[ऋषि- -कृष्ण आङ्गिरस । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9227
अस्तेव सु प्रतरं लायमस्यन्भूषन्निव प्र भरा स्तोममस्मै ।
वाचा विप्रास्तरत वाचमर्यो नि रामय जरितःसोम इन्द्रम्॥1॥
लक्ष्य- भेद करता धनु-धारी वैसे ही प्रभु-प्रसाद हम पायें ।
परमात्मा को सखा मान-कर सस्वर वेद-ऋचा को गायें॥1॥
9228
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम् ।
कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम्॥2॥
बार - बार अभ्यास करें हम वेद-ऋचा को समझें जानें ।
मैं आत्मा हूँ इस चिन्तन से अपने-आप को पहचानें॥2॥
9229
किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुःशिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि।
अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र वसुमिदं भगमिन्द्रा भरा नः ॥3॥
हे यश-धन के मालिक मेरे तुम ही जगती के पालक हो ।
कार्य-कुशल तुम मुझे बना दो तुम्हीं कर्म के संस्थापक हो ॥3॥
9230
त्वां जना ममसत्येष्विन्द्र सन्तस्थाना वि ह्वयन्ते समीके ।
अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्नासुन्वता सख्यं वष्टि शूरः॥4॥
मम सत्यं का राग व्यर्थ है हम सबका ही सच पर हक़ है ।
सत्य बपौती नहीं किसी की अशुभ न हो बस यही कसक है॥4॥
9231
धनं न स्पन्द्रं बहुलं यो अस्मै तीव्रान्सोमॉं आसुनोति प्रयस्वान्।
तस्मै शत्रून्त्सुतुकान्प्रातरह्नो नि स्वष्ट्रान्युवति हन्ति वृत्रम्॥5॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर तुम मनोकामना पूरी करना ।
सदा अन्न - धन देना प्रभु जी सतत सुरक्षा देते रहना॥5॥
9232
यस्मिन्वयं दधिमा शंसमिन्द्रे यः शिश्राय मघवा काममस्मे ।
आराच्चित्सन्भयतामस्य शत्रुर्न्यस्मै द्युम्ना जन्या नमन्ताम्॥6॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर तुम यश - वैभव देते रहना ।
प्रभु रिपु-दल से रक्षा करना तुम हम सबकी पीडा हरना ॥6॥
9233
आराच्छत्रुमप बाधस्व दूरमुग्रो यः शम्बः पुरुहूत तेन ।
अस्मे धेहि यवमद्गोमदिन्द्र कृधी धियं जरित्रे वाजरत्नाम्॥7॥
सब साधक तुम्हें बुलाते हैं रिपु-दल तुमसे घबराते हैं ।
जौ अन्न धान फल देना तुम हम तेरी महिमा गाते हैं ॥7॥
9234
प्र यमन्तर्वृषसवासो अग्मन्तीव्रा: सोमा बहुलान्तास इद्रम्।
नाह दामानं मघवा नि यंसन्नि सुन्वते वहति भूरि वामम्।॥8॥
हम सब भली-भॉति यह जानें हर जन का हक़ है आज़ादी ।
हक़ न छीनो कभी किसी का वरना होगी बस बरबादी॥8॥
9235
उत प्रहामतिदीव्या जयाति कृतं यच्छ्वघ्नी विचिनोति काले ।
यो देवकामा न धना रुणद्धि समित्तं राया सृजति स्वधावान्॥9॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है सज्जन का पालन-पोषण हो ।
सभी सुखी हों सभी निरोगी सद्-भाव का बीजारोपण हो॥9॥
9236
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्राम् ।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम॥10॥
गो-रस सञ्जीवनी सम होता है हम सबको स्वस्थ बनाता है।
जौ का सेवन करो बढो तुम लक्ष्य सामने मुस्काता है॥10॥
9237
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः ।
इन्द्रःपुरस्तादुत मध्यतो नःसखा सखिभ्यो वरिवःकृणोतु॥11॥
हे प्रभु रक्षा करो हमारी परम - सखा हो तुम्हीं हमारे ।
मेरा अभीष्ट तुम देना प्रभुवर हम कब से खडे हैं तेरे द्वारे ॥11॥
9227
अस्तेव सु प्रतरं लायमस्यन्भूषन्निव प्र भरा स्तोममस्मै ।
