[ऋषि- मन्यु तापस । देवता- मन्यु । छन्द- जगती-त्रिष्टुप् ।]
9660
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षणामासो धृषिता मरुत्वः।
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपा:॥1॥
शौर्य - पूर्ण हैं मन्यु - देवता वे सेना को प्रेरित करते हैं ।
शान्ति हेतु है शस्त्र ज़रूरी वे हमें सुरक्षित रखते हैं॥1॥
9661
अग्निदेव मन्यो त्विषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि।
हत्वाय शत्रून्वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व॥2॥
हे रण - नायक आवाहन है शौर्य बढाता साथ तुम्हारा ।
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है तभी सुरक्षित है जग सारा॥2॥
9662
सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन्मृणन्प्रमृणन् प्रेहि शत्रून्।
उग्र ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् ॥3॥
हे मन्यु - देव हे अद्वितीय तुम धीरज कभी नहीं खोते हो ।
तुम क्रोध -रहित होकर लडते हो इसीलिए विजयी होते हो ॥3॥
9663
एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशंविशं युधये सं शिशाधि ।
अकृत्तरुक्त्वया युजा द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्महे ॥4॥
परम - पूज्य हो तुम प्रणम्य हो अस्त्र-शस्त्र अपने सँग धर लो।
परम-मित्र हो तुम्हीं हमारे अपनी विजय सुनिश्चित कर लो॥4॥
9664
विजेषकृदिन्द्रइवानवब्रवो3स्माकं मन्यो अधिपा भवेह ।
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्या तमुत्सं यत आबभूथ॥5॥
हे मन्यु-देव तुम इन्द्र सदृश हो तुम अधिपति हो मितभाषी हो।
हम प्रेम से तुम्हें बुलाते हैं तुम बलशाली अविनाशी हो ॥5॥
9665
आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बबिभर्ष्यभिभूत उत्तरम् ।
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥6॥
अद्भुत - अनुपम रूप तुम्हारा सरलता की तुम मूरत हो ।
वीरोचित - औदार्य - युक्त हो और तुम बहुत खूबसूरत हो ॥6॥
9666
संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः ।
भियं दधाना हृदयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम्॥7॥
वरणीय मन्यु सुख-वैभव देना निर्भय होकर जीवन जी लें ।
तेजस्विता हमें भी दे दो हम भी सुख का अमृत पी लें ।॥7॥
9660
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षणामासो धृषिता मरुत्वः।
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपा:॥1॥
शौर्य - पूर्ण हैं मन्यु - देवता वे सेना को प्रेरित करते हैं ।
शान्ति हेतु है शस्त्र ज़रूरी वे हमें सुरक्षित रखते हैं॥1॥
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अग्निदेव मन्यो त्विषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि।
हत्वाय शत्रून्वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व॥2॥
हे रण - नायक आवाहन है शौर्य बढाता साथ तुम्हारा ।
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है तभी सुरक्षित है जग सारा॥2॥
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सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन्मृणन्प्रमृणन् प्रेहि शत्रून्।
उग्र ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् ॥3॥
हे मन्यु - देव हे अद्वितीय तुम धीरज कभी नहीं खोते हो ।
तुम क्रोध -रहित होकर लडते हो इसीलिए विजयी होते हो ॥3॥
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एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशंविशं युधये सं शिशाधि ।
अकृत्तरुक्त्वया युजा द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्महे ॥4॥
परम - पूज्य हो तुम प्रणम्य हो अस्त्र-शस्त्र अपने सँग धर लो।
परम-मित्र हो तुम्हीं हमारे अपनी विजय सुनिश्चित कर लो॥4॥
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विजेषकृदिन्द्रइवानवब्रवो3स्माकं मन्यो अधिपा भवेह ।
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्या तमुत्सं यत आबभूथ॥5॥
हे मन्यु-देव तुम इन्द्र सदृश हो तुम अधिपति हो मितभाषी हो।
हम प्रेम से तुम्हें बुलाते हैं तुम बलशाली अविनाशी हो ॥5॥
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आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बबिभर्ष्यभिभूत उत्तरम् ।
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥6॥
अद्भुत - अनुपम रूप तुम्हारा सरलता की तुम मूरत हो ।
वीरोचित - औदार्य - युक्त हो और तुम बहुत खूबसूरत हो ॥6॥
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संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः ।
भियं दधाना हृदयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम्॥7॥
वरणीय मन्यु सुख-वैभव देना निर्भय होकर जीवन जी लें ।
तेजस्विता हमें भी दे दो हम भी सुख का अमृत पी लें ।॥7॥
अनमोल वचन...
ReplyDeleteस्थापित तन्त्रों को बचाये रखने के लिये शौर्य आवश्यक है
ReplyDeleteअद्भुत - अनुपम रूप तुम्हारा सरलता की तुम मूरत हो ।
ReplyDeleteवीरोचित - औदार्य - युक्त हो और तुम बहुत खूबसूरत हो ॥6॥
सुंदर प्रार्थना..