[ऋषि- स्यूमरश्मि भार्गव । देवता- मरुद्गण । छन्द- त्रिष्टुप् -जगती ।]
9617
विप्रासो न मन्मभिः स्वाध्यो देवाव्यो3 न यज्ञैः स्वप्नसः ।
राजानो न चित्रा: सुसन्दृशः क्षितीनां न मर्या अरेपसः ॥1॥
हे मारुत-मनन-शील-मेधावी तुम शुभ-कर्म सदा करते हो ।
हम सब तुम पर ही आश्रित हैं तुम मेरे अपने लगते हो ॥1॥
9618
अग्निर्न ये भ्राजसा रुक्मवक्षसो वातासो न स्वयुजःसद्यऊतयः।
प्रज्ञातारो न ज्येष्ठा: सुनीतयः सुशर्माणो न सोमा ऋतं यते ॥2॥
तुम अग्नि - देव सम तेजस्वी हो चरैवेति है ध्येय तुम्हारा ।
तुम्हें कोई रोक नहीं सकता प्राञ्जल-प्रवाह है सबको प्यारा॥2॥
9619
वातासो न ये धुनयो जिगत्नवोSग्नीनां न जिह्वा विरोकिणः ।
वर्मण्वन्तो न योधा: शिमीवन्तः पितृणां न शंसा: सुरातयः॥3॥
पावन-पवन के प्रबल वेग पर प्रकम्पित होते हैं सब रिपु-दल ।
पूजनीय हैं पवन - देवता हैं धी र- वीर अत्यन्त सबल ॥3॥
9620
रथानां न ये1राह सनाभयो जिगीवांसो न शूरा अभिद्यवः ।
वरेयवो न मर्या घृतप्रुषोSभिस्वर्तारो अर्कं न न्सुष्टुभः॥4॥
पवन - देवता शूर - वीर हैं वे ही रथ - चक्र थामते हैं ।
आत्मीय हमारे मृदुभाषी हैं वे वेद-ऋचा उचारते हैं ॥4॥
9621
अश्वासो न ये ज्येष्ठास आशवो दिधिषवो न रथ्यः सुदानवः ।
आपो न निम्नैररुदभिर्जिगत्नवो विश्वरूपा अङ्गिरसो न सामभिः॥5॥
पवन--देव में अद्भुत-गति है हर ओर प्रवाहित हो सकते हैं ।
वे यश-वैभव के स्वामी हैं वे साम-ऋचा गाया करते हैं ॥5॥
9622
ग्रावाणो न सूरयः सिन्धुमातर आदर्दिरासो अद्रयो न विश्वहा ।
शिशूला न क्रीळयःसुमातरो महाग्रामो न यामन्नुत त्विषा॥6॥
जननी सदृश प्रेम है उनका वे दुष्टों से हमें बचाते हैं ।
जल-प्रवाह भी वही बनाते पथ-पर चलना सिखलाते हैं ॥6॥
9623
उषसां न केतवोSध्वरश्रियः शुभंयवो नाञ्जिभिर्व्यश्वितन् ।
सिन्धवो न ययियो भ्राजदृष्ट्यः परावतो न योजनानि ममिरे॥7॥
ऊषा - किरण - सम यज्ञ - भाव है वे सबका मँगल करते हैं ।
सरिता-सदृश-सुखद-साधक हैं पथिक-समान सदा चलते हैं॥7॥
9624
सुभागान्नो देवा: कृणुता सुरत्नानस्मान्त्स्तोतृन्मरुतो वावृधाना: ।
अधि स्तोत्रस्य सख्यस्य गात सनाध्दि वो रत्नधेयानि सन्ति॥8॥
गति से बढते हुए मरुद्गण हम सबको देते हैं धन - धान ।
वे भाव-बोध से हमें जानते वे हैं सचमुच कृपा-निधान॥8॥
9617
विप्रासो न मन्मभिः स्वाध्यो देवाव्यो3 न यज्ञैः स्वप्नसः ।
