Thursday, 5 June 2014

सूक्त - 12

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7796
सोमा असृग्रमिन्दवः सुता ऋतस्य सादने । इन्द्राय मधुमत्तमा:॥1॥

सच्चिदानन्द  है  वह  परमात्मा  वह आनन्द  हमें  देता  है ।
षड् - ऋतु - सुख वह ही देता है सबकी विपदा हर लेता है॥1॥

7797
अभि विप्रा अनूषत गावो वत्सं न मातरः। इन्द्रं सोमस्य पीतये॥2॥

दिव्य - गुणों को धारण करके मनुज दिव्यता को  पाता  है ।
आकर्षण के कारण प्रभु पर वह अनुरक्त  हुआ  जाता  है ॥2॥

7798
मदच्युत्क्षेति सादने सिन्धोरूर्मा विपश्चित् । सोमो गौरी अधि श्रितः॥3॥

सरिता में जल - ऊर्मि थिरकती पण्डित वेद - ऋचा  गाता  है ।
वैसे ही आनन्द - रूप  प्रभु श्रध्दा  के  सँग - सँग आता  है ॥3॥

7799
दिवो नाभा विचक्षणोSव्यो वारे महीयते । सोमो यः सुक्रतुःकविः॥4॥

अनन्त  गुणों  का  वह  स्वामी  है  कर्मानुसार  देता  है  फल ।
कर्म - मार्ग  की  महिमा  भारी सत्कर्मों की है राह सुफल ॥4॥

7800
यः सोमः कलशेष्वॉ अन्तः पवित्र आहितः। तमिन्दुः परि षस्वजे॥5॥

परमेश्वर यश - वैभव देते सज्जन सुख - कर  जीवन जीते  हैं ।
सत्कर्मों  का  फल  मीठा है राही आनन्द - अमृत पीते  हैं ॥5॥

7801
प्रवाचमिन्दुरिष्यति समुद्रस्याधि विष्टपि । जिन्वन् कोशं मधुश्चुतम्॥6॥

अन्तरिक्ष जल - सञ्चय करता नभ में भरा  लबा-लब  जल ।
सुख से सनी हुई है धरती सुख में भी होते नयन - सजल ॥6॥

7802
नित्यस्तोत्रो वनस्पतिर्धीनामन्तः सबर्दुघः। हिन्वानो मानुषा युगा॥7॥

भाव  का  भूखा  है  परमात्मा  भाव  से  उसको  पा  सकते  हैं ।
सरल सहज मन उसको भाता सख्य -भाव अपना सकते हैं॥7॥

7803
अभि प्रिया दिवस्पदा सोमो हिन्वानो अर्षति । विप्रस्य धारया कविः॥8॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करता  ज्ञान - मार्ग  वह  दिखलाता  है ।
आनन्द की  वर्षा  करता  है  सुख  का  स्वरूप  समझाता है ॥8॥

7804
आ पवमान धारय रयिं सहस्त्रवर्चसम् । अस्मे इन्दो स्वाभुवम्॥9॥

सत्पथ  पर  चलने  वाला  ही  परमेश्वर  को  प्यारा लगता  है ।
प्रभु  सज्जन  को  वैभव  देता  उस की  विपदा  हर लेता है॥9॥  

1 comment:

  1. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...

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