Wednesday, 4 June 2014

सूक्त - 13

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7805
सोमः पुनानो अर्षति सहस्त्रधारो अत्यविः। वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम्॥1॥

परमेश्वर  सब  का  रक्षक  है  वह  राग - द्वेष  से  रहता  दूर ।
सज्जन को शुभ - फल देता है अपना - पन देता भरपूर ॥1॥

7806
पवमानमवस्यवो  विप्रमभि  प्र  गायत ।  सुष्वाणं  देववीतये॥2॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करता  सब  को  उज्ज्वल   वही  बनाता ।
कण - कण में वह बसा हुआ है सज्जन मन में स्वतः समाता॥2॥

7807
पवन्ते वाजसातये सोमा: सहस्त्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥3॥

प्रभु  पर  आस्था  रखने  वालों  का  रोचक  होता  है  व्यक्तित्व ।
कर्म - मार्ग पर चलते - चलते  स्थिर हो जाता है अस्तित्व ॥3॥

7808
उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिषः। द्युमदिन्दो  सुवीर्यम् ॥4॥

धीर - वीर  सज्जन  करते   हैं  वसुधा  के  वैभव  का  उपभोग ।
हे प्रभु सदा विजय - श्री देना प्रतिभा का हो सार्थक उपयोग॥4॥

7809
ते नः सहस्त्रिणं रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । सुवाना देवास इन्दवः॥5॥

दिव्य - शक्ति  का  श्रोत  वही  है  वैभव  का  भी  वह  है  स्वामी ।
हे प्रभु  हमें  समर्थ  बना  दो  हम  सब  हैं  तेरे  ही अनुगामी ॥5॥

7810
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये । वि वारमव्यमाशवः॥6॥

ज्ञान - रूप  है  वह  परमेश्वर  जो  उसकी  उपासना  करते  हैं ।
प्रभु  उनकी  रक्षा  करते  हैं अज्ञान - तमस  को वे हरते हैं ॥6॥

7811
वाश्रा अर्षन्तीन्दवोSभि वत्सं न धेनवः । दधन्विरे गभस्त्योः॥7॥

पावन  मन  से  जब  भी  कोई  परमात्मा  का  करता  ध्यान ।
प्रभु उसको आलोकित करते वह बन जाता मनुज - महान॥7॥

7812
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि॥8॥

जो  नर  परमेश्वर  पर आश्रित  है उसका  हो जाता  बेडा - पार ।
राग - द्वेष  उसका  मिट जाता  प्रभु  हर  लेते  उसका  भार ॥8॥

7813
अपघ्नन्तो अराव्णः पवमाना: स्वर्दृशः। योनावृतस्य सीदत ॥9॥

कर्म - मार्ग  हो ज्ञान - मार्ग  हो  प्रभु  सब  को  प्रेरित  करते  हैं ।
सब के प्रति सत् - भाव  निभाते सबकी  विपदा  वे  हरते  हैं ॥9॥

1 comment:

  1. कर्म - मार्ग हो ज्ञान - मार्ग हो प्रभु सब को प्रेरित करते हैं ।
    सब के प्रति सत् - भाव निभाते सबकी विपदा वे हरते हैं ॥9॥

    परमात्मा सदा हमारे साथ है

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