[ऋषि- घोषा काक्षीवती । देवता- अश्विनीकुमार । छन्द- जगती ।]
9210
रथं यान्तं कुह को ह वां नरा प्रति द्युमन्तं सुविताय भूषति ।
प्रातर्यावाणं विभ्वं विशेविशे वस्तोर्वस्तोर्वहमानं धिया शमि॥1॥
अध्यापक का अभि-नन्दन है वह ही जगती का शिक्षक है ।
वह ही सबका भाग्य-विधाता वह परम्परा का रक्षक है॥1॥
9211
कुह स्विद्दोषा कुह वस्तोरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कुहोषतुः ।
को वां शयुत्रा विधवेव देवरं मर्यं न योषा कृणुते सधस्थ आ॥2॥
जीवन जीना भी एक कला है उचित समय पर सभी कर्म हो ।
सुन्दर-सटीक हम नियम बनायें ध्येय सदा कर्तव्य-धर्म हो॥2॥
9212
प्रातर्जरेथे जरणेव कापया वस्तोर्वस्तोर्यजता गच्छथो गृहम् ।
कस्य ध्वस्त्रा भवथःकस्य वा नरा राजपुत्रेव सवनाव गच्छथः॥3॥
हे गुरु - वर तुम ही वरेण्य हो बचपन को देते हो आकार ।
गीली-माटी से विविध रूप रच कहलाते हो तुम्हीं कुम्हार ॥3॥
9213
युवां मृगेव वारणा मृगण्यवो दोषा वस्तोर्हविषा नि ह्वयामहे ।
युवं होत्रामृतुथा जुह्वते नरेषं जनाय वहथः शुभस्पती ॥4॥
आदित्य - देव का आवाहन है हम हवि - भाग उन्हें देते हैं ।
रिमझिम बरसात वही देते हैं अन्न - धान वे ही देते हैं ॥4॥
9214
युवां ह धोषा पर्यश्विना यती राज्ञ ऊचे दुहिता पृच्छे वां नरा ।
भूतं मे अह्न उत भूतमक्तवेSश्वावते रथिने शक्तमर्वते ॥5॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर मन की बात तुम्हें कहती हूँ ।
प्रभु मैं राजकुमारी घोषा सख्य - भाव से मैं भजती हूँ ॥5॥
9215
युवं कवी ष्ठ: पर्यश्विना रथं विशो न कुत्सो जरितुर्नशायथः ।
युवोर्ह मक्षा पर्यश्विना मध्वासा भरत निष्कृतं न योषणा॥6॥
हे अश्विनीकुमार प्रभु आ जाओ हम सभी प्रतीक्षा करते हैं ।
तुम मधुमय मनमोहक हो हम बहुत प्यार तुमसे करते हैं॥6॥
9216
युवं ह भुज्युं युवमश्विना वशं युवं शिञ्जारमुशनामुपारथुः ।
युवो ररावा परि सख्यमासते युवोरहमवसा सुम्नमा चके॥7॥
घोषा आमंत्रित करती है हे अश्विनी कुमार तुम आओ ।
तुम तो सबके शुभ-चिन्तक हो सुख-संतोष मुझे दे जाओ॥7॥
9217
युवं ह कृशं युवमश्विना शयुं युवं विधन्तं विधवामुरुष्यथः ।
युवं सनिभ्यः स्तनयन्तमश्विनाप व्रजमूर्णुथः सप्तास्यम्॥8॥
तुम्हीं सुरक्षा देते प्रभु - वर तुम ही हो सबके आधार ।
गो - माता के तुम रक्षक हो सबका करते बेडा - पार ॥8॥
9218
जनिष्ट योषा पतयत्कनीनको वि चारुहन्वीरुधो दंसना अनु ।
आस्मै रीयन्ते निवनेव सिन्धवोSस्मा अह्ने भवति तत्पतित्वनम्॥9॥
हे परमेश्वर तुम समर्थ हो तुम अभीष्ट सबको देते हो ।
मुझको सुख-सौभाग्य मिला है तुम सबका दुख हर लेते हो॥9॥
9219
जीवं रुदन्ति वि मयन्ते अध्वरे दीर्घामनु प्रसितिं दीधियुर्नरः।
वामं पितृभ्यो य इदं समेरिरे मयःपतिभ्यो जनयःपरिष्वजे॥10॥
