Sunday, 22 June 2014

निद्रा

जीव - मात्र को गोद में अपनी प्रतिदिन तुम्हीं सुलाती हो 
व्यथा  सभी  की हर लेती हो स्वप्न - नए दिखलाती हो ।

चेतन  होते  थके -  हुए  जन  नव - जीवन  पा  जाते  हैं
पा उमँग का उत्स तुम्हीं से नव- राग-रागिनी गाते  हैं ।

दुख  से  जब  घिर जाता मानव तुम्हीं सान्त्वना देती हो
दुख  से   भूख से नींद बडी है स्वयं - सिध्द कर देती हो ।

शिशु  जब  रो - रो  कर   थक जाता गोद में तेरी जाता है 
निद्रा से  विश्राम  प्राप्त  कर  व्यथा - मुक्त  हो  जाता  है ।

देह  में  जब  पीडा  होती  है  तुम्हीं  कष्ट  को  हरती  हो 
मन - बहला - कर धीरे - धीरे घाव मनुज का भरती हो ।

राजा   हो  या  रंक  सभी  को  गोद  तुम्हारी  प्यारी  है 
सभी  प्यार  करते  हैं  तुमसे  तेरी  महिमा   न्यारी है ।

जिजीविषा  तेरा  -  प्रसाद  है आकॉक्षा  तेरा  वर  - दान 
तुम ही तो जय की माध्यम हो कृतज्ञता का होता भान ।

प्राण - शक्ति का क्षरण रोकती माता - सम तुम हो सबकी
तुमसे ऊर्जा पाकर हम दुख अर्पित करते  निज- उर की ।

प्रिय - जन भी जब साथ छोडते तुम देती हो अपना ऑचल
बॉह - पकड आश्रय देती हो होता है जब अन्तर - व्याकुल ।

जब  शरीर  का  क्षय  होता  है  जरा - जीर्ण  हो   जाता देह 
सदा - सदा के लिए पकड कर ले जाती हो तुम निज-गेह ।

जीवन  का संग्राम  झेल कर जब यह तन - थक जाता है 
महा - नींद  में तुम्हीं  सुलाती  तभी शान्ति वह पाता  है ।

जब  वह  पुनः जन्म  लेता  है तब  भी  साथ  निभाती  हो 
जन्मान्तर भी आश्रय देकर  तुम  दिव्यता  सिखाती  हो ।
  

5 comments:

  1. हिंदी लेखन जगत की और से यह शायद अनूठा कृतज्ञता ज्ञापन होगा निद्रा के प्रति , वाह !!
    मंगलकामनाएं आपको !

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  2. निद्रा से चिर निद्रा तक की आश्वस्ति

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  3. जीवन का संग्राम झेल कर जब यह तन - थक जाता है
    महा - नींद में तुम्हीं सुलाती तभी शान्ति वह पाता है ।
    ...अद्भुत यात्रा निद्रा की...

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  4. प्राण - शक्ति का क्षरण रोकती माता - सम तुम हो सबकी
    तुमसे ऊर्जा पाकर हम दुख अर्पित करते निज- उर की ।

    वाह निद्रा की सुंदर परिभाषा..

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  5. निंद्रा देवी की स्तुति में सुन्दर रचना...

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