[ऋषि--तान्व पार्थ । देवता- विश्वेदेवा । छन्द-पंक्ति-अनुष्टुप्--सारिणी-बृहती।]
9845
महि द्यावापृथिवी भूतमूर्वी नारी यह्वी न रोदसी सदं नः।
तेभिर्नः पातं सह्यस एभिर्नः पातं शूषणि॥1॥
यह धरती सबकी माता है प्रभु करना इसका विस्तार ।
यह देती है हमें सुरक्षा यह ही तो है पालन - हार ॥1॥
9846
यज्ञेयज्ञे स मर्त्यो देवान्त्सपर्यति।
यः सुम्नैर्दीर्घश्रुत्तम आविवासात्येनान् ॥2॥
पर - हित में जो रत रहते हैं जग-हित में करते हैं काम ।
प्रभु-उपासना जो करते हैं निशि-दिन लेते प्रभु का नाम॥2॥
9847
विश्वेषामिरज्यवो देवानां वार्महः ।
विश्वे हि विश्वमहसो विश्वे यज्ञेषु यज्ञिया:॥3॥
हे परमेश्वर यश - वैभव दो बन जायें प्रभु हम तेजस्वी ।
यज्ञ - धर्म में लगे रहें हम सबकी वाणी हो ओजस्वी ॥3॥
9848
ते घा राजानो अमृतस्य मन्द्रा अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्मा।
कद्रुद्रो नृणां स्तुतो मरुतः पूषणो भगः ॥4॥
परमेश्वर हमसे कहते हैं सुख - मय जीवन जिया करो ।
सुधा सदृश औषधियॉ लेकर प्रति-दिन इसको पिया करो॥4॥
9849
उत नो नक्तमपां वृषण्वसू सूर्यामासा सदनाय सधन्या ।
सचा यत्साद्येषामहिर्बुध्नेषु बुध्न्यः ॥5॥
जीवन में जो भी आवश्यक हो हे प्रभु हमको देते रहना ।
सतत सुरक्षा देना प्रभु जल- वायु सदा पावन रखना॥5॥
9850
उत नो देवावश्विना शुभस्पती धामभिर्मित्रावरुणा उरुष्यताम्।
महः स राय ए एषतेSति धन्वेव दुरिता ॥6॥
आदित्य - देव आलोक हमें दो तुम हम सबकी रक्षा करना ।
महाबली हो हे परमेश्वर जग को देना तुम्हीं सुरक्षा ॥6॥
9851
उत नो रुद्रा चिन्मृळतामश्विना विश्वे देवासो रथस्पतिर्भगः।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षण: परिज्मा विश्ववेदसः ॥7॥
हे प्रभु तुम धन-वैभव देना जीवन यह उपवन बन जाए ।
करो अनुग्रह हे परमात्मा तेरी पूजा में मन लग जाए ॥7॥
9852
ऋभुरृभुक्षा ऋभुर्विधतो मद आ ते हरी जूजुवानस्य वाजिना।
दुष्टरं यस्य साम चिद्रिधग्यज्ञो न मानुषः ॥8॥
प्रभु का आनन्द भी अनन्त है अति समर्थ है वह परमेश्वर ।
जग की रचना कितनी सुन्दर मन की रचना अति सुन्दर॥8॥
9853
कृधी नो अह्नयो देव सवितः स च स्तुषे मघोनाम् ।
सहो न इन्द्रो वह्निभिर्न्येषां चर्षणीना चक्रं रश्मिं न योयुवे॥9॥
ऐसा कर्म करें हम भगवन जिससे न हो अपराध-बोध ।
जीवन यह बन जाए कसौटी स्वयं करें अपना ही शोध ॥9॥
9854
ऐषु द्यावापृथिवी धातं महदस्मे वीरेषु विश्वचर्षणि श्रवः।
पृक्षं वाजस्य सातये पृक्षं रायोत तुवर्णे॥10॥
वरद- हस्त रखना संतति पर यश - वैभव का देना वरदान।
संकट से तुम उन्हें बचाना जीवन बन जाए गौरव-गान॥10॥
