[ऋषि- विमद ऐन्द्र । देवता- इन्द्र - अश्विनीकुमार । छन्द- आस्तार पंक्ति- अनुष्टुप् ।]
9023
इन्द्र सोममिमं पिब मधुमन्तं चमू सुतम् ।
अस्मे रयिं नि धारय वि वो मदे सहस्त्रिणं पुरुवसो विवक्षसे॥1॥
हे पूजनीय प्रभु परमेश्वर तुम धरा - गगन की रक्षा करना ।
यश-वैभव हमको देना प्रभु जन-मन का ध्यान तुम्हीं रखना॥1॥
9024
त्वां यज्ञेभिरुक्थैरुप हव्येभिरीमहे ।
शचीपते शचीनां वि वो मदे श्रेष्ठं नो धेहि वार्यं विवक्षसे ॥2॥
ज्ञान - निधान पूज्य परमेश्वर हम तुमको प्रणाम करते हैं ।
पर- हित में यह जीवन रत हो यही अपेक्षा हम करते हैं॥2॥
9025
यस्पतिर्वार्याणामसि रध्रस्य चोदिता ।
इन्द्र स्तोतृणामविता वि वो मदे द्विषो नःपाह्यंहसो विवक्षसे॥3॥
इस जगती के परमेश्वर - प्रभु तुम सत्पथ पर ही ले चलना ।
तुम ही वसुधा के रक्षक हो सदा अनुग्रह हम पर करना॥3॥
9026
युवं शक्रा मायाविना समीची निरमन्थतम् ।
विमदेन यदीळिता नासत्या ननिरमन्थतम्॥4॥
कर्म-योग की गरिमा अद्भुत मुझको यही मार्ग दिखलाना ।
मन के दोषों को हर लेना सुख की परिभाषा सिखलाना॥4॥
9027
विश्वे देवा अकृपन्त समीच्योर्निष्पतन्त्योः ।
नासत्यावब्रुवन्देवा: पुनरा वहतादिति॥5॥
हम सबके संकल्प पूर्ण हों यश - वैभव का दे दो दान ।
सत्पथ पर तुम प्रेरित करना देना अन्न और धन-धान॥5॥
9028
मधुमन्मे परायणं मधुमत्पुनरायनम् ।
ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस्कृतम्॥6॥
इस जग में आना और जाना सज्जन समुचित नेह निभाये।
वरद-हस्त हम पर रखना प्रभु आना-जाना सार्थक हो जाये॥6॥
9023
इन्द्र सोममिमं पिब मधुमन्तं चमू सुतम् ।
अस्मे रयिं नि धारय वि वो मदे सहस्त्रिणं पुरुवसो विवक्षसे॥1॥
हे पूजनीय प्रभु परमेश्वर तुम धरा - गगन की रक्षा करना ।
यश-वैभव हमको देना प्रभु जन-मन का ध्यान तुम्हीं रखना॥1॥
9024
त्वां यज्ञेभिरुक्थैरुप हव्येभिरीमहे ।
शचीपते शचीनां वि वो मदे श्रेष्ठं नो धेहि वार्यं विवक्षसे ॥2॥
ज्ञान - निधान पूज्य परमेश्वर हम तुमको प्रणाम करते हैं ।
पर- हित में यह जीवन रत हो यही अपेक्षा हम करते हैं॥2॥
9025
यस्पतिर्वार्याणामसि रध्रस्य चोदिता ।
इन्द्र स्तोतृणामविता वि वो मदे द्विषो नःपाह्यंहसो विवक्षसे॥3॥
इस जगती के परमेश्वर - प्रभु तुम सत्पथ पर ही ले चलना ।
तुम ही वसुधा के रक्षक हो सदा अनुग्रह हम पर करना॥3॥
9026
युवं शक्रा मायाविना समीची निरमन्थतम् ।
विमदेन यदीळिता नासत्या ननिरमन्थतम्॥4॥
कर्म-योग की गरिमा अद्भुत मुझको यही मार्ग दिखलाना ।
मन के दोषों को हर लेना सुख की परिभाषा सिखलाना॥4॥
9027
विश्वे देवा अकृपन्त समीच्योर्निष्पतन्त्योः ।
नासत्यावब्रुवन्देवा: पुनरा वहतादिति॥5॥
हम सबके संकल्प पूर्ण हों यश - वैभव का दे दो दान ।
सत्पथ पर तुम प्रेरित करना देना अन्न और धन-धान॥5॥
9028
मधुमन्मे परायणं मधुमत्पुनरायनम् ।
ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस्कृतम्॥6॥
इस जग में आना और जाना सज्जन समुचित नेह निभाये।
वरद-हस्त हम पर रखना प्रभु आना-जाना सार्थक हो जाये॥6॥
स्वास्थ्य को सशक्त रखें देव।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी ! आभार आपका ।
ReplyDeleteशश
bahut sundar kindi anuvaad !
ReplyDeleteNew post: शिशु
धन्यवाद,वेद-सूत्रों से परिचय कराने के लिये.
ReplyDeleteशुभ-शब्द,शुभ-फल देते ही हैं.
सीधे सीधे काव्यार्थ लिखने से वास्तविक अर्थार्थ संदेहास्पद रहते हैं.....वस्तुतः शब्दार्थों के साथ वाच्यार्थ लिखे जाने चाहिए ..ताकि अर्थ व गूढार्थ स्पष्ट हों ...क्योंकि मुझे लगता है कि वैदिक रिचाओं के ये इतने सामान्य अर्थ नहीं हो सकते ....
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