[ऋषि- अप्रतिरथ ऐन्द्र । देवता- इन्द्र-बृहस्पति-अप्पा देवी-मरुद्-गण। छन्द- त्रिष्टुप-अनुष्टुप ।
9988
आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीननाम् ।
सङ्क्रन्दनोSनिमिष एकवीरः शतं सेना अजयत्साकमिन्द्रः॥1॥
सज्जन को तुम्हीं सुरक्षा देते दुष्टों का करते हो संहार ।
राग - द्वेष से परे हो प्रभु - वर जग में आते हो बारम्बार॥1॥
9989
सङ्क्रन्दनेनानिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना।
तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा॥2॥
सत्कर्म हेतु तत्पर रहते हो अविचल होकर भी लडते हो ।
नीति-निपुण हो फिर भी प्रभु असुरों से युध्द तुम्हीं करते हो॥2॥
9990
स इषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी संस्त्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन ।
संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्यु1 ग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥3॥
हे इन्द्र - देव तुम युध्द-वीर हो रिपु-दमन सदा करते रहना ।
कुशल धनुर्धारी भी तुम हो मन - भर सोम-पान करना ॥3॥
9991
बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्रॉं अपबाधमानः ।
प्रभञ्जन्त्सेना:प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम्॥4॥
असुर - निवारण तुम करते हो तुम हो सबके पालन - हार ।
सबकी रक्षा तुम करते हो विजयी होते हो बारम्बार ॥4॥
9992
बलविज्ञाय स्थविरः प्रवीरः सहस्वान्वाजी सहवान उग्रः ।
अभिवीरो अभिसत्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित्॥5॥
चारों - बल है पास तुम्हारे हे महावीर हे बलशाली ।
रहो प्रतिष्ठित विजयी- रथ पर अद्भुत है यह विजय - प्रणाली ॥5॥
9993
गोत्रभिदं गोविदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा ।
इमं सजाता अनु वीरयध्वमिन्द्रं सखायो अनु सं रभध्वम् ॥6॥
हे इन्द्र - देव हे गो - पालक हमको पावन - पथ दिखलाओ ।
तुम ही एक सहारा हो प्रभु जीवन का उद्देश्य बताओ ॥6॥
9994
अभि गोत्राणि सहसा गाहमानोSदयो वीरः शतमन्युरिन्द्रः ।
दुश्च्यवनःपृतनासषाळययुध्यो3Sस्माकं सेना अवतु प्र युत्सु॥7॥
हे अविचल हे अद्वितीय प्रभु तुम सबकी रक्षा करना ।
दुष्ट-दमन अति आवश्यक है सज्जन का सदा ध्यान रखना॥7॥
9995
इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः ।
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ॥8॥
देव - बृहस्पति सबसे आगे हर जगह उपस्थित रहते हैं ।
मति की महिमा सभी मानते मति-अनुसार कर्म-करते हैं ॥8॥
9996
इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुतां शर्ध उग्रम् ।
महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात् ॥9॥
आदित्य - अम्बु और अनिल - देव ये तीनों सँग-सँग रहते हैं ।
अति विशाल है मन इनका जय - घोष के साथ ठहरते हैं ॥9॥
9997
उध्दर्षय मघवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मनांसि ।
उद्वृवृत्रहन्वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतां यन्तु घोषा:॥10॥
कर्म - योग का पथ दिखलाओ प्रभु प्रेरक-पन्थ प्रदान करो ।
इस जीवन में आनन्द समाए सबकी विपदा तुम्हीं हरो॥10॥
9998
अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीरा उत्तरे बभवन्त्वस्मॉं उ देवा अवता हवेषु ॥11॥
सदा सुरक्षा देना प्रभु - वर इस रण में विजय हमारी हो ।
सबका प्रभु कल्याण सदा हो असत पर सत ही भारी हो ॥11॥
9999
अमीषं चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणाङ्गान्यप्वे परेहि ।
अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम्॥12॥
असुर - वृत्ति से दूर रहें हम हे प्रभु तुम ही हमें बचाना ।
मन से तमस मिटाना प्रभुवर और फिर प्रकाश तक ले जाना॥12॥
10000
प्रेता जयता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छतु ।
उग्रा वः सन्तु बाहवोSनाधृष्या यथासथ॥13॥
आनंदित हो हम सबका मन सबको सुख-शान्ति प्रदान करो ।
हे प्रभु हमें समर्थ बनाओ यश - वैभव का भण्डार भरो ॥13॥
9988
आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीननाम् ।
सङ्क्रन्दनोSनिमिष एकवीरः शतं सेना अजयत्साकमिन्द्रः॥1॥
सज्जन को तुम्हीं सुरक्षा देते दुष्टों का करते हो संहार ।
राग - द्वेष से परे हो प्रभु - वर जग में आते हो बारम्बार॥1॥
9989
सङ्क्रन्दनेनानिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना।
तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा॥2॥
सत्कर्म हेतु तत्पर रहते हो अविचल होकर भी लडते हो ।
नीति-निपुण हो फिर भी प्रभु असुरों से युध्द तुम्हीं करते हो॥2॥
9990
स इषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी संस्त्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन ।
संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्यु1 ग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥3॥
हे इन्द्र - देव तुम युध्द-वीर हो रिपु-दमन सदा करते रहना ।
कुशल धनुर्धारी भी तुम हो मन - भर सोम-पान करना ॥3॥
9991
बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्रॉं अपबाधमानः ।
प्रभञ्जन्त्सेना:प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम्॥4॥
असुर - निवारण तुम करते हो तुम हो सबके पालन - हार ।
सबकी रक्षा तुम करते हो विजयी होते हो बारम्बार ॥4॥
9992
बलविज्ञाय स्थविरः प्रवीरः सहस्वान्वाजी सहवान उग्रः ।
अभिवीरो अभिसत्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित्॥5॥
चारों - बल है पास तुम्हारे हे महावीर हे बलशाली ।
रहो प्रतिष्ठित विजयी- रथ पर अद्भुत है यह विजय - प्रणाली ॥5॥
9993
गोत्रभिदं गोविदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा ।
इमं सजाता अनु वीरयध्वमिन्द्रं सखायो अनु सं रभध्वम् ॥6॥
हे इन्द्र - देव हे गो - पालक हमको पावन - पथ दिखलाओ ।
तुम ही एक सहारा हो प्रभु जीवन का उद्देश्य बताओ ॥6॥
9994
अभि गोत्राणि सहसा गाहमानोSदयो वीरः शतमन्युरिन्द्रः ।
दुश्च्यवनःपृतनासषाळययुध्यो3Sस्माकं सेना अवतु प्र युत्सु॥7॥
हे अविचल हे अद्वितीय प्रभु तुम सबकी रक्षा करना ।
दुष्ट-दमन अति आवश्यक है सज्जन का सदा ध्यान रखना॥7॥
9995
इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः ।
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ॥8॥
देव - बृहस्पति सबसे आगे हर जगह उपस्थित रहते हैं ।
मति की महिमा सभी मानते मति-अनुसार कर्म-करते हैं ॥8॥
9996
इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुतां शर्ध उग्रम् ।
महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात् ॥9॥
आदित्य - अम्बु और अनिल - देव ये तीनों सँग-सँग रहते हैं ।
अति विशाल है मन इनका जय - घोष के साथ ठहरते हैं ॥9॥
9997
उध्दर्षय मघवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मनांसि ।
उद्वृवृत्रहन्वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतां यन्तु घोषा:॥10॥
कर्म - योग का पथ दिखलाओ प्रभु प्रेरक-पन्थ प्रदान करो ।
इस जीवन में आनन्द समाए सबकी विपदा तुम्हीं हरो॥10॥
9998
अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीरा उत्तरे बभवन्त्वस्मॉं उ देवा अवता हवेषु ॥11॥
सदा सुरक्षा देना प्रभु - वर इस रण में विजय हमारी हो ।
सबका प्रभु कल्याण सदा हो असत पर सत ही भारी हो ॥11॥
9999
अमीषं चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणाङ्गान्यप्वे परेहि ।
अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम्॥12॥
असुर - वृत्ति से दूर रहें हम हे प्रभु तुम ही हमें बचाना ।
मन से तमस मिटाना प्रभुवर और फिर प्रकाश तक ले जाना॥12॥
10000
प्रेता जयता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छतु ।
उग्रा वः सन्तु बाहवोSनाधृष्या यथासथ॥13॥
आनंदित हो हम सबका मन सबको सुख-शान्ति प्रदान करो ।
हे प्रभु हमें समर्थ बनाओ यश - वैभव का भण्डार भरो ॥13॥
पढ़ने में आनन्द आ रहा है।
ReplyDeleteshubh sandhya samast suktiyaan kalyankari
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