[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7742
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः । अव्यो वारेष्वस्मयुः॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सत् - जन ही उसको पाते हैं ।
वह सबका है सगा बराबर प्रभु हम सबको अपनाता है ॥1॥
7743
अभि त्यं मद्यं मदमिन्दविन्द्र इति क्षर । अभि वाजिनो अर्वतः॥2॥
प्रेम - रूप है वह परमात्मा प्रेम की करता है बरसात ।
धरती सुख से सनी हुई है बल भरने आती है रात ॥2॥
7744
अभि त्यं पूर्व्यं मदं सुवानो अर्ष पवित्र आ । अभि वाजमुत श्रवः॥3॥
परमात्मा हम सबका पालक सबका रखता है वह ध्यान ।
वह सबको प्रोत्साहित करता चले निरन्तर शुभ - अभियान॥3॥
7745
अनु द्रप्सास इन्दव आपो न प्रवतासरन् । पुनाना इन्द्रमाशत॥4॥
वसुन्धरा नव - पल्लव देती वह ही देती है धन - धान ।
कण - कण में प्रभु बसा हुआ है अविरल देता है वरदान॥4॥
7746
यमत्यमिव वाजिनं मृजन्ति योषणो दश । वने क्रीळन्तमत्यविम्॥5॥
तन - अरण्य में क्रीडा करता आत्मा है अत्यन्त - महान ।
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा हम सब हैं उसकी सन्तान॥5॥
7747
तं गोभिर्वृषणं रसं मदाय देववीतये । सुतं भराय सं सृज ॥6॥
परमात्मा है ध्येय हमारा हम सब हैं उसके अनुगामी ।
परमात्मा आनन्द - रूप है वह ही है हम सबका स्वामी ॥6॥
7748
देवो देवाय धारयेन्द्राय पवते सुतः। पयो यदस्य पीपयत् ॥7॥
वह परमात्मा अति - अद्भुत है पात्रानुरूप देता है फल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल॥7॥
7749
आत्मा यज्ञस्य रंह्या सुष्वाणः पवते सुतः। प्रत्नं निपाति काव्यम्॥8॥
परमात्मा जगती का रक्षक वह ही कवि है रचना - कार ।
वेद - रूप में उसकी वाणी जन - जन का करती है उध्दार ॥8॥
7750
एवा पुनान इन्द्रयुर्मदं मदिष्ठ वीतये । गुहा चिद्दधिषे गिरः॥9॥
परमात्मा सबका शुभ - चिन्तक जगती पर करता उपकार ।
हम सबको सुख - साधन देता अवसर देता है बार - बार ॥9॥
7742
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः । अव्यो वारेष्वस्मयुः॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सत् - जन ही उसको पाते हैं ।
वह सबका है सगा बराबर प्रभु हम सबको अपनाता है ॥1॥
7743
अभि त्यं मद्यं मदमिन्दविन्द्र इति क्षर । अभि वाजिनो अर्वतः॥2॥
प्रेम - रूप है वह परमात्मा प्रेम की करता है बरसात ।
धरती सुख से सनी हुई है बल भरने आती है रात ॥2॥
7744
अभि त्यं पूर्व्यं मदं सुवानो अर्ष पवित्र आ । अभि वाजमुत श्रवः॥3॥
परमात्मा हम सबका पालक सबका रखता है वह ध्यान ।
वह सबको प्रोत्साहित करता चले निरन्तर शुभ - अभियान॥3॥
7745
अनु द्रप्सास इन्दव आपो न प्रवतासरन् । पुनाना इन्द्रमाशत॥4॥
वसुन्धरा नव - पल्लव देती वह ही देती है धन - धान ।
कण - कण में प्रभु बसा हुआ है अविरल देता है वरदान॥4॥
7746
यमत्यमिव वाजिनं मृजन्ति योषणो दश । वने क्रीळन्तमत्यविम्॥5॥
तन - अरण्य में क्रीडा करता आत्मा है अत्यन्त - महान ।
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा हम सब हैं उसकी सन्तान॥5॥
7747
तं गोभिर्वृषणं रसं मदाय देववीतये । सुतं भराय सं सृज ॥6॥
परमात्मा है ध्येय हमारा हम सब हैं उसके अनुगामी ।
परमात्मा आनन्द - रूप है वह ही है हम सबका स्वामी ॥6॥
7748
देवो देवाय धारयेन्द्राय पवते सुतः। पयो यदस्य पीपयत् ॥7॥
वह परमात्मा अति - अद्भुत है पात्रानुरूप देता है फल ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है सज्जन होता सदा सफल॥7॥
7749
आत्मा यज्ञस्य रंह्या सुष्वाणः पवते सुतः। प्रत्नं निपाति काव्यम्॥8॥
परमात्मा जगती का रक्षक वह ही कवि है रचना - कार ।
वेद - रूप में उसकी वाणी जन - जन का करती है उध्दार ॥8॥
7750
एवा पुनान इन्द्रयुर्मदं मदिष्ठ वीतये । गुहा चिद्दधिषे गिरः॥9॥
परमात्मा सबका शुभ - चिन्तक जगती पर करता उपकार ।
हम सबको सुख - साधन देता अवसर देता है बार - बार ॥9॥
उम्दा प्रस्तुति...
ReplyDeleteतन - अरण्य में क्रीडा करता आत्मा है अत्यन्त - महान ।
ReplyDeleteसर्व - व्याप्त है वह परमात्मा हम सब हैं उसकी सन्तान॥5॥
आत्मा ही जानने योग्य है
awesome...
ReplyDeleteनयी सोच और नयी तकनीक के साथ नये युग की शुरुवात