Sunday, 2 February 2014

सूक्त - 42

[ऋषि- -कृष्ण आङ्गिरस । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

9227
अस्तेव  सु  प्रतरं   लायमस्यन्भूषन्निव प्र भरा स्तोममस्मै ।
वाचा विप्रास्तरत वाचमर्यो नि रामय जरितःसोम इन्द्रम्॥1॥

लक्ष्य- भेद  करता  धनु-धारी  वैसे  ही प्रभु-प्रसाद हम पायें ।
परमात्मा को सखा मान-कर सस्वर वेद-ऋचा को गायें॥1॥

9228
दोहेन  गामुप  शिक्षा  सखायं  प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम् ।
कोशं  न  पूर्णं  वसुना  न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम्॥2॥

बार - बार  अभ्यास  करें  हम  वेद-ऋचा  को  समझें  जानें ।
मैं  आत्मा  हूँ  इस  चिन्तन  से अपने-आप को पहचानें॥2॥

9229
किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुःशिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि।
अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र वसुमिदं भगमिन्द्रा भरा नः ॥3॥

हे  यश-धन  के  मालिक  मेरे  तुम  ही  जगती  के  पालक हो ।
कार्य-कुशल तुम मुझे बना दो तुम्हीं कर्म के संस्थापक हो ॥3॥

9230
त्वां  जना  ममसत्येष्विन्द्र  सन्तस्थाना  वि ह्वयन्ते समीके ।
अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्नासुन्वता  सख्यं  वष्टि शूरः॥4॥

मम  सत्यं  का  राग  व्यर्थ  है  हम सबका ही सच पर हक़ है ।
सत्य बपौती नहीं किसी की अशुभ न हो बस यही कसक है॥4॥

9231
धनं न स्पन्द्रं बहुलं यो अस्मै तीव्रान्सोमॉं आसुनोति प्रयस्वान्।
तस्मै शत्रून्त्सुतुकान्प्रातरह्नो नि स्वष्ट्रान्युवति हन्ति वृत्रम्॥5॥

हे  परम - मित्र  हे  परमेश्वर  तुम  मनोकामना  पूरी  करना ।
सदा  अन्न - धन   देना  प्रभु  जी सतत सुरक्षा देते रहना॥5॥

9232
यस्मिन्वयं  दधिमा  शंसमिन्द्रे  यः  शिश्राय  मघवा  काममस्मे ।
आराच्चित्सन्भयतामस्य शत्रुर्न्यस्मै द्युम्ना जन्या नमन्ताम्॥6॥

हे  पावन  पूजनीय  परमेश्वर  तुम  यश - वैभव  देते  रहना ।
प्रभु रिपु-दल से रक्षा करना तुम हम सबकी पीडा हरना ॥6॥

9233
आराच्छत्रुमप  बाधस्व  दूरमुग्रो  यः  शम्बः  पुरुहूत  तेन ।
अस्मे धेहि यवमद्गोमदिन्द्र कृधी धियं जरित्रे वाजरत्नाम्॥7॥

सब  साधक  तुम्हें  बुलाते  हैं  रिपु-दल  तुमसे  घबराते  हैं ।
जौ  अन्न  धान फल देना तुम हम तेरी महिमा गाते हैं ॥7॥

9234
प्र यमन्तर्वृषसवासो  अग्मन्तीव्रा:  सोमा  बहुलान्तास  इद्रम्।
नाह दामानं मघवा नि यंसन्नि सुन्वते वहति भूरि वामम्।॥8॥

हम  सब  भली-भॉति  यह  जानें  हर जन का हक़ है आज़ादी ।
हक़  न  छीनो  कभी  किसी  का  वरना  होगी बस बरबादी॥8॥

9235
उत प्रहामतिदीव्या जयाति कृतं यच्छ्वघ्नी विचिनोति काले ।
यो देवकामा न धना रुणद्धि समित्तं राया सृजति स्वधावान्॥9॥

दुष्ट - दमन  अति  आवश्यक है सज्जन का पालन-पोषण हो ।
सभी  सुखी  हों  सभी निरोगी सद्-भाव का बीजारोपण हो॥9॥

9236
गोभिष्टरेमामतिं   दुरेवां   यवेन   क्षुधं   पुरुहूत   विश्राम् ।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम॥10॥

गो-रस सञ्जीवनी सम होता है हम सबको स्वस्थ बनाता है।
जौ  का  सेवन  करो बढो तुम लक्ष्य सामने मुस्काता है॥10॥

9237
बृहस्पतिर्नः   परि   पातु   पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः ।
इन्द्रःपुरस्तादुत मध्यतो नःसखा सखिभ्यो वरिवःकृणोतु॥11॥

हे  प्रभु  रक्षा  करो   हमारी  परम - सखा  हो  तुम्हीं  हमारे ।
मेरा  अभीष्ट  तुम  देना प्रभुवर हम कब से खडे हैं तेरे द्वारे ॥11॥            

3 comments:

  1. जीवन का भेद बतलाती अद्भुत

    ReplyDelete
  2. कितना प्रशान्ति दायक

    ReplyDelete
  3. बार - बार अभ्यास करें हम वेद-ऋचा को समझें जानें ।
    मैं आत्मा हूँ इस चिन्तन से अपने-आप को पहचानें॥2॥

    अभ्यास और वैराग्य..दो ही तो सूत्र हैं..आभार !

    ReplyDelete