[ऋषि- सर्वहरि ऐन्द्र । देवता- हरि । छन्द- जगती-त्रिष्टुप् ।]
9892
प्र ते महे विदथे शंसिषं हरी प्र ते वन्वे वनुषो हर्यतं मदम्।
घृतं न यो हरिभिश्चारु सेचत आ त्वा विशन्तु हरिवर्पसं गिरः॥1॥
आदित्य-देव में आकर्षण है वे सुख-सन्तोष सभी देते हैं ।
वे धरती की प्यास बुझाते रवि-किरणों से ऊष्मा देते हैं॥1॥
9893
हरिं हि योनिमभि ये समस्वरन्हिन्वन्तो हरी दिव्यं यथा सदः।
आ यं पृणन्ति हरिभिरर्न धेनव इन्द्राय शूषं हरिवन्तमर्चत॥2॥
प्राण - ज्योति हैं सूर्य - देवता वे सबकी रक्षा करते हैं ।
सूर्य - देव सबके प्रणम्य हैं हम उन्हें सोम अर्पित करते हैं॥2॥
9894
सो अस्य वज्रो हरितो य आयसो हरिर्निकामो हरिरा गभस्त्यो:।
द्युम्नी सुशिप्रो हरिमन्युसायक इ इंद्रे नि रूपा हरिता मिमिक्षिरे॥3॥
हे सूर्य - देव हे तेजस्वी तुम जगती का तमस मिटाओ ।
सभी बलों के केन्द्र तुम्हीं हो हमको सतरंगी धनुष दिखाओ॥3॥
9895
दिवि न केतुरधि धायि हर्यतो विव्यचद्वज्रो हरितो न रंह्या ।
तुददहिं हरिशिप्रो य आयसः सहस्त्रशोका अ अभवध्दरिम्भरः॥4॥
हे इन्द्र - देव तुम रक्षा करना दुष्टों से तुम हमें बचाना ।
सुख - संतोष सभी को देना तुम सोम - पान करके ही जाना ॥4॥
9896
त्वंत्वमहर्यथा उपस्तुतः पूर्वेभिरिन्द्र हरिकेश यज्वभिः ।
त्वं हर्यसि तव विश्वमुक्थ्य1मसामि राधो हरिजात हर्यतम्॥5॥
अनुपम है आदित्य हमारा इनको करते हैं सभी प्रणाम ।
हवि - भोग प्रेम से ले लेते हैं अनगिन हैं इनके आयाम ॥5॥
9897
ता वज्रिणं मन्दिनं स्तोम्यं मद इन्द्रं रथे वहतो हर्यता हरी ।
पुरूण्यस्मै सवनानि हर्यत इन्द्राय सोमा हरयो दधन्विरे॥6॥
सूरज सबके सुख के स्वामी सभी देखते उनकी राह ।
कब कौन कहॉ क्या-क्या करता सूरज ही है सबका गवाह॥6॥
9898
अरं कामाय हरयो दधन्विरे स्थिराय हिन्वन्हरयो हरी तुरा ।
अर्वद्भिर्यो हरिभिर्जोषमीयते सो अस्य कामं हरिवन्तमानशे॥7॥
रवि - रश्मियॉं बिखर जाती हैं उनमें अद्भुत क्षमता होती है ।
वह ऊष्मा - आलोक बॉंटती उसके मन में ममता होती है॥7॥
9899
हरिष्मशारुर्हरिकेश आयसस्तुरस्पेये यो हरिपा अवर्धत ।
अर्वद्भिर्यो हरिभिर्वाजिनीवसुरति विश्वा दुरिता पारिषध्दरी॥8॥
शीघ्र - वेग - गामी - रवि - किरणें करती रहती हैं जल-पान ।
अन्न - धान उनसे मिलता है प्रतिदिन देतीं आरोग्य-दान॥8॥
9900
स्त्रुवेव यस्य हरिणी विपेततु: :शिप्रे वाजाय हरिणी दविध्वतः।
प्र यत्कृते चमसे मर्मृजध्दरी पीत्वा मदस्य हर्यतस्यान्धसः॥9॥
परमेश्वर की इस दुनियॉं में सूर्य - चन्द्र करते रखवाली ।
