[ऋषि- वसुक्र ऐन्द्र । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9085
वने न वा यो न्यधानि चाकञ्छुचिर्वां स्तोमो भुरणावजीगः।
यस्येदिन्द्रः पुरुदिनेषु होता नृणां नर्यो नृतमः क्षपावान्॥1॥
प्रभु मुझको शुभ-चिन्तन देना मुझको सत्पथ पर ले चलना।
पर-हित में ही सुख है मेरा सुख पाऊँ ऐसा उपक्रम करना॥1॥
9086
प्र ते अस्या उषसः प्रापरस्या नृतौ स्याम नृतमस्य नृणाम् ।
अनु त्रिशोकः शतमावहन्नृन्कुत्सेन रथो यो असत्ससवान्॥2॥
जिस राजा की प्रजा सुखी है वह राजा ही जन-नायक है ।
प्रजा हेतु वह पिता सदृश है यह राजा ही सुख-दायक है॥2॥
9087
कस्ते मद इन्द्र रन्त्यो भूद्दुरो गिरो अभ्यु1 ग्रो वि धाव ।
कद्वाहो अर्वागुप मा मनीषा आ त्वा शक्यामुपमं राधो अन्नैः॥3॥
करो मनो - रथ पूर्ण प्रभु जी द्वार तुम्हारे हम आए हैं ।
तुम यश - वैभव के स्वामी हो आज तुम्हें सम्मुख पाए हैं ॥3॥
9088
कदु द्युम्नमिन्द्र त्वावतो नृन्कया धिया करसे कन्न आगन् ।
मित्रो न सत्य उरुगाय भृत्या अन्ने समस्य यदसन्मनीषा:॥4॥
कब पाऊँ प्रभु तेरा दर्शन क्या सचमुच मिलता है साधन-फल ।
तुम तो मेरे सखा - सदृश हो बिन दर्शन हैं नैन विकल ॥4॥
9089
प्रेरय सूरो अर्थं न पारं ये अस्य कामं जनिधा इव ग्मन् ।
गिरश्च ये ते तुविजात पूर्वीर्नर इन्द्र प्रतिशिक्षन्त्यन्नैः॥5॥
हम जैसे भी हैं तेरे हैं प्रभु जीवन-नैया के तुम्हीं खिवैय्या ।
बेडा - पार तुम्हीं करना प्रभु नटवर नागर कृष्ण-कन्हैया॥5॥
9090
मात्रे नु ते सुमिते इन्द्र पूर्वी द्यौर्मज्मना पृथिवी काव्येन ।
वराय ते घृतवन्तः सुतासः स्वाद्मन्भवन्तु पीतये मधूनि॥6॥
शौर्य - धैर्य के स्वामी तुम हो प्रभु मुझको देना चारों बल ।
तुम जग के पालक-पोशक हो कर्मानुरूप देते हो फल ॥6॥
9091
आ मध्वो अस्मा असिचन्नमत्रमिन्द्राय पूर्णं स हि सत्यराधा:।
स वावृधे वरिमन्ना पृथिव्या अभि क्रत्वा नर्यः पौंस्यैश्च॥7॥
धन और धान हमें देना प्रभु सर्वाधिक निकट तुम्हीं लगते हो ।
तुम ही सबके सखा हितैषी सबका ध्यान सदा रखते हो ॥7॥
9092
व्यानळिन्द्रः पृतना: स्वोजा आस्मै यतन्ते सख्याय पूर्वीः ।
आ स्मा रथं न पृतनासु तिष्ठ यं भद्रया सुमत्या चोदयासे॥॥8॥
प्रेरक बनना बहुत कठिन है पर तुम सतत निभाए हो ।
सदा प्रेरणा देते रहना मुझे तुम ही अपनाए हो ॥8॥
9085
वने न वा यो न्यधानि चाकञ्छुचिर्वां स्तोमो भुरणावजीगः।
यस्येदिन्द्रः पुरुदिनेषु होता नृणां नर्यो नृतमः क्षपावान्॥1॥
प्रभु मुझको शुभ-चिन्तन देना मुझको सत्पथ पर ले चलना।
पर-हित में ही सुख है मेरा सुख पाऊँ ऐसा उपक्रम करना॥1॥
9086
प्र ते अस्या उषसः प्रापरस्या नृतौ स्याम नृतमस्य नृणाम् ।
अनु त्रिशोकः शतमावहन्नृन्कुत्सेन रथो यो असत्ससवान्॥2॥
जिस राजा की प्रजा सुखी है वह राजा ही जन-नायक है ।
प्रजा हेतु वह पिता सदृश है यह राजा ही सुख-दायक है॥2॥
9087
कस्ते मद इन्द्र रन्त्यो भूद्दुरो गिरो अभ्यु1 ग्रो वि धाव ।
कद्वाहो अर्वागुप मा मनीषा आ त्वा शक्यामुपमं राधो अन्नैः॥3॥
करो मनो - रथ पूर्ण प्रभु जी द्वार तुम्हारे हम आए हैं ।
तुम यश - वैभव के स्वामी हो आज तुम्हें सम्मुख पाए हैं ॥3॥
9088
कदु द्युम्नमिन्द्र त्वावतो नृन्कया धिया करसे कन्न आगन् ।
मित्रो न सत्य उरुगाय भृत्या अन्ने समस्य यदसन्मनीषा:॥4॥
कब पाऊँ प्रभु तेरा दर्शन क्या सचमुच मिलता है साधन-फल ।
तुम तो मेरे सखा - सदृश हो बिन दर्शन हैं नैन विकल ॥4॥
9089
प्रेरय सूरो अर्थं न पारं ये अस्य कामं जनिधा इव ग्मन् ।
गिरश्च ये ते तुविजात पूर्वीर्नर इन्द्र प्रतिशिक्षन्त्यन्नैः॥5॥
हम जैसे भी हैं तेरे हैं प्रभु जीवन-नैया के तुम्हीं खिवैय्या ।
बेडा - पार तुम्हीं करना प्रभु नटवर नागर कृष्ण-कन्हैया॥5॥
9090
मात्रे नु ते सुमिते इन्द्र पूर्वी द्यौर्मज्मना पृथिवी काव्येन ।
वराय ते घृतवन्तः सुतासः स्वाद्मन्भवन्तु पीतये मधूनि॥6॥
शौर्य - धैर्य के स्वामी तुम हो प्रभु मुझको देना चारों बल ।
तुम जग के पालक-पोशक हो कर्मानुरूप देते हो फल ॥6॥
9091
आ मध्वो अस्मा असिचन्नमत्रमिन्द्राय पूर्णं स हि सत्यराधा:।
स वावृधे वरिमन्ना पृथिव्या अभि क्रत्वा नर्यः पौंस्यैश्च॥7॥
धन और धान हमें देना प्रभु सर्वाधिक निकट तुम्हीं लगते हो ।
तुम ही सबके सखा हितैषी सबका ध्यान सदा रखते हो ॥7॥
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व्यानळिन्द्रः पृतना: स्वोजा आस्मै यतन्ते सख्याय पूर्वीः ।
आ स्मा रथं न पृतनासु तिष्ठ यं भद्रया सुमत्या चोदयासे॥॥8॥
प्रेरक बनना बहुत कठिन है पर तुम सतत निभाए हो ।
सदा प्रेरणा देते रहना मुझे तुम ही अपनाए हो ॥8॥
रचित विश्व, निर्वाह सभी का,
ReplyDeleteप्रकृति चक्र चलता रहता है।