[ऋषि-वम्र वैखानस । ।देवता-इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9940
कं नश्चित्रमिषण्यसि चिकित्वान्पृथुग्मानं वाश्रं वावृधध्यै।
कत्तस्य दातु शवसो व्युष्टौ तक्षद्वज्रं वृत्रतुरमपिन्वत् ॥1॥
हे परमेश्वर हे वैभव - शाली मनो - कामना पूरी करना ।
मेघों से समुचित जल देना धान से सबका घर भरना॥1॥
9941
स हि द्युता विद्युता वेति साम पृथुं योनिमसुरत्वा ससाद ।
स सनीळेभिःप्रसहानो अस्य भ्रातुर्न ऋते सप्तथस्य माया:॥2॥
मेघ-मरुत का सँग अनूठा इनसे धरती को जल मिलता है ।
अन्न-उपजता भॉंति-भॉंति का मनउपवन सबका खिलता है॥2॥
9942
स वाजं यातापदुष्पदा यन्त्स्वर्षाता परि षदत्सनिष्यन् ।
अनर्वा यच्छतदुरस्य वेदो घ्नञ्छिश्नददेवॉं अभि वर्पसा भूत्॥3॥
सत्पथ पर चलता हुआ मनुज ही ज्ञान - वान बन पाता है ।
सबका हित करने वाले को सुख- मय जीवन मिल जाता है ॥3॥
9943
स यह्वयो3Sवनीर्गोष्वर्वा जुहोति प्रधन्यासु सस्त्रिः ।
अपादो यत्र युज्यासोSरथा द्रोण्यश्वास ईरते घृतं वा:॥4॥
वर्षा का जल खेतों पर गिरता अधिक अन्न उपजाता है ।
विविध किस्म के अन्न सब्ज़ियॉं हर-जीव पेट-भर खाता है॥4॥
9944
स रुद्रेभिरशस्तवार ऋभ्वा हित्वी गयमारेअवद्य आगात् ।
वम्रस्य मन्ये मिथुना विवव्री अन्नमभीत्यारोदयन्मुषायन्॥5॥
पवन - देव की महिमा भारी अवगुण उडा - उडा ले जाते ।
सज्जन को महिमा - मण्डित कर वे सबको नीरोग बनाते ॥5॥
9945
स इद्दासं तुवीरवं पतिर्दन्षळक्षं त्रिशीर्षाणं दमन्यत् ।
अस्य त्रितो न्वोजसा वृधानो विपा वराहमयोअग्रया हन्॥6॥
पवन - देव मेघों से मिल - कर पृथ्वी पर जल बरसाते हैं ।
अति समर्थ हैं पवन - देवता वे सबकी प्यास बुझाते हैं ॥6॥
9946
स द्रुह्वणे मनुष ऊर्ध्वसान आ साविषदर्शसानाय शरुम् ।
स नृतमो नहुषोSस्मत्सुजातः पुरोSभिनदर्हन्दस्युहत्ये॥7॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है हे इन्द्र - देव तुम रक्षा करना ।
पूजनीय हो तुम्हीं हमारे तुम सभी अपेक्षा पूरी करना ॥7॥
9947
सो अभ्रियो न यवस उदन्यन्क्षयाय गातुं विदन्नो अस्मे ।
उप यत्सीददिन्दुं शरीरैः श्येनोSयोपाष्टिर्हन्ति दस्यून् ॥8॥
काले - बादल जैसे जल देकर धरती का आलिंगन करते हैं ।
वैसे ही राजा प्रजा-जनों को घर हेतु ज़मीन दिया करते हैं॥8॥
9948
स व्राधतः शवसानेभिरस्य कुत्साय शुष्णं कृपणे परादात् ।
अयं कविमनयच्छस्यमानमत्कं यो अस्य सनितोत नृणाम्॥9॥
पावन -पवन - प्रबल है अतिशय रिपु-दल को दूर फेंक देता है ।
अग्नि - देव को चँवर -डुलाता आत्मीय-मान अपना लेता है॥9॥
9949
अयं दशस्यन्नर्येभिरस्य दस्मो देवेभिर्वरुणो न मायी ।
अयं कनीन ऋतुपा अवेद्यमिमीताररुं यश्चतुष्पात्॥10॥
प्राण- पवन सबको सुख देता वह सबका है जीवन - दाता ।
आदित्य-पवन की महिमा भारी ये दोनों हैं भाग्य-विधाता॥10॥
9950
अस्य स्तोमेभिरौशिज ऋ ऋजिश्वा व्रज दरयद्वृवृषभेण पिप्रोः ।
सुत्वा यद्यजतो दीदयद्गीः द्गीः पुर इयानो अभि वर्पसा भूत्॥11॥
ज्ञान - वान बनता जब मानव बढ जाता है उसका मान ।
आत्म - शक्ति बढ जाती उसकी देह-मुक्ति का होता भान ॥11॥
9951
एवा महो असुर वक्षथाय वम्रकः पड्भिरुप सर्पदिन्द्रम् ।
स इयानःकरति स्वस्तिमस्मा इषमूर्जं सुक्षितिं विश्वमाभा:॥12॥
हे परमेश्वर हे बलशाली कैसे हो प्रभु - जी आत्म - बोध ।
आत्म- ज्ञान यदि हो जाए तो सत्संग से कर सकते हैं शोध॥12॥
9940
कं नश्चित्रमिषण्यसि चिकित्वान्पृथुग्मानं वाश्रं वावृधध्यै।
