[ऋषि- अभितपा सौर्य । देवता- सूर्य । छन्द- जगती- त्रिष्टुप् ।]
9179
नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृतं सपर्यत ।
दूरदृशे देवजाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत ॥1॥
ओ आदित्य देव आ जाओ मेरे जीवन का तमस मिटाओ ।
आलोक-पुत्र उस सूर्य-देव का आओ सब मिल-कर गुण गाओ॥1॥
9180
सा मा सत्योक्तिः परि पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्नहानि च ।
विश्वमन्यन्नि विशते यदेजति विश्वहापो विश्वाहोदेति सूर्यः ॥2॥
हे वेद-ऋचा तुम ही वरेण्य हो तुम हम सबकी रक्षा करना ।
आदित्य-देव पाथेय तुम्हीं हो पावन-पथ पर तुम ले चलना ॥2॥
9181
न ते अदेवः प्रदिवो नि वासते यदेतशेभिः पतरै रथर्यसि ।
प्राचीनमन्यदनु वर्तते रज उदन्येन ज्योतिषा यासि सूर्य ॥3॥
अन्तरिक्ष में रहकर भी तुम कर्म-योग का पाठ - पढाते ।
नहीं कभी आराम किए तुम जीवन-शैली सबको समझाते॥3॥
9182
येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षि भानुना।
तेनास्मद्विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्ष्वप्न्यं सुव॥4॥
अंधकार से तुम्हीं बचाते आराम - अवसर देकर जाते हो ।
तुम्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं हमको बहुत अधिक भाते हो॥4॥
9183
विश्वस्य हि प्रेषितो रक्षसि व्रतमहेळयन्नुच्चरसि स्वधा अनु ।
यदज्ञ त्वा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवा अनु मंसीरत क्रतुम् ॥5॥
सबको तुम्हीं प्रेरणा देते लो यज्ञ- भाग तुम ग्रहण करो ।
हम सब तेरी महिमा गाते हैं तुम हम सबका दुख हरो ॥5॥
9184
तं नो द्यावापृथिवी तन्न आप इन्द्रः शृण्वन्तु मरुतो हवं वचः।
मा शूने भूम सूर्यस्य सन्दृशि भद्रं जीवन्तो जरणामशीमहि॥6॥
सब देव - गणों का आवाहन है हे प्रभु दया - दृष्टि रखना ।
दुख - कष्टों से हमें बचाना प्रेम-पंथ - पर पुनः परखना ॥6॥
9185
विश्वाहा त्वा सुमनसः सुचक्षसः प्रजावन्तो अनमीवा अनागसः।
उद्यन्तं त्वा मित्रमहो दिवेदिवे ज्योग्जीवा: प्रति पश्येम सूर्य ॥7॥
हम जीवन - रण में विजयी हों ऐसी अद्भुत प्रतिभा पायें ।
दीर्घ - आयु हमको देना प्रभु सूर्य-देव का हम गुण गायें ॥7॥
9186
महि ज्योतिर्बिभ्रतं त्वा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषेचक्षुषे मयः ।
आरोहन्तं बृहतः पाजसस्परि वयं जीवा: प्रति पश्येम सूर्य ॥8॥
तेजस्वी हमें बनाना प्रभुवर हम सत्पथ-प्रकाश बन जायें ।
सूर्य-देवता हम भी प्रतिदिन रवि-दर्शन का पुण्य कमायें ॥8॥
9187
यस्य ते विश्वा भुवनानि केतुना प्र चेरते नि च विशन्ते अक्तुभिः ।
अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्याह्नाह्ना नो वस्यसावस्यसोदिहि ॥9॥
आदित्य - देव आदर्श हमारे कर्म - योग के वे विग्रह हैं ।
वह पूजनीय वह ही प्रणम्य हैं वे अपरंपार अनुग्रह हैं ॥9॥
9188
शं नो भव चक्षसा शं नो अह्ना शं भानुना शं हिमा शं घृणेन ।
यथा समध्वञ्छमसद्दुरोणे तत्सूर्य द्रविणं धेहि चित्रम्॥10॥
सूर्य - देव की महिमा अद्भुत अनगिन हैं उनके वर-दान ।
वे हैं अभिभावक हम सबके सुख-साधक अत्यन्त महान॥10॥
9189
अस्माकं देवा उभयाय जन्मने शर्म यच्छत द्विपदे- चतुष्पदे ।
अदत्पिबदूर्जयमानमाशितं तदस्मे शं योररपो दधातन॥11॥
जगती में जो सुख-साधन है उस पर है हम सबका अधिकार।
सबका हो कल्याण यहॉ पर यह ही है जीवन का सार ॥11॥
9190
यद्वो देवाश्चकृम जिह्वया गुरु मनसो वा प्रयुती देवहेळनम् ।
अरावा यो नो अभि दुच्छुनायते तस्मिन्तदेनो वसवो नि धेतन॥12॥
हे प्रभु मन से वचन-कर्म से मुझसे कोई त्रुटि न हो जाये ।
मुझे क्षमा कर देना प्रभुवर मन मेरा नित तेरा गुण गाये ॥12॥
9179
नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृतं सपर्यत ।
दूरदृशे देवजाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत ॥1॥
