Sunday, 29 December 2013

सूक्त - 77

[ऋषि- स्यूमरश्मि भार्गव । देवता- मरुद्गण । छन्द- त्रिष्टुप् - जगती ।]

9609
अभ्रपुषो न वाचा प्रुषा वसु हविष्मन्तो न यज्ञा विजानुषः ।
सुमारुतं  न  ब्रह्माणमर्हसे  गणमस्तोष्येषां  न शोभसे ॥1॥

वेदज्ञ-सदृश हैं सभी मरुद्गण रिमझिम-फुहार सम भाते हैं ।
वाणी का आभूषण देते हैं अन्न - धान  देकर  जाते  हैं ॥1॥

9610
श्रिये  मर्यासो  अर्ञ्जींरकृण्वत  सुमारुतं  न पूर्वीरति क्षपः ।
दिवस्पुत्रास एता न येतिर आदित्यासस्ते अक्रा न वावृधुः॥2॥

ये सुख-साधन हमको देते हैं कोई प्रतिकार नहीं कर सकता ।
गति-शील स्वतः ही हो जाते हैं छोटे हैं पर है अद्भुत क्षमता॥2॥

9611
प्र  ये  दिवः पृथिव्या  न  बर्हणा त्मना रिरिच्रे  अभ्रान्न सूर्यः ।
पाजस्वन्तो न वीरा:पनस्यवो रिशादसो न मर्या अभिद्यवः॥3॥

अति - समर्थ  हैं  यही  मरुद्गण  ये  अद्वितीय  बल - शाली  हैं ।
दुष्टों  का  दमन  वही  करते  हैं  यश-शाली वैभव-शाली हैं ॥3॥

9612
युष्माकं  बुध्ने अपां  न यामनि  विथुर्यति  न  मही श्रथर्यति ।
विश्वप्सुरर्यज्ञो अर्वागयं सु वःप्रयस्वन्तो न सत्राच आ गत॥4॥

जब  जल-प्रवाह  सम  बढते  हैं तब पृथ्वी प्रसन्न हो जाती है ।
जन-जन को हवि-भोग बॉटते और संघ-शक्ति मुस्काती है॥4॥

9613
यूयं  धूर्षु  प्रयुजो  न  रश्मिभिर्ज्योतिष्मन्तो न भासा व्युष्टिषु ।
श्येनासो न स्वयशसो रिशादसःप्रवासो न प्रसितासःपरिप्रुषः॥5॥

सूरज-समान  तुम  सब  तेजस्वी  दौंरी-फंदाय  सम  चलते हो ।
सोच सतत सुखकर रखते हो पथिक-समान भ्रमण करते हो॥5॥

9614
प्र   यद्वहध्वे   मरुतः   पराकाद्यूयं   महः  संवरणस्य   वस्वः ।
विदानासो   वसवो  राध्यस्याराच्चिद्  द्वेषः   सनुतर्युयोत॥6॥

अत्यन्त दूर से नभ से भू-पर मरुत जब आकस्मिक आते हैं।
तब श्रेष्ठ अन्न-फल-शाक हेतु रिमझिम फुहार बरसाते हैं।॥6॥

9615
य   उदृचि   यज्ञे   अध्वरेष्ठा   मरुद्भ्यो  न  मानुषो  ददाशत् ।
रेवत्स  वयो  दधते  सुवीरं  स  देवानामपि  गोपीथे अस्तु॥7॥

अनुष्ठान  के  बाद  मनुज  भी  मरुत - सदृश   ही   देते  दान ।
लंबी - उमर  वही   पाते   हैं  वह  ही  पाते  हैं  धन - धान ॥7॥

9616
ते  हि  यज्ञेषु यज्ञियास ऊमा आदित्येन नाम्ना शम्भविष्ठा: ।
ते  नोSवन्तु  रथतूर्मनीषां  महश्च  यामन्नध्वरे चकाना: ॥8॥

हे  प्रभु  रक्षा  करो  हमारी  मन-मति  की  बढ  जाए  महिमा ।
जल्दी मत जाओ रुको तनिक मैं भी तो पा लूँ तेरी गरिमा॥8॥     

 
  

2 comments:

  1. ज्ञान सागर के मोती...

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  2. अति - समर्थ हैं यही मरुद्गण ये अद्वितीय बल - शाली हैं ।
    दुष्टों का दमन वही करते हैं यश-शाली वैभव-शाली हैं ॥3॥

    हमें भी बल और शक्ति का वरदान मिले...

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