पत्नी को जो सुख देते हैं सन्तति की रक्षा करते हैं ।
पत्नी भी सदा समर्पित रहती ऐसे घर में प्रभु रहते हैं॥10॥
9220
न तस्य विद्म तदु षु प्र वोचत युवा ह यद्युवत्या: क्षेति योनिषु।
प्रियोस्त्रियस्य वृषभस्य रेतिनो गृहं गमेमाश्विना तदुश्मसि॥11॥
प्रभु मैं पति-सुख से वञ्चित हूँ परिणय-सुख की अभिलाषा है ।
प्रणय-रसिक मुझको मिल जाए नयन-गिरा की यह भाषा है॥11॥
9221
आ वामगन्त्सुमतिर्वाजिनीवसू न्यश्विना हृत्सु कामा अयंसत ।
अभूतं गोपा मिथुना शुभस्पती प्रिया अर्यम्णो दुर्यॉ अशीमहि॥12॥
तुम ही मेरे शुभ-चिन्तक हो प्रभु मुझ पर दया-दृष्टि रखना ।
पति का संरक्षण मिल जाए मनो-कामना पूरी करना ॥12॥
9222
ता मन्दसाना मनुषो दुरोण आ धत्तं रयिं सहवीरं वचस्यवे ।
कृतं तीर्थं सुप्रपाणं शुभस्पती अथाणुं पथेष्ठामप दुर्मतिं हतम्॥13॥
हे प्रभु तुम धन वैभव देना सुख - सन्तति देना भर - पूर ।
पति - गृह में सब सुखी रहें प्रभु रोग--शोक हो कोसों दूर ॥13॥
9223
क्व स्विदद्य कतमास्वश्विना विक्षु दस्त्रा मादयेते शुभस्पती ।
क ईं नि येमे कतमस्य जग्मतुर्विप्रस्य वा यजमानस्य वा गृहम्॥14॥
अभी है कहॉ बसेरा प्रभु-वर किसे मिला है यह सौभाग्य ।
प्रेम- डोर में कहॉ बँधे हो किसे मिला यह सुख-साम्राज्य॥14॥
9210
रथं यान्तं कुह को ह वां नरा प्रति द्युमन्तं सुविताय भूषति ।
प्रातर्यावाणं विभ्वं विशेविशे वस्तोर्वस्तोर्वहमानं धिया शमि॥1॥
अध्यापक का अभि-नन्दन है वह ही जगती का शिक्षक है ।
वह ही सबका भाग्य-विधाता वह परम्परा का रक्षक है॥1॥
9211
कुह स्विद्दोषा कुह वस्तोरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कुहोषतुः ।
को वां शयुत्रा विधवेव देवरं मर्यं न योषा कृणुते सधस्थ आ॥2॥
जीवन जीना भी एक कला है उचित समय पर सभी कर्म हो ।
सुन्दर-सटीक हम नियम बनायें ध्येय सदा कर्तव्य-धर्म हो॥2॥
9212
प्रातर्जरेथे जरणेव कापया वस्तोर्वस्तोर्यजता गच्छथो गृहम् ।
कस्य ध्वस्त्रा भवथःकस्य वा नरा राजपुत्रेव सवनाव गच्छथः॥3॥
हे गुरु - वर तुम ही वरेण्य हो बचपन को देते हो आकार ।
गीली-माटी से विविध रूप रच कहलाते हो तुम्हीं कुम्हार ॥3॥
9213
युवां मृगेव वारणा मृगण्यवो दोषा वस्तोर्हविषा नि ह्वयामहे ।
युवं होत्रामृतुथा जुह्वते नरेषं जनाय वहथः शुभस्पती ॥4॥
आदित्य - देव का आवाहन है हम हवि - भाग उन्हें देते हैं ।
रिमझिम बरसात वही देते हैं अन्न - धान वे ही देते हैं ॥4॥
9214
युवां ह धोषा पर्यश्विना यती राज्ञ ऊचे दुहिता पृच्छे वां नरा ।
भूतं मे अह्न उत भूतमक्तवेSश्वावते रथिने शक्तमर्वते ॥5॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर मन की बात तुम्हें कहती हूँ ।
प्रभु मैं राजकुमारी घोषा सख्य - भाव से मैं भजती हूँ ॥5॥
9215
