सुतः । हरिः पवित्रे अर्षति ॥9॥

जिनका अन्तर्मन पावन है  परम - आत्मा उस मन में  रहता ।
शुभ - भावों को धारण कर लो यही बात वह सब से कहता ॥9॥

7720
एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः। धारया पवते सुतः॥10॥

अनन्त - शक्ति  का  वह  स्वामी  है  पात्रानुकूल  देता है बल ।
वह  सब  की  रक्षा  करता  है  कर्मानुरूप  देता  है  फल ॥10॥  

2 comments:

  1. सुन्दर सन्देश...

    ReplyDelete
  2. उत्कृष्ट भक्तिमय प्रस्तुति...आभार

    ReplyDelete