9855
एतं शंसमिन्द्रास्मयुष्ट्वं कूचित्सन्तं सहसावन्नभिष्टये सदा पाह्यभिष्टये।
मेदतां वेदता वसो ॥11॥
प्रभु मेरा अभिप्राय समझना सत्पथ मुझको दिखलाना ।
मनो-कामना पूरी करना कर्तव्य-धर्म मुझको समझाना॥11॥
9856
एतं मे स्तोमं तना न सूर्ये द्युतद्यामानं वावृधन्त नृणाम् ।
संववनं नाश्व्यं तष्टेवानपच्युतम् ॥12॥
सूर्य-किरण आलोक बॉंटती तुम देना गुण का भण्डार ।
सदा अर्चना करें तुम्हारी जीवन हो सुख का आगार॥12॥
9857
वावर्त येषां राया युक्तैषां हिरण्ययी ।
नेमधिता न पौंस्या वृथेव विष्टान्ता॥13॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर सद्बुध्दि सदा हमको देना ।
हम बार-बार यदि भूल करें तो भी हमको अपना लेना॥13॥
9858
प्र तद्दुःशीमे पृथवाने वेने प्र रामे वोचमसुरे मघवत्सु ।
ये युक्त्वाय पञ्च शतास्मयु पथा विश्राव्येषाम् ॥14॥
भीतर - बाहर के दुश्मन से हे प्रभु तुम ही हमें बचाना ।
धन से धान से घर भर देना जन-हित में तुम हमें लगाना॥14॥
9859
अधीन्न्वत्र सप्ततिं च सप्त च ।
सद्यो दिदिष्ट तान्वःसद्यो दिदिष्ट पार्थ्यःसद्यो दिदिष्ट मायवः॥15॥
वेद - ऋचायें सिखलाती हैं त्याग - सँग उपभोग करो ।
तुम जो चाहोगे वही मिलेगा तुम बस केवल संकल्प करो॥15॥
9845
महि द्यावापृथिवी भूतमूर्वी नारी यह्वी न रोदसी सदं नः।
तेभिर्नः पातं सह्यस एभिर्नः पातं शूषणि॥1॥
यह धरती सबकी माता है प्रभु करना इसका विस्तार ।
यह देती है हमें सुरक्षा यह ही तो है पालन - हार ॥1॥
9846
यज्ञेयज्ञे स मर्त्यो देवान्त्सपर्यति।
यः सुम्नैर्दीर्घश्रुत्तम आविवासात्येनान् ॥2॥
पर - हित में जो रत रहते हैं जग-हित में करते हैं काम ।
प्रभु-उपासना जो करते हैं निशि-दिन लेते प्रभु का नाम॥2॥
9847
विश्वेषामिरज्यवो देवानां वार्महः ।
विश्वे हि विश्वमहसो विश्वे यज्ञेषु यज्ञिया:॥3॥
हे परमेश्वर यश - वैभव दो बन जायें प्रभु हम तेजस्वी ।
यज्ञ - धर्म में लगे रहें हम सबकी वाणी हो ओजस्वी ॥3॥
9848
ते घा राजानो अमृतस्य मन्द्रा अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्मा।
कद्रुद्रो नृणां स्तुतो मरुतः पूषणो भगः ॥4॥
परमेश्वर हमसे कहते हैं सुख - मय जीवन जिया करो ।
सुधा सदृश औषधियॉ लेकर प्रति-दिन इसको पिया करो॥4॥
9849
उत नो नक्तमपां वृषण्वसू सूर्यामासा सदनाय सधन्या ।
सचा यत्साद्येषामहिर्बुध्नेषु बुध्न्यः ॥5॥
जीवन में जो भी आवश्यक हो हे प्रभु हमको देते रहना ।
सतत सुरक्षा देना प्रभु जल- वायु सदा पावन रखना॥5॥
9850
उत नो देवावश्विना शुभस्पती धामभिर्मित्रावरुणा उरुष्यताम्।
