Saturday, 22 February 2014

सूक्त - 22

[ऋषि- विमद ऐन्द्र । देवता- इन्द्र । छन्द- बृहती-अनुष्टुप्- त्रिष्टुप् ।]

9001
कुह श्रुत इन्द्रः कस्मिन्नद्य जने मित्रो न श्रूयते ।
ऋषीणां  वा  यः क्षये  गुहा  वा  चर्कृषे गिरा ॥1॥

हे  परममित्र  हे  परमेश्वर  मेरे  अपने  तुम  ही  लगते  हो ।
उपासना की विविध विधा से तुम मति मन में बसते हो॥1॥

9002
इह श्रुत इन्द्रो अस्मे अद्य स्तवे वज्रयृचीषमः ।
मित्रो  न  यो  जनेष्वा  यशश्चक्रे असाम्या॥2॥

हे  परमेश्वर तुम प्रणम्य हो मुझको भी यश-वैभव देना ।
प्रभु उपासना हम करते हैं अपने-पन से अपना लेना॥2॥

9003
महो यस्पतिः शवसो असाम्या महो नृम्णस्य तूतुजिः ।
भर्ता    वज्रस्य   धृष्णोः   पिता    पुत्रमिव   प्रियम् ॥3॥

तुम्हीं हमारे पिता सदृश हो सभी गुणों के तुम स्वामी हो।
सदा  हमारी  रक्षा  करना प्रभु तुम ही अन्तर्यामी हो ॥3॥

9004
युजानो अश्वा  वातस्य  धुनी  देवो देवस्य वज्रिवः ।
स्यन्ता पथा विरुक्मता सृजानः स्तोष्यध्वनः॥4॥

हे  परमेश्वर  प्रेरक बन कर सत्पथ पर तुम मुझे चलाना ।
भूले से गलत राह पर जाऊँ तो सही मार्ग पर ले आना॥4॥

9005
त्वं त्या चिद्वातस्याश्वागा ऋज्रा त्मना वहध्यै ।
ययोर्देवो न मर्त्यो यन्ता नकिर्विदाय्यः ॥5॥

प्राण-अपान नियन्ता तुम हो तुम ही प्रभु इसके ज्ञाता हो ।
तुम प्राणों के प्राण प्रभु जी पिता तुम्हीं तुम ही माता हो॥5॥

9006
अध ग्मन्तोशना पृच्छते वां कदर्था न  आ गृहम् ।
आ  जग्मथुः  पराकाद्दिवशच  ग्मश्च  मर्त्यम् ॥6॥

कर्मानुरूप  ही  फल मिलता है विविध-विधा से होता भोग ।
यही प्रश्न अत्यन्त कठिन है क्या है प्राण-प्रयोजन योग॥6॥

9007
आ    न    इन्द्र    पृक्षसेSस्माकं    ब्रह्मोद्यतम् ।
तत्त्वा याचामहेSवः शुष्णं यध्दन्नमानुषम्॥7॥

हे प्रभु पूज्य प्रणम्य तुम्हीं हो सबका ध्यान सदा रखना ।
रक्षा  करना  सदा  हमारी  सँग   मेरे   हरदम   रहना ॥7॥

9008
अकर्मा दस्युरभि नो अमन्तुरन्यव्रतो अमानुषः ।
त्वं      तस्यामित्रहन्वधर्दासस्य      दम्भय ॥8॥

षड् - रिपुओं  से  तुम्हीं   बचाते दुष्टों को दण्ड तुम्हीं देते हो ।
हम सबके अवगुण हर लेते अपने पन से अपना लेते हो॥8॥

9009
त्वं  न  इन्द्र  शूर शूरैरुत त्वोतासो बर्हणा ।
पुरुत्रा ते वि पूर्तयो नवन्तक्षोणयो यथा॥9॥

अतुलनीय  महिमा  है  तेरी  जीवन - रण  में  देना साथ ।
इस जगती के रक्षक तुम हो करते हो तुम हमें सनाथ॥9॥

9010
त्वं तान्वृत्रहत्ये चोदयो नृन्कार्पाणे शूर वज्रिवः ।
गुहा   यदी   कवीनां  विशां  नक्षत्रशवसाम् ॥10॥

नभ - जल  पृथ्वी  पर  बरसाते  धरती  पर  आती  हरियाली ।
शाक फूल फल मिले सभी को मिले खेत में धान की बाली॥10॥

9011
मक्षू  ता  त  इन्द्र दानाप्नस आक्षाणे शूर वज्रिवः ।
यध्द शुष्णस्य दम्भयो जातं विश्वं सयावभिः॥11॥

जल - भण्डार  हमें  देना  प्रभु  देते  रहना रिमझिम बरसात ।
सबको दाल-भात मिल जाए पेडों पर पसरे पल्लव-पात॥11॥

9012
माकुध्रय्गिन्द्र शूर वस्वीरस्मे भूवन्नभिष्टयः ।
वयंवयं त आसां सुम्ने स्याम वज्रिवः ॥12॥

हे  प्रभु  पूजनीय  परमेश्वर  मनो-कामना  पूरी  करना ।
हमें सुरक्षा देना प्रभु-वर धन-वैभव तुम देते रहना ॥12॥

9013
अस्मे ता त इन्द्र सन्तु सत्याहिंसन्तीरुपस्पृशः ।
विद्याम  यासां  भुजो  धेनूनां  न  वज्रिवः ॥13॥

सबके  हित  में  मेरा  हित  हो  यही  मंत्र  मुझको समझाना ।
कर्मानुरुप सुख-दुख तो होगा बार-बार मुझको बतलाना॥13॥

9014
अहस्ता यदपदी वर्धत क्षा: शचीभिर्वेद्यानाम् ।
शुष्णं परि प्रदक्षिणिद्विश्वायवे नि शिश्नथः॥14॥

भू - सम्पदा  भरी  यह  धरती  सूर्य - देव  से  आलोकित  है ।
पृथ्वी के नीचे भी जल है नभ-जल से धरा प्रफुल्लित है॥14॥

9015
पिबापिबेदिन्द्र  शूर  सोमं  मा  रिषण्यो  वसवान वसुः सन् ।
उत त्रायस्व गृणतो मघोनो महश्च रायो रेवतस्कृधी नः॥15॥

इस  जगती  के  रक्षक तुम हो तुम अनन्त वैभव के स्वामी ।
तुम वरद-हस्त मुझ पर रखना बन जाऊँ तेरा अनुगामी॥15॥   

        
 

4 comments:

  1. प्रेरणादायक सूत्र...

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  2. सुन्दर और रोचक अनुवाद, काव्यमय।

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  3. ज्ञानवर्धक सुंदर प्रस्तुति।।।

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  4. सबके हित में मेरा हित हो यही मंत्र मुझको समझाना ।
    कर्मानुरुप सुख-दुख तो होगा बार-बार मुझको बतलाना॥13॥

    सबका भला मेरे राम जी करें

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