[ऋषि- दुवस्यु वान्दन । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- जगती-त्रिष्टुप् ।]
9952
इन्द्र दृह्य मघवन्त्वावदिद्भुज इह स्तुतः सुतपा बोधि नो वृधे ।
देवेभिर्न: सविता प्रावतु श्रुतमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥1॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर तुम ही हो जग के पालन-हार ।
मनो - कामना पूरी करना भोग - मोक्ष - इच्छानुसार ॥1॥
9953
भराय सु भरत भागमृत्वियं प्र वायवे शुचिपे क्रन्ददिष्टये ।
गौरस्य यःपयसःपीतिमानश आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥2॥
पावन-पवन-देव-प्राञ्जल हैं हम प्राण - पवन उनसे पाते हैं ।
हम हवि - भोग उन्हें देते हैं वे ध्वनि सँग आते और जाते हैं॥2॥
9954
आ नो देवः सविता साविषद्वय ऋजूयते यजमानाय सुन्वते ।
यथा देवान्प्रतिभूषेम पाकवदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥3॥
आदित्य - देव आदर्श हमारे सबका ध्यान वही रखते हैं ।
प्रकृति हमारी माता - सम है हम उनकी स्तुति करते हैं ॥3॥
9955
इन्द्रो अस्मे सुमना अस्तु विश्वहा राजा सोमःसुवितस्याध्येतु नः।
यथा - यथा मित्रधितानि संदधुरा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥4॥
हे प्रभु मन प्रसन्न रखना हम पर वरद - हस्त रखना ।
जन - हित जीवन का ध्येय बने यही अनुग्रह हम पर करना ॥4॥
9956
इन्द्र उक्थेन शवसा प्ररुर्दधे बृहस्पते प्रतरीतास्यायुषः ।
यज्ञो मनुः प्रमतिर्न:पिता हि कमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥5॥
हे परमेश्वर दीर्घायु बना दो श्रेष्ठ - कर्म हम करें निरन्तर ।
मति - मन दोनों अनुकूल रहे यह जीवन हो जाए सुखकर॥5॥
9957
इन्द्रस्य नु सुकृतं दैव्यं सहोSग्निर्गृहे जरिता मेधिरः कविः ।
यज्ञस्य भूद्विदथे चारुरन्तम आ स स्र्वतातिमदितिं वृणीमहे॥6॥
हे अग्नि - देव तुम आ जाओ तुम हो मेरे अत्यन्त निकट ।
तुम पूजनीय तुम ही वरेण्य हो हरते रहो सतत संकट ॥6॥
9958
न वो गुहा चकृम भूरि दुष्कृतं नाविष्ट्यं वसवो देवहेळनम् ।
माकिर्नो देवा अनृतस्य वर्पस आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥7॥
प्रच्छन्न - रूप - में प्रभु - प्रकटे हम श्रध्दा से स्वीकार करें ।
प्रकृति - पावनी - पूज्या को पर सिर - माथे-पर सदा धरें ॥7॥
9959
अपामीवां सविता साविषत्र्यत्र्य1ग्वरीय इदप सेधन्त्वद्रयः ।
ग्रावा यत्र मधुषुदुच्यते बृहदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥8॥
पूजनीय है ज्ञानी जग में ज्ञान - दान वे ही करते हैं ।
सूर्य - देवता स्वस्थ बनाते जग का ताप मेघ हरते हैं ॥8॥
9960
ऊर्ध्वो ग्रावा वसवोSस्तु सोतरि विश्वा द्वेषांसि सनुतर्युयोत ।
स नो देवः सविता पायुरीड्य आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥9॥
हे यज्ञ- देव तुम शुभ - चिन्तक हो राग - द्वेष से हमें बचाओ ।
सूर्य - देव सबके रक्षक हैं प्रकृति-पावनी पास आ जाओ ॥9॥
9961
ऊर्जं गावो यवसे पीवो अत्तन ऋतस्य या: सदने कोशे अङ्ध्वे।
तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥10॥
गो - मॉं कब से भूखी बैठी है चारा उसे मिले भर - पूर ।
गो-रस सोम-सदृश बन जाए मनुज-प्रकृति से हो न दूर ॥10॥
9962
क्रतुपावा जरिता शश्वतामव इन्द्र इद्भद्रा प्रमतिः सुतावताम् ।
पूर्णमूधर्दिव्यं यस्य सिक्तय आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥11॥
नया - वस्त्र एक दिन फट जाता इस जग को खाता है काल ।
हे सूर्य - देव तुम रक्षा करना प्रकृति-पूजनीया है ढाल ॥11॥
9963
चित्रस्ते भानुःक्रतुप्रा अभिष्टिःसन्ति स्पृहो जरणिप्रा अ अधृष्टा:।
रजिष्ठया रज्या पश्व आ गोस्तूतूर्षति पर्यग्रं दुवस्युः ॥12॥
हे परम - पिता हे परमेश्वर तेरा प्रकाश प्रभु - पावन है ।
तुमसे हम बहुत प्रभावित हैं तेरा सुमिरन मन - भावन है ॥12॥
9952
इन्द्र दृह्य मघवन्त्वावदिद्भुज इह स्तुतः सुतपा बोधि नो वृधे ।