महः स राय ए एषतेSति धन्वेव दुरिता ॥6॥
आदित्य - देव आलोक हमें दो तुम हम सबकी रक्षा करना ।
महाबली हो हे परमेश्वर जग को देना तुम्हीं सुरक्षा ॥6॥
9851
उत नो रुद्रा चिन्मृळतामश्विना विश्वे देवासो रथस्पतिर्भगः।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षण: परिज्मा विश्ववेदसः ॥7॥
हे प्रभु तुम धन-वैभव देना जीवन यह उपवन बन जाए ।
करो अनुग्रह हे परमात्मा तेरी पूजा में मन लग जाए ॥7॥
9852
ऋभुरृभुक्षा ऋभुर्विधतो मद आ ते हरी जूजुवानस्य वाजिना।
दुष्टरं यस्य साम चिद्रिधग्यज्ञो न मानुषः ॥8॥
प्रभु का आनन्द भी अनन्त है अति समर्थ है वह परमेश्वर ।
जग की रचना कितनी सुन्दर मन की रचना अति सुन्दर॥8॥
9853
कृधी नो अह्नयो देव सवितः स च स्तुषे मघोनाम् ।
सहो न इन्द्रो वह्निभिर्न्येषां चर्षणीना चक्रं रश्मिं न योयुवे॥9॥
ऐसा कर्म करें हम भगवन जिससे न हो अपराध-बोध ।
जीवन यह बन जाए कसौटी स्वयं करें अपना ही शोध ॥9॥
9854
ऐषु द्यावापृथिवी धातं महदस्मे वीरेषु विश्वचर्षणि श्रवः।
पृक्षं वाजस्य सातये पृक्षं रायोत तुवर्णे॥10॥
वरद- हस्त रखना संतति पर यश - वैभव का देना वरदान।
संकट से तुम उन्हें बचाना जीवन बन जाए गौरव-गान॥10॥
9855
एतं शंसमिन्द्रास्मयुष्ट्वं कूचित्सन्तं सहसावन्नभिष्टये सदा पाह्यभिष्टये।
मेदतां वेदता वसो ॥11॥
प्रभु मेरा अभिप्राय समझना सत्पथ मुझको दिखलाना ।
मनो-कामना पूरी करना कर्तव्य-धर्म मुझको समझाना॥11॥
9856
एतं मे स्तोमं तना न सूर्ये द्युतद्यामानं वावृधन्त नृणाम् ।
संववनं नाश्व्यं तष्टेवानपच्युतम् ॥12॥
सूर्य-किरण आलोक बॉंटती तुम देना गुण का भण्डार ।
सदा अर्चना करें तुम्हारी जीवन हो सुख का आगार॥12॥
9857
वावर्त येषां राया युक्तैषां हिरण्ययी ।
नेमधिता न पौंस्या वृथेव विष्टान्ता॥13॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर सद्बुध्दि सदा हमको देना ।
हम बार-बार यदि भूल करें तो भी हमको अपना लेना॥13॥
9858
प्र तद्दुःशीमे पृथवाने वेने प्र रामे वोचमसुरे मघवत्सु ।
ये युक्त्वाय पञ्च शतास्मयु पथा विश्राव्येषाम् ॥14॥
भीतर - बाहर के दुश्मन से हे प्रभु तुम ही हमें बचाना ।
धन से धान से घर भर देना जन-हित में तुम हमें लगाना॥14॥
9859
अधीन्न्वत्र सप्ततिं च सप्त च ।
सद्यो दिदिष्ट तान्वःसद्यो दिदिष्ट पार्थ्यःसद्यो दिदिष्ट मायवः॥15॥
वेद - ऋचायें सिखलाती हैं त्याग - सँग उपभोग करो ।
तुम जो चाहोगे वही मिलेगा तुम बस केवल संकल्प करो॥15॥
वेद - ऋचायें सिखलाती हैं त्याग - सँग उपभोग करो ।
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शाश्वत सत्य..आभार !