कत्तस्य दातु शवसो व्युष्टौ तक्षद्वज्रं वृत्रतुरमपिन्वत् ॥1॥
हे परमेश्वर हे वैभव - शाली मनो - कामना पूरी करना ।
मेघों से समुचित जल देना धान से सबका घर भरना॥1॥
9941
स हि द्युता विद्युता वेति साम पृथुं योनिमसुरत्वा ससाद ।
स सनीळेभिःप्रसहानो अस्य भ्रातुर्न ऋते सप्तथस्य माया:॥2॥
मेघ-मरुत का सँग अनूठा इनसे धरती को जल मिलता है ।
अन्न-उपजता भॉंति-भॉंति का मनउपवन सबका खिलता है॥2॥
9942
स वाजं यातापदुष्पदा यन्त्स्वर्षाता परि षदत्सनिष्यन् ।
अनर्वा यच्छतदुरस्य वेदो घ्नञ्छिश्नददेवॉं अभि वर्पसा भूत्॥3॥
सत्पथ पर चलता हुआ मनुज ही ज्ञान - वान बन पाता है ।
सबका हित करने वाले को सुख- मय जीवन मिल जाता है ॥3॥
9943
स यह्वयो3Sवनीर्गोष्वर्वा जुहोति प्रधन्यासु सस्त्रिः ।
अपादो यत्र युज्यासोSरथा द्रोण्यश्वास ईरते घृतं वा:॥4॥
वर्षा का जल खेतों पर गिरता अधिक अन्न उपजाता है ।
विविध किस्म के अन्न सब्ज़ियॉं हर-जीव पेट-भर खाता है॥4॥
9944
स रुद्रेभिरशस्तवार ऋभ्वा हित्वी गयमारेअवद्य आगात् ।
वम्रस्य मन्ये मिथुना विवव्री अन्नमभीत्यारोदयन्मुषायन्॥5॥
पवन - देव की महिमा भारी अवगुण उडा - उडा ले जाते ।
सज्जन को महिमा - मण्डित कर वे सबको नीरोग बनाते ॥5॥
9945
स इद्दासं तुवीरवं पतिर्दन्षळक्षं त्रिशीर्षाणं दमन्यत् ।
अस्य त्रितो न्वोजसा वृधानो विपा वराहमयोअग्रया हन्॥6॥
पवन - देव मेघों से मिल - कर पृथ्वी पर जल बरसाते हैं ।
अति समर्थ हैं पवन - देवता वे सबकी प्यास बुझाते हैं ॥6॥
9946
स द्रुह्वणे मनुष ऊर्ध्वसान आ साविषदर्शसानाय शरुम् ।
स नृतमो नहुषोSस्मत्सुजातः पुरोSभिनदर्हन्दस्युहत्ये॥7॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है हे इन्द्र - देव तुम रक्षा करना ।
पूजनीय हो तुम्हीं हमारे तुम सभी अपेक्षा पूरी करना ॥7॥
9947
सो अभ्रियो न यवस उदन्यन्क्षयाय गातुं विदन्नो अस्मे ।
उप यत्सीददिन्दुं शरीरैः श्येनोSयोपाष्टिर्हन्ति दस्यून् ॥8॥
काले - बादल जैसे जल देकर धरती का आलिंगन करते हैं ।
वैसे ही राजा प्रजा-जनों को घर हेतु ज़मीन दिया करते हैं॥8॥
9948
स व्राधतः शवसानेभिरस्य कुत्साय शुष्णं कृपणे परादात् ।
अयं कविमनयच्छस्यमानमत्कं यो अस्य सनितोत नृणाम्॥9॥
पावन -पवन - प्रबल है अतिशय रिपु-दल को दूर फेंक देता है ।
अग्नि - देव को चँवर -डुलाता आत्मीय-मान अपना लेता है॥9॥
9949
अयं दशस्यन्नर्येभिरस्य दस्मो देवेभिर्वरुणो न मायी ।
अयं कनीन ऋतुपा अवेद्यमिमीताररुं यश्चतुष्पात्॥10॥
प्राण- पवन सबको सुख देता वह सबका है जीवन - दाता ।
आदित्य-पवन की महिमा भारी ये दोनों हैं भाग्य-विधाता॥10॥
9950
अस्य स्तोमेभिरौशिज ऋ ऋजिश्वा व्रज दरयद्वृवृषभेण पिप्रोः ।
सुत्वा यद्यजतो दीदयद्गीः द्गीः पुर इयानो अभि वर्पसा भूत्॥11॥
ज्ञान - वान बनता जब मानव बढ जाता है उसका मान ।
आत्म - शक्ति बढ जाती उसकी देह-मुक्ति का होता भान ॥11॥
9951
एवा महो असुर वक्षथाय वम्रकः पड्भिरुप सर्पदिन्द्रम् ।
स इयानःकरति स्वस्तिमस्मा इषमूर्जं सुक्षितिं विश्वमाभा:॥12॥
हे परमेश्वर हे बलशाली कैसे हो प्रभु - जी आत्म - बोध ।
आत्म- ज्ञान यदि हो जाए तो सत्संग से कर सकते हैं शोध॥12॥
सरल भावानुवाद
ReplyDeleteसत्पथ पर चलता हुआ मनुज ही ज्ञान - वान बन पाता है ।
ReplyDeleteसबका हित करने वाले को सुख- मय जीवन मिल जाता है ॥3॥
सुंदर संदेश...