[ऋषि- मथित यामायन । देवता- गो- माता । छन्द- अनुष्टुप्- गायत्री ।]
8975
नि वर्तध्वं मानु गातास्मान्त्सिषक्त रेवतीः ।
अग्नीषोमा पुनर्वसू अस्मे धारयतं रयिम्॥1॥
हे गो - माता तुम लक्ष्मी हो घर को तुम सम्पन्न बनाओ ।
सुधा-सदृश गो-रस तुम दे दो यश पाने का मंत्र बताओ॥1॥
8976
पुनरेना नि वर्तय पुनरेना न्या कुरु ।
इन्द्र एणा नि यच्छत्वग्निरेना उपाजतु॥2॥
प्रतिदिन गो मॉ का दर्शन हो हरी - दूब हम नित्य खिलायें ।
गो-रस का सेवन करें निरन्तर गो-रस से हर रोग मिटायें॥2॥
8977
पुनरेता नि वर्तन्तामस्मिन्पुष्यन्तु गोपतौ ।
इहैवाग्ने नि धारयेह तिष्ठतु या रयिः ॥3॥
गो - माता की करें सुरक्षा नित्य समय पर दें जल - भोजन ।
सदा रहें वे स्वस्थ प्रफुल्लित यह जीवन बन जाए उपवन॥3॥
8978
यन्नियानं न्ययनं संज्ञानं यत्परायणम् ।
आवर्तनं निवर्तनं यो गोपा अपि तं हुवे॥4॥
हे गो - रक्षक तुम वरेण्य हो गो-माता का रखते हो ध्यान ।
प्रतिदिन गो-माई गो-चर जाए कभी न टूटे यह अभियान॥4॥
8979
य उदानड् व्ययनं य उदानट् परायणम् ।
आवर्तनम् निवर्तनमपि गोपा नि वर्तताम्॥5॥
गोपाल रिझाते गो - माता को सँग - सँग उनके रहते हैं ।
वंशी की तान सुनाते हैं वे देख-भाल उनकी करते हैं॥5॥
8980
आ निवर्त नि वर्तय पुनर्न इन्द्र गा देहि ।
जीवाभिर्भुनजामहै ॥6॥
हे प्रभु गो - माता रक्षित हों घर में आए धन और धान ।
सुख - वैभव की प्राप्ति हमें हो करते रहें सदा गो-दान॥6॥
8981
परि वो विश्वतो दध ऊर्जा घृतेन पयसा ।
ये देवा: के च यज्ञियास्ते रय्या सं सृजन्तु नः॥7॥
प्रभु गो-रस अर्पित करते हैं तुम देते रहना अन्न और धान।
गो - माता यश - वैभव देतीं गो-माता हैं अत्यन्त महान॥7॥
8982
आ निवर्तनं वर्तय नि निवर्तन वर्तय ।
भूम्याश्चतस्त्रःप्रदिशस्ताभ्य एना नि वर्तय॥8॥
गो - मॉ का दर्शन नित्य करें इनके बछडे हों तंदरुस्त ।
इनका वध करना बँद करो गो-वध की सभी कडी हो ध्वस्त॥8॥
8975
नि वर्तध्वं मानु गातास्मान्त्सिषक्त रेवतीः ।
अग्नीषोमा पुनर्वसू अस्मे धारयतं रयिम्॥1॥
हे गो - माता तुम लक्ष्मी हो घर को तुम सम्पन्न बनाओ ।
सुधा-सदृश गो-रस तुम दे दो यश पाने का मंत्र बताओ॥1॥
8976
पुनरेना नि वर्तय पुनरेना न्या कुरु ।
इन्द्र एणा नि यच्छत्वग्निरेना उपाजतु॥2॥
प्रतिदिन गो मॉ का दर्शन हो हरी - दूब हम नित्य खिलायें ।
गो-रस का सेवन करें निरन्तर गो-रस से हर रोग मिटायें॥2॥
8977
पुनरेता नि वर्तन्तामस्मिन्पुष्यन्तु गोपतौ ।
इहैवाग्ने नि धारयेह तिष्ठतु या रयिः ॥3॥
गो - माता की करें सुरक्षा नित्य समय पर दें जल - भोजन ।
सदा रहें वे स्वस्थ प्रफुल्लित यह जीवन बन जाए उपवन॥3॥
8978
यन्नियानं न्ययनं संज्ञानं यत्परायणम् ।
आवर्तनं निवर्तनं यो गोपा अपि तं हुवे॥4॥
हे गो - रक्षक तुम वरेण्य हो गो-माता का रखते हो ध्यान ।
प्रतिदिन गो-माई गो-चर जाए कभी न टूटे यह अभियान॥4॥
8979
य उदानड् व्ययनं य उदानट् परायणम् ।
आवर्तनम् निवर्तनमपि गोपा नि वर्तताम्॥5॥
गोपाल रिझाते गो - माता को सँग - सँग उनके रहते हैं ।
वंशी की तान सुनाते हैं वे देख-भाल उनकी करते हैं॥5॥
8980
आ निवर्त नि वर्तय पुनर्न इन्द्र गा देहि ।
जीवाभिर्भुनजामहै ॥6॥
हे प्रभु गो - माता रक्षित हों घर में आए धन और धान ।
सुख - वैभव की प्राप्ति हमें हो करते रहें सदा गो-दान॥6॥
8981
परि वो विश्वतो दध ऊर्जा घृतेन पयसा ।
ये देवा: के च यज्ञियास्ते रय्या सं सृजन्तु नः॥7॥
प्रभु गो-रस अर्पित करते हैं तुम देते रहना अन्न और धान।
गो - माता यश - वैभव देतीं गो-माता हैं अत्यन्त महान॥7॥
8982
आ निवर्तनं वर्तय नि निवर्तन वर्तय ।
भूम्याश्चतस्त्रःप्रदिशस्ताभ्य एना नि वर्तय॥8॥
गो - मॉ का दर्शन नित्य करें इनके बछडे हों तंदरुस्त ।
इनका वध करना बँद करो गो-वध की सभी कडी हो ध्वस्त॥8॥
गाय के सामाजिक महत्व को सिद्ध करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteइन्हीं वजहों से गौ में तैतीस करोड़ देवताओं की संकल्पना की गयी है...सुंदर।
ReplyDeleteगो - माता की करें सुरक्षा नित्य समय पर दें जल - भोजन ।
ReplyDeleteसदा रहें वे स्वस्थ प्रफुल्लित यह जीवन बन जाए उपवन॥3॥
गायों का सम्मान हो रहा है भारत में युगों युगों से...सुंदर पंक्तियाँ !