Sunday, 8 June 2014

सूक्त - 8

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7760
एते सोमा अभि प्रियमिन्द्रस्य काममक्षरन् । वर्धन्तो अस्य वीर्यम्॥1॥

हे अनन्त - शक्ति के स्वामी तन - मन सबका स्वस्थ बनाना ।
सत्पथ पर हम चलें निरन्तर ध्येय मेरा तुम ही बतलाना ॥1॥

7761
पुनानासश्चमूषदो गच्छन्तो वायुमश्विना । ते नो धान्तु सुवीर्यम्॥2॥

हे  पावन  पूजनीय  परमात्मा  हम  सब  का  बल - वर्धन  करना ।
अविरल शुभ - चिन्तन हो सब का कर्म - मार्ग पर तुम ले चलना॥2॥

7762
इन्द्रस्य सोम राधसे पुनानो हार्दि चोदय । ऋतस्य योनिमासदम्॥3॥

एक - मात्र  सच  है  परमात्मा  वह  सब को प्रेरित करता है ।
वह अपना है वही सगा है वह ही सब की विपदा हरता है ॥3॥

7763
मृजन्ति त्वा दश क्षिपो हिन्वन्ति सप्त धीतयः। अनु विप्रा अमादिषुः॥4॥

कर्म - ज्ञान से ही सम्भव है यश - वैभव की प्राप्ति धरा  पर ।
परितोष प्राप्त होने पर ही तो आनन्द देता  है  परमेश्वर ॥4॥

7764
देवेभ्यस्त्वा मदाय कं सृजानमति मध्यः। सं गोभिर्वासयामसि ॥5॥

अज्ञान  मिटाता  वह  परमात्मा अन्तर्मन  पावन करता है ।
परमेश्वर है विषय ध्यान का वह आस - पास ही रहता है ॥5॥

7765
पुनानः कलशेष्वा वस्त्राण्यरुषो हरिः। परि गव्यान्यव्यत ॥6॥

परमात्मा  सबकी  रक्षा  करता  सबको  प्रोत्साहित करता है ।
अद्भुत - गति है परमेश्वर में कण - कण में वह ही रहता है ॥6॥

7766
मघोन आ पवस्व नो जहि विश्वा अप द्विषः। इन्दो सखायमा विश॥7॥

परमात्मा  सबका  पालक  है  भाव -  भूमि  पर  वह  बसता  है ।
भाव का भूखा वह अविरल है सरल - सहज मन में रमता है ॥7॥

7767
वृष्टिं दिवः परि स्त्रव द्युम्नं पृथिव्या अधि । सहो नः सोम पृत्सु धा:॥8॥

जो परमात्म - परायण होते प्रति - दिन प्रभु की पूजा करते हैं ।
विजयी  होते  वही  निरन्तर  प्रभु उसका  जीवन  गढते हैं ॥8॥

7768
नृचक्षसं त्वा वयमीन्द्रपीतं स्वर्विदम् । भक्षीमहि प्रजामिषम्॥9॥

जो  साधक सत् - संगति करता  दिव्य - गुणों  को  अपनाता  है ।
वह  प्रभु का प्यारा बन जाता वह  आनन्द - अमृत  पाता  है ॥9॥

  

3 comments:

  1. उत्तम विचार...

    ReplyDelete
  2. सार्थक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  3. अज्ञान मिटाता वह परमात्मा अन्तर्मन पावन करता है ।
    परमेश्वर है विषय ध्यान का वह आस - पास ही रहता है ॥5॥

    वही तो निकटस्थ है..

    ReplyDelete