ओ आदित्य देव आ जाओ मेरे जीवन का तमस मिटाओ ।
आलोक-पुत्र उस सूर्य-देव का आओ सब मिल-कर गुण गाओ॥1॥
9180
सा मा सत्योक्तिः परि पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्नहानि च ।
विश्वमन्यन्नि विशते यदेजति विश्वहापो विश्वाहोदेति सूर्यः ॥2॥
हे वेद-ऋचा तुम ही वरेण्य हो तुम हम सबकी रक्षा करना ।
आदित्य-देव पाथेय तुम्हीं हो पावन-पथ पर तुम ले चलना ॥2॥
9181
न ते अदेवः प्रदिवो नि वासते यदेतशेभिः पतरै रथर्यसि ।
प्राचीनमन्यदनु वर्तते रज उदन्येन ज्योतिषा यासि सूर्य ॥3॥
अन्तरिक्ष में रहकर भी तुम कर्म-योग का पाठ - पढाते ।
नहीं कभी आराम किए तुम जीवन-शैली सबको समझाते॥3॥
9182
येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षि भानुना।
तेनास्मद्विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्ष्वप्न्यं सुव॥4॥
अंधकार से तुम्हीं बचाते आराम - अवसर देकर जाते हो ।
तुम्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं हमको बहुत अधिक भाते हो॥4॥
9183
विश्वस्य हि प्रेषितो रक्षसि व्रतमहेळयन्नुच्चरसि स्वधा अनु ।
यदज्ञ त्वा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवा अनु मंसीरत क्रतुम् ॥5॥
सबको तुम्हीं प्रेरणा देते लो यज्ञ- भाग तुम ग्रहण करो ।
हम सब तेरी महिमा गाते हैं तुम हम सबका दुख हरो ॥5॥
9184
तं नो द्यावापृथिवी तन्न आप इन्द्रः शृण्वन्तु मरुतो हवं वचः।
मा शूने भूम सूर्यस्य सन्दृशि भद्रं जीवन्तो जरणामशीमहि॥6॥
सब देव - गणों का आवाहन है हे प्रभु दया - दृष्टि रखना ।
दुख - कष्टों से हमें बचाना प्रेम-पंथ - पर पुनः परखना ॥6॥
9185
विश्वाहा त्वा सुमनसः सुचक्षसः प्रजावन्तो अनमीवा अनागसः।
उद्यन्तं त्वा मित्रमहो दिवेदिवे ज्योग्जीवा: प्रति पश्येम सूर्य ॥7॥
हम जीवन - रण में विजयी हों ऐसी अद्भुत प्रतिभा पायें ।
दीर्घ - आयु हमको देना प्रभु सूर्य-देव का हम गुण गायें ॥7॥
9186
महि ज्योतिर्बिभ्रतं त्वा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषेचक्षुषे मयः ।
आरोहन्तं बृहतः पाजसस्परि वयं जीवा: प्रति पश्येम सूर्य ॥8॥
तेजस्वी हमें बनाना प्रभुवर हम सत्पथ-प्रकाश बन जायें ।
सूर्य-देवता हम भी प्रतिदिन रवि-दर्शन का पुण्य कमायें ॥8॥
9187
यस्य ते विश्वा भुवनानि केतुना प्र चेरते नि च विशन्ते अक्तुभिः ।
अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्याह्नाह्ना नो वस्यसावस्यसोदिहि ॥9॥
आदित्य - देव आदर्श हमारे कर्म - योग के वे विग्रह हैं ।
वह पूजनीय वह ही प्रणम्य हैं वे अपरंपार अनुग्रह हैं ॥9॥
9188
शं नो भव चक्षसा शं नो अह्ना शं भानुना शं हिमा शं घृणेन ।
यथा समध्वञ्छमसद्दुरोणे तत्सूर्य द्रविणं धेहि चित्रम्॥10॥
सूर्य - देव की महिमा अद्भुत अनगिन हैं उनके वर-दान ।
वे हैं अभिभावक हम सबके सुख-साधक अत्यन्त महान॥10॥
9189
अस्माकं देवा उभयाय जन्मने शर्म यच्छत द्विपदे- चतुष्पदे ।
अदत्पिबदूर्जयमानमाशितं तदस्मे शं योररपो दधातन॥11॥
जगती में जो सुख-साधन है उस पर है हम सबका अधिकार।
सबका हो कल्याण यहॉ पर यह ही है जीवन का सार ॥11॥
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यद्वो देवाश्चकृम जिह्वया गुरु मनसो वा प्रयुती देवहेळनम् ।
अरावा यो नो अभि दुच्छुनायते तस्मिन्तदेनो वसवो नि धेतन॥12॥
हे प्रभु मन से वचन-कर्म से मुझसे कोई त्रुटि न हो जाये ।
मुझे क्षमा कर देना प्रभुवर मन मेरा नित तेरा गुण गाये ॥12॥
सतत कर्मरत सूर्य को प्रणाम।
ReplyDeleteसबको तुम्हीं प्रेरणा देते लो यज्ञ- भाग तुम ग्रहण करो ।
ReplyDeleteहम सब तेरी महिमा गाते हैं तुम हम सबका दुख हरो ॥5॥
मानव और देव एक दूसरे के लिए हितकर हों..
अनुपम प्रस्तुति...अहसास नहीं होता कि भावानुवाद पढ़ रहे हैं..
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