मात्र कर्म है हाथ हमारे कर्म - योग ही है बल - शाली ॥9॥
9901
उत स्म सद्य हर्यतस्य पस्त्यो3 रत्यो न वाजं हरिवॉं अचिक्रदत्।
मही चिध्दि धिषणाहर्यदोजसा बृहद्वयो दधिषे हर्यतश्चिदा ॥10॥
आलोक - ऊर्जा सूरज देते हैं जिससे अन्न - धान हम पाते ।
अतुत्य सभी का है यह सूरज हम सब उनकी महिमा गाते॥10॥
9902
आ रोदसी हर्यमाणो महित्वा नव्यंनव्यं हर्यसि मन्म नु प्रियम् ।
प्र पस्त्यमसुर हर्यतं गोराविष्कृधि हरये सूर्याय ॥11॥
आदित्य - देव की छवि अद्भुत है वे हैं सुन्दरता की खान ।
निशि-दिन हमें सुरक्षा देते उनकी महिमा का हो गान ॥11॥
9903
आ त्वा हर्यन्तं प्रयुजो जनानां रथे वहन्तु हरिशिप्रमिन्द्र ।
पिबा यथा प्रतिभृतस्य मध्वो हर्यन्यज्ञं सधमादे दशोणिम्॥12॥
रवि - रश्मियॉ हमें छू जातीं तन-मन को प्रेरित करती हैं ।
धीरे - धीरे हवि - रस पीतीं हँसती - मुस्काती रहती हैं ॥12॥
9904
अपा: पूर्वेषां हरिवः सुतानामथो इदं सवनं केवलं ते ।
ममध्दि सोमं मधुमन्तमिन्द्र सत्रा वृषञ्जठर आ वृषस्व॥13॥
रसादान और रस प्रदान से सुबह - शाम होती रहती है ।
सूर्य सोम - रस पीते नभ में सोमानिल-सुगंधि बहती है ॥13॥
9892
प्र ते महे विदथे शंसिषं हरी प्र ते वन्वे वनुषो हर्यतं मदम्।
घृतं न यो हरिभिश्चारु सेचत आ त्वा विशन्तु हरिवर्पसं गिरः॥1॥
आदित्य-देव में आकर्षण है वे सुख-सन्तोष सभी देते हैं ।
वे धरती की प्यास बुझाते रवि-किरणों से ऊष्मा देते हैं॥1॥
9893
हरिं हि योनिमभि ये समस्वरन्हिन्वन्तो हरी दिव्यं यथा सदः।
आ यं पृणन्ति हरिभिरर्न धेनव इन्द्राय शूषं हरिवन्तमर्चत॥2॥
प्राण - ज्योति हैं सूर्य - देवता वे सबकी रक्षा करते हैं ।
सूर्य - देव सबके प्रणम्य हैं हम उन्हें सोम अर्पित करते हैं॥2॥
9894
सो अस्य वज्रो हरितो य आयसो हरिर्निकामो हरिरा गभस्त्यो:।
द्युम्नी सुशिप्रो हरिमन्युसायक इ इंद्रे नि रूपा हरिता मिमिक्षिरे॥3॥
हे सूर्य - देव हे तेजस्वी तुम जगती का तमस मिटाओ ।
सभी बलों के केन्द्र तुम्हीं हो हमको सतरंगी धनुष दिखाओ॥3॥
9895
दिवि न केतुरधि धायि हर्यतो विव्यचद्वज्रो हरितो न रंह्या ।
तुददहिं हरिशिप्रो य आयसः सहस्त्रशोका अ अभवध्दरिम्भरः॥4॥
हे इन्द्र - देव तुम रक्षा करना दुष्टों से तुम हमें बचाना ।
सुख - संतोष सभी को देना तुम सोम - पान करके ही जाना ॥4॥
9896
त्वंत्वमहर्यथा उपस्तुतः पूर्वेभिरिन्द्र हरिकेश यज्वभिः ।
त्वं हर्यसि तव विश्वमुक्थ्य1मसामि राधो हरिजात हर्यतम्॥5॥
अनुपम है आदित्य हमारा इनको करते हैं सभी प्रणाम ।
हवि - भोग प्रेम से ले लेते हैं अनगिन हैं इनके आयाम ॥5॥