देवेभिर्न: सविता प्रावतु श्रुतमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥1॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर तुम ही हो जग के पालन-हार ।
मनो - कामना पूरी करना भोग - मोक्ष - इच्छानुसार ॥1॥
9953
भराय सु भरत भागमृत्वियं प्र वायवे शुचिपे क्रन्ददिष्टये ।
गौरस्य यःपयसःपीतिमानश आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥2॥
पावन-पवन-देव-प्राञ्जल हैं हम प्राण - पवन उनसे पाते हैं ।
हम हवि - भोग उन्हें देते हैं वे ध्वनि सँग आते और जाते हैं॥2॥
9954
आ नो देवः सविता साविषद्वय ऋजूयते यजमानाय सुन्वते ।
यथा देवान्प्रतिभूषेम पाकवदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥3॥
आदित्य - देव आदर्श हमारे सबका ध्यान वही रखते हैं ।
प्रकृति हमारी माता - सम है हम उनकी स्तुति करते हैं ॥3॥
9955
इन्द्रो अस्मे सुमना अस्तु विश्वहा राजा सोमःसुवितस्याध्येतु नः।
यथा - यथा मित्रधितानि संदधुरा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥4॥
हे प्रभु मन प्रसन्न रखना हम पर वरद - हस्त रखना ।
जन - हित जीवन का ध्येय बने यही अनुग्रह हम पर करना ॥4॥
9956
इन्द्र उक्थेन शवसा प्ररुर्दधे बृहस्पते प्रतरीतास्यायुषः ।
यज्ञो मनुः प्रमतिर्न:पिता हि कमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥5॥
हे परमेश्वर दीर्घायु बना दो श्रेष्ठ - कर्म हम करें निरन्तर ।
मति - मन दोनों अनुकूल रहे यह जीवन हो जाए सुखकर॥5॥
9957
इन्द्रस्य नु सुकृतं दैव्यं सहोSग्निर्गृहे जरिता मेधिरः कविः ।
यज्ञस्य भूद्विदथे चारुरन्तम आ स स्र्वतातिमदितिं वृणीमहे॥6॥
हे अग्नि - देव तुम आ जाओ तुम हो मेरे अत्यन्त निकट ।
तुम पूजनीय तुम ही वरेण्य हो हरते रहो सतत संकट ॥6॥
9958
न वो गुहा चकृम भूरि दुष्कृतं नाविष्ट्यं वसवो देवहेळनम् ।
माकिर्नो देवा अनृतस्य वर्पस आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥7॥
प्रच्छन्न - रूप - में प्रभु - प्रकटे हम श्रध्दा से स्वीकार करें ।
प्रकृति - पावनी - पूज्या को पर सिर - माथे-पर सदा धरें ॥7॥
9959
अपामीवां सविता साविषत्र्यत्र्य1ग्वरीय इदप सेधन्त्वद्रयः ।
ग्रावा यत्र मधुषुदुच्यते बृहदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥8॥
पूजनीय है ज्ञानी जग में ज्ञान - दान वे ही करते हैं ।
सूर्य - देवता स्वस्थ बनाते जग का ताप मेघ हरते हैं ॥8॥
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ऊर्ध्वो ग्रावा वसवोSस्तु सोतरि विश्वा द्वेषांसि सनुतर्युयोत ।
स नो देवः सविता पायुरीड्य आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥9॥
हे यज्ञ- देव तुम शुभ - चिन्तक हो राग - द्वेष से हमें बचाओ ।
सूर्य - देव सबके रक्षक हैं प्रकृति-पावनी पास आ जाओ ॥9॥
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ऊर्जं गावो यवसे पीवो अत्तन ऋतस्य या: सदने कोशे अङ्ध्वे।
तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥10॥
गो - मॉं कब से भूखी बैठी है चारा उसे मिले भर - पूर ।
गो-रस सोम-सदृश बन जाए मनुज-प्रकृति से हो न दूर ॥10॥
9962
क्रतुपावा जरिता शश्वतामव इन्द्र इद्भद्रा प्रमतिः सुतावताम् ।
पूर्णमूधर्दिव्यं यस्य सिक्तय आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे॥11॥
नया - वस्त्र एक दिन फट जाता इस जग को खाता है काल ।
हे सूर्य - देव तुम रक्षा करना प्रकृति-पूजनीया है ढाल ॥11॥
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चित्रस्ते भानुःक्रतुप्रा अभिष्टिःसन्ति स्पृहो जरणिप्रा अ अधृष्टा:।
रजिष्ठया रज्या पश्व आ गोस्तूतूर्षति पर्यग्रं दुवस्युः ॥12॥
हे परम - पिता हे परमेश्वर तेरा प्रकाश प्रभु - पावन है ।
तुमसे हम बहुत प्रभावित हैं तेरा सुमिरन मन - भावन है ॥12॥
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