[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7830
प्र ते सोतार ओण्यो3 रसं मदाय धृष्वये । सर्गो न तक्त्येतशः॥1॥
तन - मन को पहले सबल बना कर खट् - रागों से पाओ पार ।
आनन्द - भाव को समझो जानो यही तो है मन का आहार॥1॥
7831
क्रत्वा दक्षस्य रथ्यमपो वसानमन्धसा ।गोषामण्वेषु सश्चिम॥2॥
मनुज जियो तुम सुख- कर जीवन कौशल से बन जाओ समर्थ ।
वैभव पाते रहो निरन्तर अपने जीवन का समझो अर्थ ॥2॥
7832
अनप्तमप्सु दुष्टरं सोमं पवित्रं आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥3॥
कर्म - मार्ग हो सुखद तुम्हारा एक लक्ष्य लेकर बढ जाओ ।
सत्पथ पर तुम चलो निरन्तर कर्मानुकूल अपना फल पाओ॥3॥
7833
प्र पुनानस्य चेतसा सोमः पवित्रे अर्षति । क्रत्वा सधस्थमासदत्॥4॥
सोम - पान तुम अविरल करना इस से मन होता है पावन ।
सोम मनुज को सौम्य बनाता बनता है ध्येय- पूर्ति का साधन॥4॥
7834
प्र त्वा नमोभिरिन्दव इन्द्र सोमा असृक्षत । महे भराय कारिणः॥5॥
यह वसुन्धरा वीरों की है सुख - साधन का उपयोग करो ।
तुम अपनी कमजोरी को जीतो सबल बनो पर धीर- धरो॥5॥
7835
पुनानो रूपे अव्यये विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥6॥
यश - वैभव का भोग करो पर खट् - रागों में तुम मत उलझो ।
शूर - वीर - संयमी बनो तुम अपने बारे में समझो - बूझो ॥6॥
7836
दिवो न सानु पिप्युषी धारा सुतस्य वेधसः। वृथा पवित्रे अर्षति॥7॥
विज्ञानी - ध्यानी बन जायें हम बडे भाग्य से नर - तन पाया ।
धीर - वीर यदि न बन पाये तो यह मानव - जन्म गँवाया॥7॥
7837
त्वं सोम विपश्चितं तना पुनान आयुषु । अव्यो वारं वि धावसि॥8॥
हे परमात्मा तुम प्रणम्य हो तुम सदा हमारी रक्षा करना ।
साधन - भजन हमें सिखलाना मेरी भी सुधि लेते रहना॥8॥
7830
प्र ते सोतार ओण्यो3 रसं मदाय धृष्वये । सर्गो न तक्त्येतशः॥1॥
तन - मन को पहले सबल बना कर खट् - रागों से पाओ पार ।
आनन्द - भाव को समझो जानो यही तो है मन का आहार॥1॥
7831
क्रत्वा दक्षस्य रथ्यमपो वसानमन्धसा ।गोषामण्वेषु सश्चिम॥2॥
मनुज जियो तुम सुख- कर जीवन कौशल से बन जाओ समर्थ ।
वैभव पाते रहो निरन्तर अपने जीवन का समझो अर्थ ॥2॥
7832
अनप्तमप्सु दुष्टरं सोमं पवित्रं आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥3॥
कर्म - मार्ग हो सुखद तुम्हारा एक लक्ष्य लेकर बढ जाओ ।
सत्पथ पर तुम चलो निरन्तर कर्मानुकूल अपना फल पाओ॥3॥
7833
प्र पुनानस्य चेतसा सोमः पवित्रे अर्षति । क्रत्वा सधस्थमासदत्॥4॥
सोम - पान तुम अविरल करना इस से मन होता है पावन ।
सोम मनुज को सौम्य बनाता बनता है ध्येय- पूर्ति का साधन॥4॥
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प्र त्वा नमोभिरिन्दव इन्द्र सोमा असृक्षत । महे भराय कारिणः॥5॥
यह वसुन्धरा वीरों की है सुख - साधन का उपयोग करो ।
तुम अपनी कमजोरी को जीतो सबल बनो पर धीर- धरो॥5॥
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पुनानो रूपे अव्यये विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥6॥
यश - वैभव का भोग करो पर खट् - रागों में तुम मत उलझो ।
शूर - वीर - संयमी बनो तुम अपने बारे में समझो - बूझो ॥6॥
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दिवो न सानु पिप्युषी धारा सुतस्य वेधसः। वृथा पवित्रे अर्षति॥7॥
विज्ञानी - ध्यानी बन जायें हम बडे भाग्य से नर - तन पाया ।
धीर - वीर यदि न बन पाये तो यह मानव - जन्म गँवाया॥7॥
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त्वं सोम विपश्चितं तना पुनान आयुषु । अव्यो वारं वि धावसि॥8॥
हे परमात्मा तुम प्रणम्य हो तुम सदा हमारी रक्षा करना ।
साधन - भजन हमें सिखलाना मेरी भी सुधि लेते रहना॥8॥
सोम - पान तुम अविरल करना इस से मन होता है पावन ।
ReplyDeleteसोम मनुज को सौम्य बनाता बनता है ध्येय- पूर्ति का साधन॥4॥
ध्यान से ही सोम मिलता है