9897
ता वज्रिणं मन्दिनं स्तोम्यं मद इन्द्रं रथे वहतो हर्यता हरी ।
पुरूण्यस्मै सवनानि हर्यत इन्द्राय सोमा हरयो दधन्विरे॥6॥
सूरज सबके सुख के स्वामी सभी देखते उनकी राह ।
कब कौन कहॉ क्या-क्या करता सूरज ही है सबका गवाह॥6॥
9898
अरं कामाय हरयो दधन्विरे स्थिराय हिन्वन्हरयो हरी तुरा ।
अर्वद्भिर्यो हरिभिर्जोषमीयते सो अस्य कामं हरिवन्तमानशे॥7॥
रवि - रश्मियॉं बिखर जाती हैं उनमें अद्भुत क्षमता होती है ।
वह ऊष्मा - आलोक बॉंटती उसके मन में ममता होती है॥7॥
9899
हरिष्मशारुर्हरिकेश आयसस्तुरस्पेये यो हरिपा अवर्धत ।
अर्वद्भिर्यो हरिभिर्वाजिनीवसुरति विश्वा दुरिता पारिषध्दरी॥8॥
शीघ्र - वेग - गामी - रवि - किरणें करती रहती हैं जल-पान ।
अन्न - धान उनसे मिलता है प्रतिदिन देतीं आरोग्य-दान॥8॥
9900
स्त्रुवेव यस्य हरिणी विपेततु: :शिप्रे वाजाय हरिणी दविध्वतः।
प्र यत्कृते चमसे मर्मृजध्दरी पीत्वा मदस्य हर्यतस्यान्धसः॥9॥
परमेश्वर की इस दुनियॉं में सूर्य - चन्द्र करते रखवाली ।
मात्र कर्म है हाथ हमारे कर्म - योग ही है बल - शाली ॥9॥
9901
उत स्म सद्य हर्यतस्य पस्त्यो3 रत्यो न वाजं हरिवॉं अचिक्रदत्।
मही चिध्दि धिषणाहर्यदोजसा बृहद्वयो दधिषे हर्यतश्चिदा ॥10॥
आलोक - ऊर्जा सूरज देते हैं जिससे अन्न - धान हम पाते ।
अतुत्य सभी का है यह सूरज हम सब उनकी महिमा गाते॥10॥
9902
आ रोदसी हर्यमाणो महित्वा नव्यंनव्यं हर्यसि मन्म नु प्रियम् ।
प्र पस्त्यमसुर हर्यतं गोराविष्कृधि हरये सूर्याय ॥11॥
आदित्य - देव की छवि अद्भुत है वे हैं सुन्दरता की खान ।
निशि-दिन हमें सुरक्षा देते उनकी महिमा का हो गान ॥11॥
9903
आ त्वा हर्यन्तं प्रयुजो जनानां रथे वहन्तु हरिशिप्रमिन्द्र ।
पिबा यथा प्रतिभृतस्य मध्वो हर्यन्यज्ञं सधमादे दशोणिम्॥12॥
रवि - रश्मियॉ हमें छू जातीं तन-मन को प्रेरित करती हैं ।
धीरे - धीरे हवि - रस पीतीं हँसती - मुस्काती रहती हैं ॥12॥
9904
अपा: पूर्वेषां हरिवः सुतानामथो इदं सवनं केवलं ते ।
ममध्दि सोमं मधुमन्तमिन्द्र सत्रा वृषञ्जठर आ वृषस्व॥13॥
रसादान और रस प्रदान से सुबह - शाम होती रहती है ।
सूर्य सोम - रस पीते नभ में सोमानिल-सुगंधि बहती है ॥13॥
DELIGHTING SUKT BADHAI
ReplyDeleteशीघ्र - वेग - गामी - रवि - किरणें करती रहती हैं जल-पान ।
ReplyDeleteअन्न - धान उनसे मिलता है प्रतिदिन देतीं आरोग्य-दान॥8॥
बहुत सुंदर..अद्भुत !
प्राप्त सारे संसाधनों के लिये प्रस्तुत कृतज्ञता।
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