Monday, 2 June 2014

सूक्त - 15

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7822
एष धिया यात्यण्व्या शूरो रथेभिराशुभिः। गच्छन्निन्द्रस्य निष्कृतम्॥1॥

कर्म - स्वतंत्र  बनाया  प्रभु  ने  कर्मानुसार  मिलता  है  फल ।
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा धारण करता है अनन्त- बल॥1॥

7823
एष   पुरू   धियायते   बृहते   देवतातये । यत्रामृतास  आसते ॥2॥

अनन्त - शक्ति  का  वह  स्वामी  है  अनन्त - कर्म  खुद करता है ।
कर्म - मार्ग पर चल कर मानव मञ्जिल तक स्वयं पहुँचता है॥2॥

7824
एष हितो वि नीयतेSन्तः शुभ्रावता पथा । यदी तुञ्जन्ति भूर्णयः॥3॥

जो साधक उपासना करते हैं वह  ही  करते  हैं  साक्षात्कार ।
वही  परम - पद  भी  पाते  हैं  परमेश्वर  का  है  उपकार ॥3॥

7825
एष श्रृङ्गाणि धोधुवच्छिशीते यूथ्यो3 वृषा । नृम्णा दधान ओजसा॥4॥

परमेश्वर की महिमा अद्भुत  हमें  दिया  है  सब  सुख - साधन ।
धरा - गगन में भरा है वैभव धरती है अतिशय मन-भावन॥4॥

7826
एष रुक्मिभिरीयते वाजी शुभ्रेभिरंशुभिः। पतिः सिन्धूनां भवन्॥5॥

परमेश्वर  की  शुभ्र - रश्मियॉ दश - दिशि  में  होती गति-मान ।
सतत  प्रवाहित  होती  रहती  साधक  पर  होती  मेहरबान ॥5॥

7827
एष वसूनि पिब्दना परुषा ययिवॉ अति । अव शादेषु गच्छति॥6॥

पूजनीय  है  वह  परमात्मा  जो  उन - पर  निर्भर  रहते  हैं ।
उनका ध्यान सदा रखते  हैं  प्रभु उनकी  रक्षा  करते  हैं ॥6॥

7828
एतं मृजन्ति मर्ज्यमुप द्रोणेष्वायवः। प्रचक्राणं महीरिषः ॥7॥

आओ प्रभु - उपासना कर  लें  वह  विराट  सब  का वरेण्य है ।
आवश्यक है शोध उसी पर अन्वेषण का भी वह विषय  है॥7॥

7829
एतमु त्यं दश क्षिपो मृजन्ति सप्त धीतयः। स्वायुधं मदिन्तमम्॥8॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करते  सब  का  ध्यान  वही  रखते  हैं ।
अस्त्र - शस्त्र है नहीं ज़रूरी पर  दुष्टों  को  दण्डित  करते  हैं ॥8॥

1 comment:

  1. परमेश्वर की शुभ्र - रश्मियॉ दश - दिशि में होती गति-मान ।
    सतत प्रवाहित होती रहती साधक पर होती मेहरबान ॥5॥

    प्रभु की कृपा सदा यूँ ही बरसती रहे

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