Monday, 23 December 2013

सूक्त - 84

[ऋषि- मन्यु तापस । देवता- मन्यु । छन्द- जगती-त्रिष्टुप् ।]

9660
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षणामासो धृषिता मरुत्वः।
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपा:॥1॥

शौर्य - पूर्ण  हैं  मन्यु - देवता  वे  सेना  को  प्रेरित  करते  हैं ।
शान्ति  हेतु  है  शस्त्र  ज़रूरी  वे  हमें  सुरक्षित  रखते  हैं॥1॥

9661
अग्निदेव मन्यो त्विषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि।
हत्वाय शत्रून्वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व॥2॥

हे  रण - नायक  आवाहन  है  शौर्य  बढाता  साथ  तुम्हारा ।
दुष्ट - दमन  अति  आवश्यक  है  तभी सुरक्षित है जग सारा॥2॥

9662
सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन्मृणन्प्रमृणन्  प्रेहि शत्रून्।
उग्र  ते  पाजो  नन्वा  रुरुध्रे  वशी  वशं  नयस एकज त्वम् ॥3॥

हे  मन्यु - देव  हे  अद्वितीय तुम  धीरज  कभी  नहीं  खोते  हो ।
तुम  क्रोध -रहित होकर लडते हो इसीलिए विजयी होते हो ॥3॥

9663
एको  बहूनामसि  मन्यवीळितो  विशंविशं  युधये  सं शिशाधि ।
अकृत्तरुक्त्वया   युजा   द्युमन्तं   घोषं   विजयाय   कृण्महे ॥4॥

परम - पूज्य  हो  तुम  प्रणम्य हो अस्त्र-शस्त्र अपने सँग धर लो।
परम-मित्र हो तुम्हीं हमारे अपनी विजय सुनिश्चित  कर लो॥4॥

9664
विजेषकृदिन्द्रइवानवब्रवो3स्माकं    मन्यो    अधिपा    भवेह ।
प्रियं  ते  नाम  सहुरे  गृणीमसि विद्या तमुत्सं यत आबभूथ॥5॥

हे मन्यु-देव तुम इन्द्र सदृश हो तुम अधिपति हो मितभाषी हो।
हम  प्रेम  से  तुम्हें  बुलाते  हैं  तुम बलशाली अविनाशी हो ॥5॥

9665
आभूत्या  सहजा  वज्र  सायक  सहो  बबिभर्ष्यभिभूत  उत्तरम् ।
क्रत्वा  नो  मन्यो  सह  मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥6॥

अद्भुत - अनुपम  रूप  तुम्हारा  सरलता  की  तुम  मूरत  हो ।
वीरोचित - औदार्य - युक्त  हो  और  तुम बहुत खूबसूरत हो ॥6॥

9666
संसृष्टं  धनमुभयं  समाकृतमस्मभ्यं  दत्तां  वरुणश्च  मन्युः । 
भियं दधाना हृदयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम्॥7॥

वरणीय  मन्यु  सुख-वैभव  देना  निर्भय होकर जीवन जी लें ।
तेजस्विता  हमें  भी  दे  दो हम भी सुख का अमृत पी लें ।॥7॥     
 
  

3 comments:

  1. स्थापित तन्त्रों को बचाये रखने के लिये शौर्य आवश्यक है

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  2. अद्भुत - अनुपम रूप तुम्हारा सरलता की तुम मूरत हो ।
    वीरोचित - औदार्य - युक्त हो और तुम बहुत खूबसूरत हो ॥6॥
    सुंदर प्रार्थना..

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