Thursday, 12 June 2014

सूक्त - 6

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7742
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः । अव्यो वारेष्वस्मयुः॥1॥

सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सत् - जन ही उसको पाते हैं ।
वह सबका है सगा बराबर प्रभु हम सबको अपनाता है ॥1॥

7743
अभि त्यं मद्यं मदमिन्दविन्द्र इति क्षर । अभि वाजिनो अर्वतः॥2॥

प्रेम - रूप  है  वह  परमात्मा  प्रेम  की  करता  है  बरसात ।
धरती  सुख  से  सनी  हुई  है  बल  भरने आती  है रात ॥2॥

7744
अभि त्यं पूर्व्यं मदं सुवानो अर्ष पवित्र आ । अभि वाजमुत श्रवः॥3॥

परमात्मा  हम  सबका  पालक  सबका  रखता  है  वह  ध्यान ।
वह सबको प्रोत्साहित करता चले निरन्तर शुभ - अभियान॥3॥

7745
अनु द्रप्सास इन्दव आपो न प्रवतासरन् । पुनाना इन्द्रमाशत॥4॥

वसुन्धरा  नव - पल्लव  देती  वह  ही  देती  है  धन - धान ।
कण - कण में प्रभु बसा हुआ है अविरल देता  है वरदान॥4॥

7746
यमत्यमिव वाजिनं मृजन्ति योषणो दश । वने क्रीळन्तमत्यविम्॥5॥

तन - अरण्य  में  क्रीडा करता आत्मा है अत्यन्त - महान ।
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा हम सब हैं उसकी सन्तान॥5॥

7747
तं गोभिर्वृषणं रसं मदाय देववीतये । सुतं भराय सं सृज ॥6॥

परमात्मा  है  ध्येय  हमारा  हम  सब  हैं  उसके  अनुगामी ।
परमात्मा आनन्द - रूप  है वह ही है हम सबका स्वामी ॥6॥

7748
देवो देवाय धारयेन्द्राय पवते सुतः। पयो यदस्य पीपयत् ॥7॥

वह  परमात्मा  अति -  अद्भुत   है  पात्रानुरूप  देता  है  फल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल॥7॥

7749
आत्मा यज्ञस्य रंह्या सुष्वाणः पवते सुतः। प्रत्नं निपाति काव्यम्॥8॥

परमात्मा  जगती  का  रक्षक  वह  ही  कवि  है रचना - कार ।
वेद - रूप में उसकी वाणी जन - जन का करती है उध्दार ॥8॥

7750
एवा पुनान इन्द्रयुर्मदं मदिष्ठ वीतये । गुहा चिद्दधिषे गिरः॥9॥

परमात्मा सबका शुभ - चिन्तक जगती पर करता उपकार ।
हम सबको सुख - साधन देता अवसर देता है बार - बार ॥9॥
 

3 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुति...

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  2. तन - अरण्य में क्रीडा करता आत्मा है अत्यन्त - महान ।
    सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा हम सब हैं उसकी सन्तान॥5॥

    आत्मा ही जानने योग्य है

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