Sunday, 1 June 2014

सूक्त - 16

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7830
प्र ते सोतार ओण्यो3 रसं मदाय धृष्वये । सर्गो न तक्त्येतशः॥1॥

तन - मन  को पहले सबल बना कर खट् - रागों से पाओ पार ।
आनन्द - भाव को समझो जानो यही तो है मन का आहार॥1॥

7831
क्रत्वा दक्षस्य रथ्यमपो वसानमन्धसा ।गोषामण्वेषु सश्चिम॥2॥

मनुज जियो तुम सुख- कर जीवन कौशल से बन जाओ समर्थ ।
वैभव  पाते  रहो  निरन्तर  अपने  जीवन  का  समझो अर्थ ॥2॥

7832
अनप्तमप्सु  दुष्टरं सोमं पवित्रं आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥3॥

कर्म - मार्ग  हो  सुखद  तुम्हारा  एक  लक्ष्य  लेकर  बढ  जाओ ।
सत्पथ पर तुम चलो निरन्तर कर्मानुकूल अपना फल पाओ॥3॥

7833
प्र पुनानस्य चेतसा सोमः पवित्रे अर्षति । क्रत्वा सधस्थमासदत्॥4॥

सोम - पान  तुम  अविरल  करना  इस  से  मन  होता  है  पावन ।
सोम मनुज को सौम्य बनाता बनता है ध्येय- पूर्ति का साधन॥4॥

7834
प्र त्वा नमोभिरिन्दव इन्द्र सोमा असृक्षत । महे भराय कारिणः॥5॥

यह  वसुन्धरा  वीरों  की  है  सुख - साधन  का  उपयोग  करो ।
तुम  अपनी  कमजोरी  को जीतो सबल बनो पर धीर- धरो॥5॥

7835
पुनानो रूपे अव्यये विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥6॥

यश - वैभव का भोग करो पर खट् - रागों में तुम मत उलझो ।
शूर - वीर - संयमी बनो तुम अपने बारे में समझो - बूझो ॥6॥

7836
दिवो न सानु पिप्युषी धारा सुतस्य वेधसः। वृथा पवित्रे अर्षति॥7॥

विज्ञानी - ध्यानी बन जायें हम बडे भाग्य से नर - तन पाया ।
धीर - वीर यदि न बन पाये तो यह मानव - जन्म गँवाया॥7॥ 

7837
त्वं सोम विपश्चितं तना पुनान आयुषु । अव्यो वारं वि धावसि॥8॥

हे  परमात्मा  तुम  प्रणम्य  हो  तुम  सदा  हमारी  रक्षा  करना ।
साधन - भजन  हमें  सिखलाना  मेरी  भी  सुधि  लेते  रहना॥8॥

1 comment:

  1. सोम - पान तुम अविरल करना इस से मन होता है पावन ।
    सोम मनुज को सौम्य बनाता बनता है ध्येय- पूर्ति का साधन॥4॥
    ध्यान से ही सोम मिलता है

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