वाचा विप्रास्तरत वाचमर्यो नि रामय जरितःसोम इन्द्रम्॥1॥
लक्ष्य- भेद करता धनु-धारी वैसे ही प्रभु-प्रसाद हम पायें ।
परमात्मा को सखा मान-कर सस्वर वेद-ऋचा को गायें॥1॥
9228
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम् ।
कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम्॥2॥
बार - बार अभ्यास करें हम वेद-ऋचा को समझें जानें ।
मैं आत्मा हूँ इस चिन्तन से अपने-आप को पहचानें॥2॥
9229
किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुःशिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि।
अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र वसुमिदं भगमिन्द्रा भरा नः ॥3॥
हे यश-धन के मालिक मेरे तुम ही जगती के पालक हो ।
कार्य-कुशल तुम मुझे बना दो तुम्हीं कर्म के संस्थापक हो ॥3॥
9230
त्वां जना ममसत्येष्विन्द्र सन्तस्थाना वि ह्वयन्ते समीके ।
अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्नासुन्वता सख्यं वष्टि शूरः॥4॥
मम सत्यं का राग व्यर्थ है हम सबका ही सच पर हक़ है ।
सत्य बपौती नहीं किसी की अशुभ न हो बस यही कसक है॥4॥
9231
धनं न स्पन्द्रं बहुलं यो अस्मै तीव्रान्सोमॉं आसुनोति प्रयस्वान्।
तस्मै शत्रून्त्सुतुकान्प्रातरह्नो नि स्वष्ट्रान्युवति हन्ति वृत्रम्॥5॥
हे परम - मित्र हे परमेश्वर तुम मनोकामना पूरी करना ।
सदा अन्न - धन देना प्रभु जी सतत सुरक्षा देते रहना॥5॥
9232
यस्मिन्वयं दधिमा शंसमिन्द्रे यः शिश्राय मघवा काममस्मे ।
आराच्चित्सन्भयतामस्य शत्रुर्न्यस्मै द्युम्ना जन्या नमन्ताम्॥6॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर तुम यश - वैभव देते रहना ।
प्रभु रिपु-दल से रक्षा करना तुम हम सबकी पीडा हरना ॥6॥
9233
आराच्छत्रुमप बाधस्व दूरमुग्रो यः शम्बः पुरुहूत तेन ।
अस्मे धेहि यवमद्गोमदिन्द्र कृधी धियं जरित्रे वाजरत्नाम्॥7॥
सब साधक तुम्हें बुलाते हैं रिपु-दल तुमसे घबराते हैं ।
जौ अन्न धान फल देना तुम हम तेरी महिमा गाते हैं ॥7॥
9234
प्र यमन्तर्वृषसवासो अग्मन्तीव्रा: सोमा बहुलान्तास इद्रम्।
नाह दामानं मघवा नि यंसन्नि सुन्वते वहति भूरि वामम्।॥8॥
हम सब भली-भॉति यह जानें हर जन का हक़ है आज़ादी ।
हक़ न छीनो कभी किसी का वरना होगी बस बरबादी॥8॥
9235
उत प्रहामतिदीव्या जयाति कृतं यच्छ्वघ्नी विचिनोति काले ।
यो देवकामा न धना रुणद्धि समित्तं राया सृजति स्वधावान्॥9॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है सज्जन का पालन-पोषण हो ।
सभी सुखी हों सभी निरोगी सद्-भाव का बीजारोपण हो॥9॥
9236
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्राम् ।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम॥10॥
गो-रस सञ्जीवनी सम होता है हम सबको स्वस्थ बनाता है।
जौ का सेवन करो बढो तुम लक्ष्य सामने मुस्काता है॥10॥
9237
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः ।
इन्द्रःपुरस्तादुत मध्यतो नःसखा सखिभ्यो वरिवःकृणोतु॥11॥
हे प्रभु रक्षा करो हमारी परम - सखा हो तुम्हीं हमारे ।
मेरा अभीष्ट तुम देना प्रभुवर हम कब से खडे हैं तेरे द्वारे ॥11॥
जीवन का भेद बतलाती अद्भुत
ReplyDeleteकितना प्रशान्ति दायक
ReplyDeleteबार - बार अभ्यास करें हम वेद-ऋचा को समझें जानें ।
ReplyDeleteमैं आत्मा हूँ इस चिन्तन से अपने-आप को पहचानें॥2॥
अभ्यास और वैराग्य..दो ही तो सूत्र हैं..आभार !