युवं कवी ष्ठ: पर्यश्विना रथं विशो न कुत्सो जरितुर्नशायथः ।
युवोर्ह मक्षा पर्यश्विना मध्वासा भरत निष्कृतं न योषणा॥6॥
हे अश्विनीकुमार प्रभु आ जाओ हम सभी प्रतीक्षा करते हैं ।
तुम मधुमय मनमोहक हो हम बहुत प्यार तुमसे करते हैं॥6॥
9216
युवं ह भुज्युं युवमश्विना वशं युवं शिञ्जारमुशनामुपारथुः ।
युवो ररावा परि सख्यमासते युवोरहमवसा सुम्नमा चके॥7॥
घोषा आमंत्रित करती है हे अश्विनी कुमार तुम आओ ।
तुम तो सबके शुभ-चिन्तक हो सुख-संतोष मुझे दे जाओ॥7॥
9217
युवं ह कृशं युवमश्विना शयुं युवं विधन्तं विधवामुरुष्यथः ।
युवं सनिभ्यः स्तनयन्तमश्विनाप व्रजमूर्णुथः सप्तास्यम्॥8॥
तुम्हीं सुरक्षा देते प्रभु - वर तुम ही हो सबके आधार ।
गो - माता के तुम रक्षक हो सबका करते बेडा - पार ॥8॥
9218
जनिष्ट योषा पतयत्कनीनको वि चारुहन्वीरुधो दंसना अनु ।
आस्मै रीयन्ते निवनेव सिन्धवोSस्मा अह्ने भवति तत्पतित्वनम्॥9॥
हे परमेश्वर तुम समर्थ हो तुम अभीष्ट सबको देते हो ।
मुझको सुख-सौभाग्य मिला है तुम सबका दुख हर लेते हो॥9॥
9219
जीवं रुदन्ति वि मयन्ते अध्वरे दीर्घामनु प्रसितिं दीधियुर्नरः।
वामं पितृभ्यो य इदं समेरिरे मयःपतिभ्यो जनयःपरिष्वजे॥10॥
पत्नी को जो सुख देते हैं सन्तति की रक्षा करते हैं ।
पत्नी भी सदा समर्पित रहती ऐसे घर में प्रभु रहते हैं॥10॥
9220
न तस्य विद्म तदु षु प्र वोचत युवा ह यद्युवत्या: क्षेति योनिषु।
प्रियोस्त्रियस्य वृषभस्य रेतिनो गृहं गमेमाश्विना तदुश्मसि॥11॥
प्रभु मैं पति-सुख से वञ्चित हूँ परिणय-सुख की अभिलाषा है ।
प्रणय-रसिक मुझको मिल जाए नयन-गिरा की यह भाषा है॥11॥
9221
आ वामगन्त्सुमतिर्वाजिनीवसू न्यश्विना हृत्सु कामा अयंसत ।
अभूतं गोपा मिथुना शुभस्पती प्रिया अर्यम्णो दुर्यॉ अशीमहि॥12॥
तुम ही मेरे शुभ-चिन्तक हो प्रभु मुझ पर दया-दृष्टि रखना ।
पति का संरक्षण मिल जाए मनो-कामना पूरी करना ॥12॥
9222
ता मन्दसाना मनुषो दुरोण आ धत्तं रयिं सहवीरं वचस्यवे ।
कृतं तीर्थं सुप्रपाणं शुभस्पती अथाणुं पथेष्ठामप दुर्मतिं हतम्॥13॥
हे प्रभु तुम धन वैभव देना सुख - सन्तति देना भर - पूर ।
पति - गृह में सब सुखी रहें प्रभु रोग--शोक हो कोसों दूर ॥13॥
9223
क्व स्विदद्य कतमास्वश्विना विक्षु दस्त्रा मादयेते शुभस्पती ।
क ईं नि येमे कतमस्य जग्मतुर्विप्रस्य वा यजमानस्य वा गृहम्॥14॥
अभी है कहॉ बसेरा प्रभु-वर किसे मिला है यह सौभाग्य ।
प्रेम- डोर में कहॉ बँधे हो किसे मिला यह सुख-साम्राज्य॥14॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर मन की बात तुम्हें कहती हूँ ।
ReplyDeleteप्रभु मैं राजकुमारी घोषा सख्य - भाव से मैं भजती हूँ ॥5॥
प्रभु सखा भी है और मन का मीत भी..
शिक्षा रूप में मिलती जीवन जीने की कला।
ReplyDelete