राजानो न चित्रा: सुसन्दृशः क्षितीनां न मर्या अरेपसः ॥1॥
हे मारुत-मनन-शील-मेधावी तुम शुभ-कर्म सदा करते हो ।
हम सब तुम पर ही आश्रित हैं तुम मेरे अपने लगते हो ॥1॥
9618
अग्निर्न ये भ्राजसा रुक्मवक्षसो वातासो न स्वयुजःसद्यऊतयः।
प्रज्ञातारो न ज्येष्ठा: सुनीतयः सुशर्माणो न सोमा ऋतं यते ॥2॥
तुम अग्नि - देव सम तेजस्वी हो चरैवेति है ध्येय तुम्हारा ।
तुम्हें कोई रोक नहीं सकता प्राञ्जल-प्रवाह है सबको प्यारा॥2॥
9619
वातासो न ये धुनयो जिगत्नवोSग्नीनां न जिह्वा विरोकिणः ।
वर्मण्वन्तो न योधा: शिमीवन्तः पितृणां न शंसा: सुरातयः॥3॥
पावन-पवन के प्रबल वेग पर प्रकम्पित होते हैं सब रिपु-दल ।
पूजनीय हैं पवन - देवता हैं धी र- वीर अत्यन्त सबल ॥3॥
9620
रथानां न ये1राह सनाभयो जिगीवांसो न शूरा अभिद्यवः ।
वरेयवो न मर्या घृतप्रुषोSभिस्वर्तारो अर्कं न न्सुष्टुभः॥4॥
पवन - देवता शूर - वीर हैं वे ही रथ - चक्र थामते हैं ।
आत्मीय हमारे मृदुभाषी हैं वे वेद-ऋचा उचारते हैं ॥4॥
9621
अश्वासो न ये ज्येष्ठास आशवो दिधिषवो न रथ्यः सुदानवः ।
आपो न निम्नैररुदभिर्जिगत्नवो विश्वरूपा अङ्गिरसो न सामभिः॥5॥
पवन--देव में अद्भुत-गति है हर ओर प्रवाहित हो सकते हैं ।
वे यश-वैभव के स्वामी हैं वे साम-ऋचा गाया करते हैं ॥5॥
9622
ग्रावाणो न सूरयः सिन्धुमातर आदर्दिरासो अद्रयो न विश्वहा ।
शिशूला न क्रीळयःसुमातरो महाग्रामो न यामन्नुत त्विषा॥6॥
जननी सदृश प्रेम है उनका वे दुष्टों से हमें बचाते हैं ।
जल-प्रवाह भी वही बनाते पथ-पर चलना सिखलाते हैं ॥6॥
9623
उषसां न केतवोSध्वरश्रियः शुभंयवो नाञ्जिभिर्व्यश्वितन् ।
सिन्धवो न ययियो भ्राजदृष्ट्यः परावतो न योजनानि ममिरे॥7॥
ऊषा - किरण - सम यज्ञ - भाव है वे सबका मँगल करते हैं ।
सरिता-सदृश-सुखद-साधक हैं पथिक-समान सदा चलते हैं॥7॥
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सुभागान्नो देवा: कृणुता सुरत्नानस्मान्त्स्तोतृन्मरुतो वावृधाना: ।
अधि स्तोत्रस्य सख्यस्य गात सनाध्दि वो रत्नधेयानि सन्ति॥8॥
गति से बढते हुए मरुद्गण हम सबको देते हैं धन - धान ।
वे भाव-बोध से हमें जानते वे हैं सचमुच कृपा-निधान॥8॥
ऊषा - किरण - सम यज्ञ - भाव है वे सबका मँगल करते हैं ।
ReplyDeleteसरिता-सदृश-सुखद-साधक हैं पथिक-समान सदा चलते हैं॥7॥
अति सुंदर भाव !
अति सुंदर...
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