[ऋषि- रक्षा कवच । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- जगती - त्रिष्टुप् ।]
9119
प्र सु ग्मन्ता धियसानस्य सक्षणि वरेभिर्वरॉं अभि षु प्रसीदतः ।
अस्माकमिन्द्र उभयं जुजोषति यत्सोम्यस्यान्धसो बुबोधति॥1॥
परमेश्वर वैभव - स्वामी है अतुलित गुण का वही निधान ।
हम उसके गुण को अपनायें हम हैं उसकी ही सन्तान ॥1॥
9120
वीन्द्र यासि दिव्यानि रोचना वि पार्थिवानि रजसा पुरुष्टुत ।
ये त्वा वहन्ति मुहुरध्वरॉ उप ते सु वन्वन्तु वग्वनॉ अराधसः॥2॥
आदित्य - देव आलोक - प्रदाता तमस से हमें रखते दूर ।
जो भी शुभ-चिन्तन करता है देते हैं उसे प्यार भर-पूर ॥2॥
9121
तदिन्मे छन्त्सद्वपुषो वपुष्टरं पुत्रो यज्जानं पित्रोरधीयति ।
जाया पतिं वहति वग्नुना सुमत्पुंस इद्भद्रो वहतुःपरिष्कृतः॥3॥
उत्तम जीवन हमें प्राप्त हो वह परमेश्वर है पिता हमारा ।
हे प्रभु सत्पथ पर ले चलना सुमिरन करते हैं हम तुम्हारा॥3॥
9122
तदित्सधस्थमभि चारु दीधय गावो यच्छासन्वहतुं न धेनवः।
माता यन्मन्तुर्यूथस्य पूर्व्याभि वाणस्य सप्तधातुरिज्जनः॥4॥
प्रभु वाणी का वैभव देना हम पर वरद - हस्त रखना ।
सस्वर वेद - ऋचा को गायें मनो-कामना पूरी करना ॥4॥
9123
प्र वोSच्छा रिरिचे देवयुष्पदमेको रुद्रेभिर्याति तुर्वणिः ।
जरा वा येष्वमृतेषु दावने परि व ऊमेभ्यःसिञ्चता मधु॥5॥
त्याग-सहित उपभोग करें हम सबको मिले दिव्य हवि-भोग।
सदा आत्म - वत समझें सबको यह सत्कर्म यही है योग॥5॥
9124
निधीयमानमपगूळ्हमप्सु प्र मे देवानां व्रतपा उवाच ।
इन्द्रो विद्वॉ अनु हि त्वा चचक्ष तेनाहमग्ने अनुशिष्ट आगाम्॥6॥
अग्नि - देव जल-थल-नभ में हैं जल के भीतर हैं बडवानल ।
वन में दावानल बन जाते नर - तन में हैं जठरानल ॥6॥
9125
अक्षेत्रवित्क्षेत्रविदं ह्यप्राट् स प्रैति क्षेत्रविदानुसशिष्टः ।
एतद्वै भद्रमनुशासनस्योत स्त्रुतिं विन्दत्यञ्जसीनाम् ॥7॥
पथ की पहचान नहीं होने पर राही राह भटक जाता है ।
विज्ञ-जनों से राह पूछकर वह अपनी मञ्जिल पाता है॥7॥
9126
अद्येदु प्राणीदममन्निमाहापीवृतो अधयनन्मातुरूधः ।
एमेनमाप जरिमा युवानमहेळन्वसु सुमना बभूव ॥8॥
अग्नि- देव यश धन के स्वामी सबको देते हैं धन- धान ।
वाक् - शक्ति वे ही देते है पा सकते हैं हम भी ज्ञान ॥8॥
9127
एतानि भद्रा कलश क्रियाम कुरुश्रवण ददतो मघानि ।
दान इद्वो मघवानःसो अस्त्वयं च सोमो हृदि यं बिभर्मि॥9॥
हे प्रभु पूजनीय परमेश्वर हम सत्पथ पर चलते हैं ।
मेरे मन में तुम बस जाओ यही प्रार्थना हम करते हैं ॥9॥
9119
प्र सु ग्मन्ता धियसानस्य सक्षणि वरेभिर्वरॉं अभि षु प्रसीदतः ।
