Thursday 19 June 2014

लय

लय शब्द झनझनाता मन के सितार को है 
सुर अपने - आप ही सुरीला हुआ जाता है ।
जगती का कण- कण बँधा लय रागिनी से 
लय से ही नियति को कर्म सभी भाता है ।

बावरी - बयार भी तो  लय में  ही  बहती  है
सरिता भी कल-कल लय में कही जाती है ।
झरना  भी  झर -  झर सुर में झरा जाता है
कोयल  भी  कुहू - कुहू  सुर में ही गाती है ।

घनन - घनन  घन  गर्जत  हैं आते  मानो 
सुर लय ताल जगती को  ज्यों पढाते हों ।
दामिनी भी दमक - दमक छवि बिखराती
मेघ मानो मही पर मल्हार गाते आते हों ।

मनुज  के  पलक  झपकने  में  होता  लय 
दृष्टि  में  भी लय है जो सृष्टि देख जाती है ।
हृदय की गति  धक - धक करती है  मानो
परिभाषा लय की जगत को समझाती है ।

लय की महत्ता सर्व-विदित है भली - भॉति
लय - बध्द  रोता हुआ नर यहॉ आता  है ।
बँधा  रहे  लय  से  प्रयास -  रत  रहता  है
जीवन की तृषा से विराम लय से पाता है ।  

5 comments:

  1. बहुत सुंदर लयबद्ध रचना , आनंद दायक रही ! आभार आपका

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  2. शब्द -शिल्प भाव की अद्भुत सरणि निर्मित करती कविता

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  3. प्रकृति के प्रत्येक गीत लयबद्ध हैं...सुनने के लिए कानसेन बनना पड़ता है...

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  4. लय में लयता,
    जीवनमयता।

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  5. जीवन में लय हो तो जीवन उत्सव बन जाता है

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