[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7805
सोमः पुनानो अर्षति सहस्त्रधारो अत्यविः। वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम्॥1॥
परमेश्वर सब का रक्षक है वह राग - द्वेष से रहता दूर ।
सज्जन को शुभ - फल देता है अपना - पन देता भरपूर ॥1॥
7806
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत । सुष्वाणं देववीतये॥2॥
परमात्मा प्रोत्साहित करता सब को उज्ज्वल वही बनाता ।
कण - कण में वह बसा हुआ है सज्जन मन में स्वतः समाता॥2॥
7807
पवन्ते वाजसातये सोमा: सहस्त्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥3॥
प्रभु पर आस्था रखने वालों का रोचक होता है व्यक्तित्व ।
कर्म - मार्ग पर चलते - चलते स्थिर हो जाता है अस्तित्व ॥3॥
7808
उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिषः। द्युमदिन्दो सुवीर्यम् ॥4॥
धीर - वीर सज्जन करते हैं वसुधा के वैभव का उपभोग ।
हे प्रभु सदा विजय - श्री देना प्रतिभा का हो सार्थक उपयोग॥4॥
7809
ते नः सहस्त्रिणं रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । सुवाना देवास इन्दवः॥5॥
दिव्य - शक्ति का श्रोत वही है वैभव का भी वह है स्वामी ।
हे प्रभु हमें समर्थ बना दो हम सब हैं तेरे ही अनुगामी ॥5॥
7810
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये । वि वारमव्यमाशवः॥6॥
ज्ञान - रूप है वह परमेश्वर जो उसकी उपासना करते हैं ।
प्रभु उनकी रक्षा करते हैं अज्ञान - तमस को वे हरते हैं ॥6॥
7811
वाश्रा अर्षन्तीन्दवोSभि वत्सं न धेनवः । दधन्विरे गभस्त्योः॥7॥
पावन मन से जब भी कोई परमात्मा का करता ध्यान ।
प्रभु उसको आलोकित करते वह बन जाता मनुज - महान॥7॥
7812
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि॥8॥
जो नर परमेश्वर पर आश्रित है उसका हो जाता बेडा - पार ।
राग - द्वेष उसका मिट जाता प्रभु हर लेते उसका भार ॥8॥
7813
अपघ्नन्तो अराव्णः पवमाना: स्वर्दृशः। योनावृतस्य सीदत ॥9॥
कर्म - मार्ग हो ज्ञान - मार्ग हो प्रभु सब को प्रेरित करते हैं ।
सब के प्रति सत् - भाव निभाते सबकी विपदा वे हरते हैं ॥9॥
7805
सोमः पुनानो अर्षति सहस्त्रधारो अत्यविः। वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम्॥1॥
परमेश्वर सब का रक्षक है वह राग - द्वेष से रहता दूर ।
सज्जन को शुभ - फल देता है अपना - पन देता भरपूर ॥1॥
7806
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत । सुष्वाणं देववीतये॥2॥
परमात्मा प्रोत्साहित करता सब को उज्ज्वल वही बनाता ।
कण - कण में वह बसा हुआ है सज्जन मन में स्वतः समाता॥2॥
7807
पवन्ते वाजसातये सोमा: सहस्त्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥3॥
प्रभु पर आस्था रखने वालों का रोचक होता है व्यक्तित्व ।
कर्म - मार्ग पर चलते - चलते स्थिर हो जाता है अस्तित्व ॥3॥
7808
उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिषः। द्युमदिन्दो सुवीर्यम् ॥4॥
धीर - वीर सज्जन करते हैं वसुधा के वैभव का उपभोग ।
हे प्रभु सदा विजय - श्री देना प्रतिभा का हो सार्थक उपयोग॥4॥
7809
ते नः सहस्त्रिणं रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । सुवाना देवास इन्दवः॥5॥
दिव्य - शक्ति का श्रोत वही है वैभव का भी वह है स्वामी ।
हे प्रभु हमें समर्थ बना दो हम सब हैं तेरे ही अनुगामी ॥5॥
7810
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये । वि वारमव्यमाशवः॥6॥
ज्ञान - रूप है वह परमेश्वर जो उसकी उपासना करते हैं ।
प्रभु उनकी रक्षा करते हैं अज्ञान - तमस को वे हरते हैं ॥6॥
7811
वाश्रा अर्षन्तीन्दवोSभि वत्सं न धेनवः । दधन्विरे गभस्त्योः॥7॥
पावन मन से जब भी कोई परमात्मा का करता ध्यान ।
प्रभु उसको आलोकित करते वह बन जाता मनुज - महान॥7॥
7812
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि॥8॥
जो नर परमेश्वर पर आश्रित है उसका हो जाता बेडा - पार ।
राग - द्वेष उसका मिट जाता प्रभु हर लेते उसका भार ॥8॥
7813
अपघ्नन्तो अराव्णः पवमाना: स्वर्दृशः। योनावृतस्य सीदत ॥9॥
कर्म - मार्ग हो ज्ञान - मार्ग हो प्रभु सब को प्रेरित करते हैं ।
सब के प्रति सत् - भाव निभाते सबकी विपदा वे हरते हैं ॥9॥
कर्म - मार्ग हो ज्ञान - मार्ग हो प्रभु सब को प्रेरित करते हैं ।
ReplyDeleteसब के प्रति सत् - भाव निभाते सबकी विपदा वे हरते हैं ॥9॥
परमात्मा सदा हमारे साथ है