अस्माकमिन्द्र उभयं जुजोषति यत्सोम्यस्यान्धसो बुबोधति॥1॥
परमेश्वर वैभव - स्वामी है अतुलित गुण का वही निधान ।
हम उसके गुण को अपनायें हम हैं उसकी ही सन्तान ॥1॥
9120
वीन्द्र यासि दिव्यानि रोचना वि पार्थिवानि रजसा पुरुष्टुत ।
ये त्वा वहन्ति मुहुरध्वरॉ उप ते सु वन्वन्तु वग्वनॉ अराधसः॥2॥
आदित्य - देव आलोक - प्रदाता तमस से हमें रखते दूर ।
जो भी शुभ-चिन्तन करता है देते हैं उसे प्यार भर-पूर ॥2॥
9121
तदिन्मे छन्त्सद्वपुषो वपुष्टरं पुत्रो यज्जानं पित्रोरधीयति ।
जाया पतिं वहति वग्नुना सुमत्पुंस इद्भद्रो वहतुःपरिष्कृतः॥3॥
उत्तम जीवन हमें प्राप्त हो वह परमेश्वर है पिता हमारा ।
हे प्रभु सत्पथ पर ले चलना सुमिरन करते हैं हम तुम्हारा॥3॥
9122
तदित्सधस्थमभि चारु दीधय गावो यच्छासन्वहतुं न धेनवः।
माता यन्मन्तुर्यूथस्य पूर्व्याभि वाणस्य सप्तधातुरिज्जनः॥4॥
प्रभु वाणी का वैभव देना हम पर वरद - हस्त रखना ।
सस्वर वेद - ऋचा को गायें मनो-कामना पूरी करना ॥4॥
9123
प्र वोSच्छा रिरिचे देवयुष्पदमेको रुद्रेभिर्याति तुर्वणिः ।
जरा वा येष्वमृतेषु दावने परि व ऊमेभ्यःसिञ्चता मधु॥5॥
त्याग-सहित उपभोग करें हम सबको मिले दिव्य हवि-भोग।
सदा आत्म - वत समझें सबको यह सत्कर्म यही है योग॥5॥
9124
निधीयमानमपगूळ्हमप्सु प्र मे देवानां व्रतपा उवाच ।
इन्द्रो विद्वॉ अनु हि त्वा चचक्ष तेनाहमग्ने अनुशिष्ट आगाम्॥6॥
अग्नि - देव जल-थल-नभ में हैं जल के भीतर हैं बडवानल ।
वन में दावानल बन जाते नर - तन में हैं जठरानल ॥6॥
9125
अक्षेत्रवित्क्षेत्रविदं ह्यप्राट् स प्रैति क्षेत्रविदानुसशिष्टः ।
एतद्वै भद्रमनुशासनस्योत स्त्रुतिं विन्दत्यञ्जसीनाम् ॥7॥
पथ की पहचान नहीं होने पर राही राह भटक जाता है ।
विज्ञ-जनों से राह पूछकर वह अपनी मञ्जिल पाता है॥7॥
9126
अद्येदु प्राणीदममन्निमाहापीवृतो अधयनन्मातुरूधः ।
एमेनमाप जरिमा युवानमहेळन्वसु सुमना बभूव ॥8॥
अग्नि- देव यश धन के स्वामी सबको देते हैं धन- धान ।
वाक् - शक्ति वे ही देते है पा सकते हैं हम भी ज्ञान ॥8॥
9127
एतानि भद्रा कलश क्रियाम कुरुश्रवण ददतो मघानि ।
दान इद्वो मघवानःसो अस्त्वयं च सोमो हृदि यं बिभर्मि॥9॥
हे प्रभु पूजनीय परमेश्वर हम सत्पथ पर चलते हैं ।
मेरे मन में तुम बस जाओ यही प्रार्थना हम करते हैं ॥9॥
आदित्य - देव आलोक - प्रदाता तमस से हमें रखते दूर ।
ReplyDeleteजो भी शुभ-चिन्तन करता है देते हैं उसे प्यार भर-पूर ॥2॥
परमात्मा सदा आश्वासन देता है..
बड़ा ही रोचक अनुवाद।
ReplyDelete